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जहां मिली दिशोम गुरु की उपाधि, वहां से विधानसभा चुनाव नहीं जीते शिबू सोरेन, नदी पार करते ही बदल गई थी किस्मत

Lok Sabha Election 2024 टुंडी में आदिवासियों को लामबंद करने वाले शिबू सोरेन से जुड़ा एक रोचक किस्सा यह है कि वे यहां से विधानसभा चुनाव नहीं जीते। मगर नदी पार करने पर उनकी सियासी किस्मत ने करवट ली। संताल परगना में सोरेन का जादू चला और दुमका से आठ बार सांसद बने। दुमका सीट पर झामुमो ने अबकी विधायक नलिन सोरेन को टिकट दिया है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Mon, 22 Apr 2024 03:29 PM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: टुंडी से मिली देशभर में पहचान, पर वहां से नहीं जीत सके विधानसभा चुनाव l
दिलीप सिन्हा, धनबाद। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) प्रमुख शिबू सोरेन को उनकी राजनीतिक जन्मभूमि टुंडी ने ऐतिहासिक सम्मान दिया। उनको दिशोम गुरु (देश का गुरु) की पदवी यहां मिली। इसके बावजूद धनबाद की टुंडी विधानसभा सीट पर वह जीत हासिल नहीं कर सके और ना ही धनबाद से सांसद बने।

सत्य नारायण दुदानी से हारे थे शिबू सोरेन

शिबू सोरेन को बराकर नदी पार जाने के बाद संताल परगना ने सियासी प्राण दिया। दिशोम गुरु की उपाधि पाने के बाद शिबू सोरेन 1977 में अपना पहला विधानसभा चुनाव टुंडी से लड़े थे। इस चुनाव में वह जनता पार्टी के सत्य नारायण दुदानी से हार गए थे। इस हार से आहत शिबू सोरेन टुंडी की सीमा बराकर नदी पार कर संताल परगना कूच कर गए थे।

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संताल परगना में चला था सोरेन का जादू

संताल परगना को उन्होंने अपनी राजनीति का केंद्र बनाया। वहां उनका जादू ऐसा चला कि मात्र ढाई साल बाद 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के किला दुमका में अपना झंडा गाड़ दिया। इसके बाद वह यहां से लगातार जीते। गुरुजी दुमका से आठ बार सांसद रहे हैं। इस बार वह चुनावी जंग में नहीं हैं।

इस बार दिलचस्प दुमका का मुकाबला

दुमका सीट से झामुमो ने इस बार विधायक नलिन सोरेन को उतारा है। वहीं भाजपा से उनकी बड़ी बहू विधायक सीता सोरेन मैदान में हैं।

ऐसे मिली दिशोम गुरु की उपाधि

शिबू सोरेन ने 70 के दशक में भूमिगत रहकर टुंडी में आदिवासियों को गोलबंद किया था। इसके बाद वहां महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ लंबा संघर्ष छेड़ा था। यह संघर्ष धनकटनी आंदोलन के नाम से चर्चित हुआ था। इस आंदोलन में ही आदिवासियों ने उन्हें दिशोम गुरु की उपाधि से नवाजा था। इस ऐतिहासिक आंदोलन के बावजूद शिबू टुंडी में विधानसभा चुनाव हार गए।

कांग्रेस के किले को ध्वस्त कर बने संताल के बादशाह

संताल में भी धनकटनी आंदोलन जोर पकड़ चुका था। शिबू अपने संघर्ष के बल पर आदिवासियों के सर्वमान्य नेता बन चुके थे। इसके बाद वह 1980 के लोकसभा चुनाव में दुमका से लड़े। तब तक झामुमो को राजनीतिक पार्टी की मान्यता नहीं मिली थी। 1980 में दुमका में कांग्रेस के दिग्गज नेता पृथ्वीचंद किस्कू को हराकर वह पहली बार लोकसभा पहुंचे थे। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

एके राय ने शक्तिनाथ को उतारा और टुंडी में हार गए गुरुजी

प्रसिद्ध वामपंथी नेता एके राय, बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन ने चार फरवरी 1973 में धनबाद में झामुमो का गठन किया था। इन तीनों की जोड़ी पार्टी स्थापना के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में ही टूट गई थी। शिबू सोरेन ने टुंडी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।

झारखंड आंदोलनकारी व झामुमो के पूर्व नेता खेदन महतो ने बताया कि एके राय और बिनोद बिहारी महतो नहीं चाहते थे कि शिबू सोरेन टुंडी से चुनाव लड़ें। शिबू की इस घोषणा के बाद एके राय ने अपने संगठन किसान संग्राम समिति से शक्तिनाथ महतो को टुंडी में उतार दिया। इसमें जनता पार्टी के सत्य नारायण दुदानी के हाथों शिबू सोरेन चुनाव हार गए थे।

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