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Satna Lok Sabha seat: वो सीट जहां से एकसाथ हारे थे दो पूर्व सीएम, पिता को मिली जीत की हां और बेटे को ना

Satna Lok Sabha Chunav 2024 updates देश में इस साल आम चुनाव हैं। सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में जरूरी है कि आपको भी अपनी लोकसभा सीट और सांसद के बारे में पूरी जानकारी हो ताकि आप किसे जिताना चाहते हैं यह तय करने में कोई दुविधा न हो। यहां पढ़िए सतना लोकसभा सीट और यहां के सांसद के बारे में...

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Fri, 16 Feb 2024 03:01 PM (IST)
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Lok Sabha Chunava 2024: पढ़िए सतना लोकसभा सीट की पूरी जानकारी।
 श्याम मिश्रा, सतना। Satna Lok Sabha Election 2024 latest news: सतना संसदीय क्षेत्र की सबसे बड़ी पहचान यहां स्थित प्रसिद्ध तीर्थ स्थल मैहर और चित्रकूट हैं। इस सीट पर लगातार जीत का छक्का लगा चुकी भाजपा ने इसे अपना गढ़ बना लिया है। यहां ब्राह्मण और पटेल मतदाता राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं। अध्यात्म और व्यापार के क्षेत्र में धनी इस अंचल के राजनेता कई बार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र रहे हैं।

सतना से सांसद बनने वाले तीन नेता कई राज्यों के राज्यपाल बने तो इस सीट से मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह ने भी चुनाव जीता। सतना से दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को एक साथ हार का चेहरा भी देखना पड़ा। वर्ष 1996 में बसपा के सुखलाल कुशवाहा ने पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और स्वर्गीय वीरेंद्र सकलेचा को पराजित किया था।

शुरुआती दौर में  रहा कांग्रेस का राज 

सतना संसदीय सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे। साल 1957 और साल 1962 में सतना स्वतंत्र सीट नहीं थी। पांचवीं लोकसभा के गठन के लिए साल 1971 में हुए चुनाव में भारतीय जनसंघ के नरेंद्र सिंह ने कांग्रेस का वर्चस्व खत्म कर दिया।

साल 1977 में जनता पार्टी के दादा सुखेंद्र सिंह भारतीय लोकदल के टिकट पर जीते। साल 1980 और साल 1984 में यह सीट कांग्रेस के पास रही। सबसे बड़ा उलटफेर वर्ष 1996 में हुआ, जब बसपा के सुखलाल कुशवाहा ने चुनाव जीत लिया। सुखलाल कुशवाहा प्रदेश के बसपा के पहले सांसद थे। वर्ष 1998 के बाद से यह सीट लगातार भाजपा के पास है।

अटल के कारण भाजपा की नींव हुई मजबूत

साल 1998 में हुए चुनाव के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के कारण यहां के ब्राह्मण मतदाता भाजपा के साथ हो गए। राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक अरुण तिवारी बताते हैं कि वर्ष 1998 में जितना प्रभाव राम मंदिर मुद्दे का था, उतना ही प्रभाव ब्राह्मण मतदाताओं के बीच अटल का था।

तकरीबन 37 प्रतिशत पटेल मतदाता और 39 प्रतिशत ब्राह्मण मतदाताओं की युति ने इस सीट को भाजपा के अभेद्य किले के रूप में तब्दील कर दिया। यही कारण है कि वर्ष 1998 और 1999 के चुनाव में भाजपा के रामानंद सिंह और 2004 से लेकर अब तक लगातार गणेश सिंह चुनाव जीतते आ रहे हैं।

सांसद हार गए विधानसभा चुनाव

इन दिनों सियासी गलियारों में सतना संसदीय सीट के बनते-बिगड़ते समीकरण की चर्चा है। हाल ही में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाए गए सांसद गणेश सिंह हार गए। उन्हें सिद्धार्थ कुशवाहा ने हराया। बसपा से सांसद रहे सुखलाल कुशवाहा को वर्ष 2004 में गणेश सिंह ने हराया था। सुखलाल के बेटे सिद्धार्थ ने गणेश सिंह को चुनाव हराकर अपने पिता की हार का बदला ले लिया।

नेहरू का काफिला रुकते ही शहर को मिला रेलवे ओवरब्रिज

वर्ष 1957 में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सतना पहुंचे थे। यहां उनका काफिला सर्किट हाउस से जबलपुर के लिए रवाना हुआ, लेकिन रेलवे क्रॉसिंग बंद होने के कारण उन्हें रुकना पड़ा। ट्रेन रवाना होने के काफी देर बाद रेल फाटक खुला। नेहरू ने इस क्रासिंग पर ओवरब्रिज बनवाने के निर्देश दिए। यह अलग बात है कि ओवरब्रिज बनकर तैयार होने में 15 साल का समय लग गया।

तीन पूर्व सांसद बने राज्यपाल

वर्ष 1980 में कांग्रेस से सांसद चुने गए गुलशेर अहमद वर्ष 1993 में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बने। गुलशेर सतना जिले की अमरपाटन विधानसभा सीट से भी चुनाव जीते थे। वह वर्ष 1972 से 1977 तक विधानसभा अध्यक्ष भी रहे।

एक अन्य सांसद अजीज कुरैशी मिजोरम और उत्तराखंड के राज्यपाल भी रहे। उन्हें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का प्रभार भी दिया गया था। 24 जनवरी, 2020 को प्रदेश सरकार ने उन्हें मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अजीज कुरैशी लोकसभा चुनाव के दौरान केवल दो बार सतना आए थे। पहली बार नामांकन करने और दूसरी बार प्रमाण पत्र लेने। बावजूद इसके वे चुनाव जीते थे। राज्यपाल बनने वाले तीसरे सांसद अर्जुन सिंह थे।

राज्यपाल से फिर सक्रिय राजनीति में लौटे थे अर्जुन सिंह

पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह विंध्य के ऐसे नेता हैं, जो केंद्रीय मंत्री भी रहे और राज्यपाल भी। अर्जुन सिंह 14 मार्च,1985 को पंजाब के राज्यपाल बनाए गए और करीब आठ महीने तक इस पद पर रहे। इसके बाद वे फिर सक्रिय राजनीति में लौटे। साल 1991 में कांग्रेस ने सतना से अर्जुन सिंह को उम्मीदवार बनाया और वे विजयी रहे। बाद में वे यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे। अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल ने भी सतना सीट से कई बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।

सतना संसदीय क्षेत्र में कितनी विधानसभा शामिल हैं?

  • सतना, रामपुर बघेलान, नागौद, रैगांव, चित्रकूट, मैहर और अमरपाटन समेत सात विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।  

सतना की ताकत

  • कुल मतदाता- 16,85,050
  • पुरुष मतदाता -8,81,863
  • महिला -8,03,180
  • थर्ड जेंडर -07

 इन नेताओं ने किया प्रतिनिधित्व

साल सांसद पार्टी
1962 शिवदत्त उपाध्याय कांग्रेस
1967 देवेंद्र विजय सिंह कांग्रेस
1971 नरेंद्र सिंह जनसंघ
1977 दादा सुखेंद्र सिंह भाजपा 
1980 गुलशेर अहमद कांग्रेस
1984 अजीज कुरैशी कांग्रेस
1989 दादा सुखेंद्र सिंह भाजपा 
1991 अर्जुन सिंह कांग्रेस
1996 सुखलाल कुशवाहा बसपा
1998 रामानंद सिंह भाजपा
1999 रामानंद सिंह भाजपा
2004 गणेश सिंह भाजपा
2009 गणेश सिंह भाजपा
2014 गणेश सिंह भाजपा
2019 गणेश सिंह भाजपा
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