Lok Sabha Election 2024: मध्य प्रदेश के दो 'टाइगर' चुनावी मैदान में, दोनों ही बेचैन; क्या रंग लाएगी ये बेचैनी?
लोकसभा चुनाव को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस ने लंबे समय तक खामोशी ओढ़े रखी जबकि भाजपा ने अपने सारे घोड़े पहले ही खोल दिए। चुनावी जंग में उतरने के लिए योद्धा भी कमर कसकर तैयार हैं। चुनावी मुद्दे भी लगभग स्पष्ट हैं और जमावट का असर भी दिखने लगा है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की बेचैनी साफ झलक रही है।
धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। लोकसभा चुनाव को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस ने लंबे समय तक खामोशी ओढ़े रखी, जबकि भाजपा ने अपने सारे घोड़े पहले ही खोल दिए। चुनावी जंग में उतरने के लिए योद्धा भी कमर कसकर तैयार हैं। चुनावी मुद्दे भी लगभग स्पष्ट हैं और जमावट का असर भी दिखने लगा है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की बेचैनी साफ झलक रही है।
सिंधिया को बेचैन कर रहा पिछला अनुभव
शिवराज जहां सबसे ज्यादा वोटों से जीतने के लिए जी-तोड़ मेहनत में जुट गए हैं, तो पिछला अनुभव सिंधिया को बेचैन कर रहा है। गुना-शिवपुरी सीट से बतौर कांग्रेस प्रत्याशी वह पराजित हुए थे। ऐसे में चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही उनके माथे की लकीरें पढ़ी जा सकती हैं। वह हार का कलंक मिटाने के लिए टेंशन में हैं। दोनों ही प्रदेश की राजनीति में खुद को टाइगर कहते हैं। अब देखना है कि दोनों टाइगर की बेचैनी क्या रंग लाती है।
इस जंगल में हम दो शेर
शिवराज सिंह चौहान विदिशा लोकसभा सीट से लगभग 20 वर्ष बाद प्रत्याशी हैं, तो सिंधिया एक बार पराजय झेलने के बाद गुना सीट से ही फिर किस्मत आजमा रहे हैं। इनकी बेचैनी देखते हुए दिलीप कुमार और राजकुमार की फिल्म 'सौदागर' का गाना 'इमली का बूटा बेरी का पेड़, इमली खट़ठी मीठे बेर, इस जंगल में हम दो शेर, चल घर जल्दी हो गई देर...' याद आ जाता है, क्योंकि शिवराज और सिंधिया खुद को टाइगर बताते हुए कहते रहे हैं कि टाइगर अभी जिंदा है। चुनाव में जाने की इनकी छटपटाहट भी घर जाने जैसी ही है।शिवराज के राजनीतिक जीवन में आए कई उतार-चढ़ाव
प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट से प्रत्याशी शिवराज सिंह चौहान पहचान के मोहताज नहीं हैं। लगभग 17 वर्ष तक चार बार मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभाली। 'मामा' और भैया के रूप में देश में जाना जाता है।यूं तो शिवराज का राजनीतिक सफर बचपन से ही आरंभ हो गया था, लेकिन औपचारिक रूप से 1990 में उन्होंने बुदनी विधानसभा क्षेत्र से पहला चुनाव जीता था। 1991 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने विदिशा लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर इस्तीफा दिया, तो उपचुनाव जीतकर शिवराज लोकसभा पहुंच गए। इसके बाद चौहान 1996, 1998, 1999 में भी सांसद बने। वर्ष 2005 में पहली बार वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2018 तक लगातार सीएम रहने के बाद 15 महीने विपक्ष में भी रहे।
हिन्दुस्तान में सबसे बड़ी जीत का लक्ष्य
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने शिवराज को सीएम नहीं बनाया। पिछले कई महीने से वे बिना किसी पद के रहे। अब पार्टी ने लोकसभा चुनाव में उतारा तो उन्होंने आठ लाख वोट से जीत का लक्ष्य रखा है। पिछले लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी जीत छह लाख 89 हजार की रही है। इसके लिए शिवराज ने आक्रामक प्रचार भी आरंभ कर दिया है।अपनी लोकसभा सीट के गंजबासौदा कस्बे में जाने के लिए लोकल ट्रेन का इस्तेमाल किया। जहां रास्ते में उन्होंने हर स्टेशन पर अपनी छाप छोड़ते हुए लोगों से मेल-मुलाकात की। लाडली बहनों से चुनाव लड़ने के लिए चंदा भी एकत्र किया। चौहान अपनी विदिशा सीट के आधे से ज्यादा क्षेत्र का भ्रमण कर चुके हैं। उनकी सीट में आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिनमें से एक मात्र में कांग्रेस विधायक है, शेष भाजपा के पास हैं।
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