Ratlam lok sabha seat: देश में 61 साल पहले इस सीट की हुई खूब चर्चा, एक महिला ने नेहरू के भरोसे का मनवाया था लोहा
Ratlam Lok Sabha Chunav 2024 updates देश की सभी राजनीतिक पार्टियां लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में जुटी हैं। ऐसे में जरूरी है कि आप भी अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना भी चाहिए ताकि इस बार किसको जिताना है यह तय करने में कोई दुविधा न आए। आज हम आपके लिए लाए हैं रतलाम लोकसभा सीट और यहां के सांसद की पूरी जानकारी...
मनोज भदौरिया, आलीराजपुर। Ratlam Lok Sabha Election 2024 latest news: अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए आरक्षित रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट पर अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव और एक उपचुनाव में सिर्फ चार बार ही गैर कांग्रेसी नेता जीत सके हैं। जनसंघ और भाजपा के लिए यह सीट हमेशा चुनौती बनती रही। इतना ही नहीं, इस सीट पर रोचक संयोग यह भी है कि अधिकांश समय इस पर भूरिया उपनाम के नेताओं का ही कब्जा रहा है।
इस क्षेत्र से अब तक कुल सात व्यक्ति सांसद बने हैं। इसमें भी तीन भूरिया उपनाम वाले रहे। रतलाम (पूर्व में झाबुआ) लोकसभा सीट पर भाजपा ने वर्ष 2014 में पहली बार जीत हासिल की, वह भी कांग्रेस छोड़कर आए दिलीप सिंह भूरिया के सहारे।दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद उपचुनाव हुआ तो इस पर कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने जीत हासिल कर ली। हालांकि, साल 2019 के चुनाव में भाजपा ने यहां वापसी की और गुमान सिंह डामोर सांसद चुने गए।
रतलाम संसदीय क्षेत्र में 12 बार ‘भूरिया’ उपनाम के नेता सांसद चुने गए। दिलीप सिंह भूरिया कांग्रेस से पांच बार, भाजपा से एक बार सांसद चुने गए। वहीं, कांतिलाल भूरिया कांग्रेस से पांच बार सांसद निर्वाचित हुए। वर्ष 1967 में कांग्रेस के सुर सिंह भूरिया भी सांसद चुने गए थे।
सबसे बड़ी और छोटी जीत कांग्रेसियों के नाम
इस संसदीय क्षेत्र में अब तक हुए चुनाव में सबसे बड़ी और सबसे छोटी जीत का रिकॉर्ड कांग्रेस प्रत्याशियों के नाम है। वर्ष 1962 के चुनाव में कांग्रेस की जमुना देवी ने भारतीय जनसंघ के गट्टू को सबसे कम 22,384 मतों से पराजित किया था। वर्ष 1999 के चुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया को करीब डेढ़ लाख वोटों से हराया था।साल 1962 में पहली बार जीती महिला
रतलाम लोकसभा सीट पर पांच बार महिला प्रत्याशी मैदान में उतरीं। हालांकि, जीत सिर्फ एक को ही मिली। 1962 में कांग्रेस से जमुना देवी इस सीट की पहली महिला सांसद निर्वाचित हुईं। भागीरथ भंवर लगातार दो बार अलग-अलग पार्टियों के टिकट पर सांसद बने, वे 1971 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जीते और 1977 के चुनाव में भारतीय लोकदल के टिकट पर। इसके बाद कांग्रेस ने यहां से लगातार जीत दर्ज की।
यह भी पढ़ें - Narmadapuram Lok Sabha Seat: जब आसमान से बरसने लगे पर्चे, नतीजों ने कर दिया था हैरान; पढ़िए एक CM की हार का किस्सा
जब पूरे देश में चर्चित हुई यह सीट
1962 के लोकसभा चुनाव में झाबुआ (रतलाम) संसदीय सीट की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हुई थी। पूरे देश में लगभग सभी सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों के नाम की घोषणा हो चुकी थी। ऐन वक्त पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने झाबुआ सीट के कांग्रेस प्रत्याशी को बदल दिया।उस समय यह निर्णय बहुत चौंकाने वाला रहा। पूरे देश में सिर्फ एक प्रत्याशी बदलने की घटना ने राजनीतिक क्षेत्र में खूब सुर्खियां बटोरीं। दो बार के सांसद अमर सिंह के स्थान पर युवा महिला नेता जमुना देवी को टिकट दिया गया और वे चुनाव भी जीतीं।मिठाई बंट गई फिर पता चला सूचना गलत है
1977 के अपने पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिलीप सिंह भूरिया पराजित हो गए थे। अगले वर्ष 1980 के चुनाव में उन्हें टिकट मिलना मुश्किल लग रहा था। इस बीच सैलाना के नेता प्रभुदयाल गहलोत को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाने की चर्चा क्षेत्र में फैल गई। गहलोत समर्थक मिठाई बांटने लगे। कुछ दिनों बाद मालूम हुआ कि उक्त सूचना झूठी थी। दिलीप सिंह भूरिया को ही कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया था।एक चुनौती- सीट जीतकर बताओ
साल 2004 में भाजपा ने दिलीप सिंह भूरिया के स्थान पर रेलम चौहान को उम्मीदवार बना दिया। बताते हैं कि उस समय दिलीप सिंह भूरिया ने नाराज होकर तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष कैलाश जोशी को भोपाल में कह दिया था कि आपने उम्मीदवार तो बदल दिया, अब सीट जीतकर बता देना। बाद में हुआ भी यही। भाजपा के पक्ष में वातावरण होने के बावजूद रेलम चौहान पराजित हो गईं।भाजपा और कांग्रेस दोनों से सांसद बने
दिग्गज नेता दिलीप सिंह भूरिया के साथ यह संयोग बना कि वे कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों से इस सीट पर सांसद रहे। कांग्रेस के टिकट पर वर्ष 1980 से लेकर वर्ष 1996 तक का चुनाव जीतते रहे। बाद में भाजपा से लड़ने पर चुनाव हारे, लेकिन वर्ष 2014 की मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत गए।क्षेत्र में कांग्रेस का पर्याय बने कांतिलाल भूरिया
इस सीट पर कांतिलाल भूरिया एक तरह से कांग्रेस के पर्याय कहे जा सकते हैं। कांतिलाल भूरिया पांच बार सांसद और पांच बार विधायक रह चुके हैं। वे केंद्र व राज्य सरकार में भी कैबिनेट मंत्री रहे। यही नहीं, गुमानसिंह डामोर ने उन्हें वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में हराया तो कांतिलाल भूरिया ने गुमान सिंह के त्यागपत्र से खाली हुई झाबुआ विधानसभा सीट पर उपचुनाव में जीत हासिल की। अब झाबुआ विधानसभा सीट पर कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ. विक्रांत भूरिया विधायक हैं।रतलाम लोकसभा सीट में कितनी विधानसभा?
रतलाम शहर, रतलाम ग्रामीण, सैलाना, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, अलीराजपुर और जोबट समेत आठ विधानसभा क्षेत्र हैं।रतलाम की ताकत
-कुल मतदाता - 20,72,288-पुरुष मतदाता - 10,29,902-महिला मतदाता - 10,42,330-थर्ड जेंडर - 56इन नेताओं ने किया प्रतिनिधत्व
साल | सांसद | पार्टी |
1952 | अमर सिंह | कांग्रेस |
1957 | अमर सिंह | कांग्रेस |
1962 | जमुना देवी | कांग्रेस |
1967 | सुरसिंह भूरिया | कांग्रेस |
1972 | भागीरथ भंवर | प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
1977 | भागीरथ भंवर | प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
1980 | दिलीप सिंह भूरिया | कांग्रेस |
1984 | दिलीप सिंह भूरिया | कांग्रेस |
1990 | दिलीप सिंह भूरिया | कांग्रेस |
1991 | दिलीप सिंह भूरिया | कांग्रेस |
1996 | दिलीप सिंह भूरिया | कांग्रेस |
1998 | कांतिलाल भूरिया | कांग्रेस |
1999 | कांतिलाल भूरिया | कांग्रेस |
2004 | कांतिलाल भूरिया | कांग्रेस |
2009 | कांतिलाल भूरिया | कांग्रेस |
2014 | दिलीप सिंह भूरिया | भाजपा |
2015 | कांतिलाल भूरिया (उपचुनाव) | कांग्रेस |
2019 | गुमान सिंह डामोर | भाजपा |
यह भी पढ़ें -Tikamgarh Lok Sabha Seat: यहां के राजा ने सबसे पहले प्रजातांत्रिक बनने को किए थे हस्ताक्षर; उमा भारती का है खास नाता
यह भी पढ़ें - Satna Lok Sabha seat: वो सीट जहां से एकसाथ हारे थे दो पूर्व सीएम, पिता को मिली जीत की हां और बेटे को ना