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Lok Sabha Election 2024: 'कर्तव्‍य भूले, सिर्फ अधिकार याद...', मांगों को लेकर धरना देने वाले किसान नेता आखिर क्‍यों मतदान से रहे दूर?

Lok Sabha Election 2024 सभी चरणों का मतदान अब खत्म हो गया है। वोटों की गिनती 4 जून को होगी। इस बीच किसान नेता मताधिकार से दूर रहे। उन्हें संविधान में दिए गए अधिकार तो याद रहा लेकिन उन्होंने अपना कर्तव्य नहीं निभाया। एक तरफ तो संवैधानिक अधिकार की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ उसी संवैधानिक अधिकार से दूरी बना ली।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Sun, 02 Jun 2024 11:25 AM (IST)
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Lok Sabha Chunav 2024: बॉर्डर पर धरना दे रहे किसान मतदान से दूर रहे।

गुरप्रीत धीमान, पटियाला। हरियाणा की सीमा से सटे पटियाला जिले का शंभू और संगरूर जिले का खनौरी बॉर्डर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के बैनर तले बड़ी संख्या में किसान दिल्ली चलो मुहिम के तहत

इकट्ठा हुए। हरियाणा सीमा सील होने पर किसानों ने वहीं पर धरना देना शुरू कर दिया। आरोप लगाया कि संविधान हमें देश में कहीं भी जाने की आज्ञा देता है।

हरियाणा सरकार ने केंद्र के कहने पर उन्हें जानबूझ कर रोक रही है। यह उनके संवैधानिक अधिकार पर हमला है। इसके बाद किसानों ने शंभू और खनौरी में ही धरना प्रदर्शन करना शुरू कर दिया और नेशनल हाईवे को भी जाम कर दिया। मनाने का प्रयास हुआ तो किसान नेताओं ने यही कहा कि संविधान उन्हें धरना-प्रदर्शन की आज्ञा देता है।

महाअभियान से क्यों दूर रहे किसान

धरना प्रदर्शन के चलते हालात ऐसे बने कि आज उक्त दोनों नेशनल हाईवे बंद हुए करीब 110 दिन हो गए हैं। ऐसे में इस रूट पर चलने वालों को दूसरे मार्ग से आना-जाना पड़ रहा है। अब जब एक जून को राज्य में लोकसभा चुनाव के लिए सातवें और आखिरी चरण में मतदान हुआ तब भी इन किसानों ने इस महाअभियान से दूरी बनाए रखी।

वोट नहीं किए किसान नेता

इनके कई नेता मतदान करने ही नहीं गए। मोर्चे के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया। डल्लेवाल शंभू में जारी धरने पर ही बैठे रहे, लेकिन उनके परिवार ने मतदान में हिस्सा जरूर लिया।

ऐसे में यह सवाल उठना तो स्वाभाविक ही है कि आखिर हर धरने-प्रदर्शन के दौरान संविधान को आगे रखने वाले किसानों ने संविधान की ओर से दिए गए मतदान के अधिकार से दूरी क्यों बनाए रखी।

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किसानों की ओर से इस तरह मतदान के अधिकार से दूर रहना कई सवाल खड़ा करता है। पहला यह है कि अगर संविधान ने उन्हें धरना प्रदर्शन का अधिकार दिया है तो यह अधिकार उन्हें किसने दिया कि वे लोगों को परेशान करने के लिए 110 दिन से नेशनल हाईवे को ही जाम रखें।

धरने पर ही बैठे रहे किसान

यही नहीं, अगर वे कहते हैं कि उनके लिए किसी भी सरकार ने काम नहीं किया तो उन्होंने अपने ऐसे प्रतिनिधि के लिए मतदान का प्रयोग क्यों नहीं किया जो उनकी आवाज को संसद में उठा सकता था।

उधर, भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के नेता जसमेर सिंह ने कहा कि लगभग सभी ने मतदान किया है। हालांकि कुछ किसान जो इस बार अपनी वोट का इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे, धरने पर ही बैठे हैं।

'सरकारों ने किया धोखा'

हास्यास्पद हैं धरने पर बैठे किसान नेताओं के मतदान न करने के तर्क किसान नेताओं के तर्क भी हास्यास्पद हैं। शंभू में धरने पर बैठे किसानों ने कहा कि इतना समय हो चुका है उन्हें अपने वोट का इस्तेमाल करते हुए सभी सरकारों ने हमारे साथ धोखा किया है।

'किसानों के लिए कोई काम नहीं'

किसान नेता तेजवीर सिंह पंजोखरा ने कहा कि यहां तो नेताओं का ही पता नहीं लगता कि सुबह एक पार्टी में हैं और शाम को दूसरी पार्टी में चले जाएं। इसलिए वह इस बार अपने वोट का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

भारतीय किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के फतेह सिंह ने कहा कि 70 वर्षों में किसानों के लिए कोई काम नहीं किया गया। ऐसे में हम वोट का इस्तेमाल क्यों करें, हम जीतकर ही अपने घर को जाएंगे।

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