Chunavi किस्सा: जब अटल जी को किसी ने पकड़ाई थैली तो पूछा- कितना है? जवाब सुन मुस्कुराते हुए मंच से उतर गए
अटल बिहारी वाजपेयी 1982 में बिहार के कटिहार पहुंचे थे। उन दिनों वे देशव्यापी भ्रमण पर थे और पार्टी की खातिर फंड का इंतजाम कर रहे थे। दो साल पहले ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गठन हुआ था। कटिहार में उन्होंने एक जनसभा को भी संबोधित किया था। उन्हें सुनने बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। पढ़ें पूरा रोचक किस्सा...
नीरज कुमार, कटिहार l पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का चंदा से जुड़ा एक रोचक किस्सा है। इसकी चर्चा बिहार के सियासी गलियारों में आज भी होती है। प्रधानमंत्री बनने से करीब डेढ़ दशक पहले अटल जी 1982 में देशव्यापी दौरे पर थे। तब वे पार्टी फंड जुटा रहे थे। इसी सिलसिले में उनका बिहार के कटिहार भी आना हुआ।
उस समय अटल जी के कार्यक्रम पूर्व डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद भी मौजूद थे। वे कहते हैं कि तब अटल जी ने शहर स्थित ललियाही में एक जनसभा को संबोधित किया था। उन्हें सुनने हुजूम उमड़ा था।
कार्यकर्ताओं और समर्थकों से जुटाया गया था चंदा
भाषण सुनने के बाद लोग चंदा भी देते थे। हालांकि, उस वक्त लोकसभा चुनाव नहीं था, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। भाजपा का गठन भी दो वर्ष पूर्व ही हुआ था। संगठन व आगामी चुनाव में संभावित खर्च के लिए धनराशि की जरूरत थी। इसके लिए कार्यकर्ताओं व समर्थकों से चंदा एकत्रित किया जा रहा था।जब पूछा- थैली में कितना है?
एकत्र राशि की थैली अटल जी को जनसभा के बाद सौंपी गई। तब अटल जी ने पूछा था, इसमें कितना है? थैली समर्पित कर रहे नेताओं ने बताया, एक लाख। यह सुनकर अटल जी अपने चिर-परिचित अंदाज में मुस्कुराए और प्रसन्नचित होकर मंच से उतरे। तब अटल जी ने कहा था कि कार्यकर्ता व समर्थक ही दल की रीढ़ होते हैं। संगठन का खर्च भी कार्यकर्ताओं व समर्थकों के सहयोग से ही एकत्रित किया जाना चाहिए। इससे दल की विचारधारा के प्रति निष्ठा व समर्पण प्रदर्शित होता है।
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मुख्यमंत्री को जब रिक्शे से लेने चले गए पूर्व सांसद डा. रमेश चंद्र तोमरग़ाज़ियाबाद को आज भले ही बीजेपी का गढ़ माना जाता हो लेकिन एक वक्त था जब यहां बीजेपी का झंडा थामने वाले लोग नहीं थे। ग़ाज़ियाबाद से चार बार सांसद चुने गये डॉक्टर रमेश चंद्र तोमर ने जब 80- 90 के दशक में यहाँ राजनीति शुरू की तो गिने चुने लोग ही यहां बीजेपी के समर्थक थे। संघ की शाखाएँ लगाना मुश्किल होता था। पैदल और साइकिल पर गांव-गांव घूमकर डॉक्टर तोमर आरएसएस और बीजेपी की नीतियों के बारे में बताए थे। एक बार पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह यहां आये तो उन्हें स्टेशन पर लेने के लिए अपने समर्थकों के साथ डॉक्टर रमेश चंद्र तोमर गये। लेकिन उन्होंने जो गाड़ी कल्याण सिंह को रिसीव करने के लिए बुलाई थी वह नहीं पहुंची। उन्होंने कान में कल्याण सिंह को बताया कि मैं तो रिक्शे से आ गया लेकिन जो गाड़ी बुलाई थी वह नहीं आई। कल्याण सिंह ने कहा अरे इंतज़ार क्यों करना हम भी रिक्शे से चलेंगे और रिक्शे पर बैठकर दोनों नेता तय कार्यक्रम के लिए चले गये।
डॉक्टर तोमर बताते हैं कि कई जगहों पर संघ की शाखाएं नहीं लगने दी जाती थीं। उन्होंने युवाओं को लामबंद किया और जहां विरोध होता था वहाँ दल - बल के साथ पहुँचकर शाखा लगवाते थे। लोकसभा चुनाव की सरगर्मी तेज है। वे समर्थकों को बताते हैं कि किस तरह से परिश्रम करके ग़ाज़ियाबाद में बीजेपी की जड़ों को मज़बूत करने का काम किया गया। ज़मीन से जुड़े नेता के रूप में जो पहचान डॉक्टर तोमर ने बनाई उसे लोग आज भी याद करते हैं।
फ़िलहाल इस बार ग़ाज़ियाबाद में प्रत्याशी बदला गया है। कई जगहों पर क्षत्रिय सम्मेलन हो रहे हैं। ऐसे में ग़ाज़ियाबाद में कई नेता डॉक्टर तोमर का दौर याद कर रहे हैं जब वे ख़ुद फ्रंट पर आकर अपने असंतुष्टों को आत्मीयता से डांट डपटकर शांत करा देते थे। फ़िलहाल ग़ाज़ियाबाद की लड़ाई इस बात काफ़ी दिलचस्प है। जैसे - जैसे मतदान की तारीख़ नज़दीक आ रही है राजनीतिक दलों का प्रचार भी गति पकड़ रहा है। अब साइकिल नहीं गाड़ियों का कारवां है। ऐसे में हाथ हिलाते , मिलाते और झटपट आगे के लिए निकल जाते नेता जनता के दिल से कितना जुड़ते हैं कहना मुश्किल है।
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