जब वसुंधरा राजे के खिलाफ भाई ने उतारा प्रत्याशी, आंसुओं ने बदला समीकरण; नतीजे आने पर सब हैरत में पड़ गए
1984 का मध्य प्रदेश के भिंड-दतिया लोकसभा सीट का चुनाव भी दिलचस्प था। मध्य प्रदेश के चुनावी किस्सों की जब बात होती है तो इस सीट की चर्चा जरूर होती है। माधवराव सिंधिया की रणनीति में उनकी बहन वसुंधरा राजे का पहला चुनाव फंस गया था। कांग्रेस की लहर में वसुंधरा राजे को पहली सियासी हार इसी सीट पर अपने भाई की रणनीति की वजह से मिली थी।
मनोज श्रीवास्तव, भिंड। चुनावी किस्से में आज बात 1984 के उस चुनाव की जब एक भाई ने अपनी बहन का सियासी पांसा पलट दिया। इससे न केवल बहन को झटका लगा बल्कि मां की उम्मीदों पर पानी भी फिर गया। बाद में यही बहन राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री बनी। न केवल मुख्यमंत्री बनी बल्कि भाजपा में एक तेज तर्रार नेता के तौर पर अपने आपको स्थापित किया। हम बात कर रहे हैं वसुंधरा राजे सिंधिया और उनके भाई माधव राव सिंधिया की।
जब भिंड से चुनाव मैदान में उतरीं वसुंधरा
1984 में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका था। चंबल क्षेत्र की अहम लोकसभा सीट भिंड-दतिया में भी चुनावी बयार बह रही थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद यह पहला आम चुनाव था। राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1984 में भिंड-दतिया सीट से अपनी बड़ी बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया को चुनाव में उतारा था।यह वसुंधरा राजे का पहला चुनाव था। 1971 के लोकसभा चुनाव में इसी सीट से विजयाराजे सिंधिया भारतीय जनसंघ की टिकट पर चुनाव जीत चुकी थीं। ऐसे में राजमाता अपनी बेटी वसुंधरा की जीत को लेकर बिल्कुल आश्वस्त थीं।
आमने-सामने थे मां-बेटे
इस बीच चुनाव मैदान में वसुंधरा राजे के भाई माधवराव सिंधिया की एंट्री होती है। अपनी बहन के खिलाफ उन्होंने दतिया राजघराने के कृष्ण सिंह जूदेव को चुनाव मैदान में उतारा। कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे कृष्ण देव सिंह जूदेव के पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं था। वसुंधरा राजे की तरह यह उनका भी पहला चुनाव था।वसुंधरा राजे के चुनाव की कमान राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने संभाली तो दूसरी तरफ कृष्ण सिंह जूदेव की चुनाव की कमान माधवराव सिंधिया के हाथ में थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में कांग्रेस के पक्ष में हवा थी। माधवराव सिंधिया ने भी आम लोगों के बीच कृष्ण सिंह जूदेव के पक्ष में खूब माहौल बनाया।
आंसुओं ने बदला चुनावी समीकरण
कृष्ण सिंह जूदेव के आंसुओं ने भी चुनाव के समीकरण को काफी हद तक बदला। वह कई बार जनसभाओं में भावुक होकर उन्होंने जनता से वोट की अपील की। एक ऐसा ही किस्सा किला चौक का है। यहां कृष्ण सिंह जूदेव की आखिरी जनसभा थी। यहां वे लोगों के सामने रो पड़े थे और कहा था कि पहली बार चुनाव में हूं... दतिया राजघराने की इज्जत आपके हाथों में है। उधर, क्षेत्र में सभी को उम्मीद थी कि वसुंधरा ही जीतेंगी। मगर कृष्ण सिंह जूदेव की अपील ने जनता के दिल में इस कदम घार किया कि उन्होंने वसुंधरा राजे को 87,403 मतों से हरा दिया था।
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