Lok Sabha Election 2024: छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस को 'कास' से आस, साधने में जुटे दोनों दल, जानिए सियासी समीकरण
Lok Sabha Election 2024 इस बार छत्तीसगढ़ का सियासी रण रोचक होगा। यहां किसान आदिवासी और साहू समाज पर भाजपा और कांग्रेस की निगाहें हैं। दोनों ही दल इन तीनों वर्गों को साधने में जुटे हैं। यहां लगभग 33 प्रतिशत आदिवासी है। भाजपा ने कई सीटों पर नए चेहरों पर दांव खेला है। प्रदेश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी कृषि एवं कृषि कार्यों से जुड़ी है।
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मतों में मामूली गिरावट से कांग्रेस के हाथ से आदिवासी बहुल अधिसंख्य सीटें निकल गई थीं। तब ओबीसी के साहू समाज ने भी भाजपा को भरपूर वोट दिया था।
इस बार स्थिति कुछ भिन्न मानी जा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि साहू समाज उचित प्रतिनिधित्व न मिलने के कारण भाजपा से खुश नहीं है। हालांकि, आदिवासियों में शुरू से ही पैठ बनाकर चल रही भाजपा साहू समाज को भविष्य के लिए उचित आश्वासन देकर अपने पाले में रोकने का हर संभव जुगत कर रही है।
कास को साधने की कोशिश
इन दोनों के अलावा किसानों का एक वर्ग भी है, जिसमें लगभग सभी जातियों का प्रतिनिधित्व है। ओबीसी और आदिवासी मतदाताओं में से किसी एक की नाराजगी से होने वाले नुकसान को किसानों का समर्थन लेकर संतुलित किया जा सकता है। फिलहाल छत्तीसगढ़ को जीतने के लिए इन्हीं तीनों वर्गों-किसान, आदिवासी और साहू (केएएस यानी कास) को साधने की जुगत हो रही।33 फीसदी आदिवासी
छत्तीसगढ़ में लगभग 70 प्रतिशत लोग कृषि और संबद्ध गतिविधियों में सम्मिलित हैं। यहां लगभग 33 प्रतिशत आदिवासी है। 13 प्रतिशत अनुसूचित जाति के साथ ओबीसी सबसे बड़ा वर्ग (40 प्रतिशत) है। उसमें अकेले साहू समाज लगभग आधी हिस्सेदारी रखता है। यह सामाजिक समीकरण ही चुनावी दशा-दिशा का आधार है।
इस बार इन सीटों पर निगाहें
राज्य की 11 में से चार सीटें (बस्तर, कांकेर, सरगुजा, रायगढ़) अनुसूचित जनजाति व जांजगीर-चापा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। शेष छह (रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, महासमुंद, राजनांदगांव, कोरबा) सामान्य हैं।पिछली बार कांग्रेस को कोरबा व बस्तर में जीत मिली थी। शेष नौ भाजपा के पाले में गई थीं। इस बार छह सीटों (रायपुर, बस्तर, राजनांदगांव, कोरबा, जांजगीर-चापा, महासमुंद) पर मामला कुछ फंसा है।
यह भी पढ़ें: बड़े काम के हैं चुनाव आयोग के ये सात एप; प्रत्याशियों की 'कुंडली', कहां-कितना हुआ मतदान, सबकुछ जान सकते हैं आप पहले चरण में बस्तर में मतदान के बाद 29 नक्सली मारे गए। आदिवासियों और अनुसूचित जाति के एक वर्ग में उनके प्रति सहानुभूति है। इसे भांप कर ही मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय अपनी हर जनसभा में नक्सलवाद पर सधी हुई टिप्पणी कर रहे।
कांग्रेस की राह आसान नहीं
विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोट में चार प्रतिशत का अंतर रहा। इस बार इसे पाटे बिना कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं। तब आदिवासी, अनुसूचित जाति और ओबीसी को कांग्रेस साध चुकी थी, लेकिन भाजपा की दो घोषणाएं (धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य और महतारी वंदन योजना) उसकी उम्मीदों पर पानी फेर गईं।इन योजनाओं से लाभान्वित इचकेला पंचायत के विश्वनाथ सिंह और केश्वर सिंह को इस बार भविष्य में उनकी रौतिया बिरादरी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का आश्वासन भी भाजपा से मिल चुका है। इसके बाद उन्हें कांग्रेस की घोषणाएं फीकी जान पड़ रहीं।विकास की बाट जोह रहा इचकेला
मनोहर टोप्पो मुफ्तखोरी-कमीशनखोरी को राष्ट्र के लिए घातक बताते हुए अपनी साइकिल की घंटी टुनटुनाते आगे बढ़ जाते हैं। मुड़कर वे यह कहना नहीं भूलते कि अगर अपना हाथ मजबूत नहीं रहा तो जिंदगी की गारत तय है।जशपुर जिला की इचकेला को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गोद लिया था। तबसे यह विकास की बाट जोह रही। हालांकि, खरसिया के कमल दास महंत सरकार के हाथ 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अपना धान बेचकर शहर में जमीन खरीदने की सोच रहे।नए चेहरों पर भाजपा का दांव
नारायण भोई कहते हैं कि चुनाव जीतने के लिए जमीन और हवा दोनों अपने पक्ष में होना चाहिए। यहां कांग्रेस की जमीन से भाजपा हवा बांध रही है। हालांकि, इस बार कांग्रेस ने दमदार चेहरे को लगाया है। इसका यह अर्थ नहीं कि भाजपा का दांव पहले से कमतर है।एंटी-इनकंबेंसी को प्रभावहीन करने के लिए भाजपा हर बार की तरह इस बार भी अधिसंख्य क्षेत्रों में नए प्रत्याशियों को लेकर आई है। एक उदाहरण रायगढ़ है। वहां पिछली बार विजयी रहीं गोमती साय इस बार मात्र 255 वोटों के अंतर से पत्थलगांव से विधायक चुनी गई हैं। भाजपा ने इस बार राधेश्याम राठिया को मैदान में उतारा है, जो आदिवासियों में राठिया समाज से हैं। कोई दो राय नहीं कि यह दूसरे फरीक के वोटों में सेंधमारी की जुगत है। गोमती से पहले लगातार चार बार विष्णुदेव साय यहां से सांसद रहे थे, जो अब मुख्यमंत्री हैं।- किसान: किसानों से 3100 रुपये की दर से प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की खरीद सरकार कर रही। पहले यह दर कम थी। अब अंतर वाली राशि बोनस के रूप में किसानों के खाते में जा रही।
- आदिवासी: आदिवासी समाज भाजपा और कांग्रेस में बंटा हुआ है। नक्सलवाद और हसदेव जंगल के मुद्दे पर इनकी राय बनती-बिगड़ती है। मतांतरण का दंश और आर्थिक लाभ का द्वंद्व भी बराबर है।
- साहू: साहू समाज को भाजपा से दो टिकट की अपेक्षा थी, मिला एक। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने समाज के 10 लोगों को प्रत्याशी बनाया था, जबकि कांग्रेस ने नौ को। सहानुभूति में बंटवारा स्वाभाविक है।