'कई परंपराएं टूटीं.. हर चरण में बदले मुद्दे, बाजार का खूब हुआ जिक्र', पढ़िए लोकसभा चुनाव के सात चरणों की सात प्रमुख बातें
Lok Sabha Election 2024 Round up 4 जून को आने वाले नतीजों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। मगर पिछले दो महीनों के दौरान जिस तरह की राजनीतिक सरगर्मी दिखाई दी है और सात चरणों के चुनाव में जो परिदृश्य दिखे हैं वह भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता को दर्शाते हैं। इसी पर पेश है जागरण की रिपोर्ट....
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 18वीं लोकसभा के गठन के लिए 19 अप्रैल, 2024 से जारी चुनाव प्रक्रिया अब अपने मुकाम पर पहुंचने को है। सात चरणों वाली यह प्रक्रिया आजादी के बाद वर्ष 1951-52 में आयोजित पहले चुनाव के बाद सबसे लंबा चुनाव रहा।
4 जून को आने वाले नतीजों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। मगर पिछले दो महीनों के दौरान जिस तरह की राजनीतिक सरगर्मी दिखाई दी है और सात चरणों के चुनाव में जो परिदृश्य दिखे हैं, वह भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता को दर्शाते हैं। इस चुनाव में कई परंपराएं टूटती भी नजर आई हैं। इसमें भविष्य की राजनीति की झलक भी दिखी। इसी पर पेश है जागरण की रिपोर्ट....
1. अब दरवाजे पर दस्तक नहीं देते माननीय
वजह चाहे भीषण गर्मी हो या देश में इंटरनेट मीडिया व दूसरे समाचार माध्यमों की बढ़ती पहुंच, लेकिन इस बार मोहल्ले-मोहल्ले या घर-घर जा कर चुनाव प्रचार करने की परंपरा पूरे देश में टूटती नजर आई है। गली-चौबारों में राजनीतिक दलों की पताका व चुनाव प्रचार सामग्रियों से पटे रहने के दिन तो पहले ही खत्म हो गए थे, लेकिन इस बार वोटरों से सीधे संवाद करने का तरीका भी पूरी तरह से बदला नजर आया।कुछ बड़े शहरों में रोड-शो निश्चित तौर पर पहले के मुकाबले ज्यादा हुए हैं, लेकिन ये सिर्फ बेहद प्रख्यात राजनीतिक हस्तियों तक ही सीमित रहे हैं। राजनीतिक तौर पर संवेदनशील शहरों को छोड़ दिया जाए तो दूसरी सीटों पर रोड-शो भी नहीं हुए। हां, हर उम्मीदवार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्थानीय यूट्यूब चैनलों के जरिये इसकी भरपाई की। कुछ हद तक कोविड महामारी के बाद संपर्क नहीं करने की बनी मानसिकता का भी यह असर हो सकता है।
2. तकरीबन द्वि-ध्रुवीय रहा चुनाव
इस बार के चुनाव की यह भी खासियत रही कि अरसे बाद देश के अधिकांश हिस्सों में द्वि-ध्रुवीय माहौल दिखा। विपक्षी दलों की एकता को लेकर जो भी संशय था वह चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही खत्म हो गई थी। बंगाल और पंजाब को छोड़ दिया जाए तो आईएनडीआईए गठबंधन एक साथ आया। इसका क्या असर हुआ यह तो चार जून को पता चलेगा, लेकिन अगर यह सफल रहता है तो इसका असर देश की राजनीति की दिशा और दशा पर देखने को मिल सकता है।भाजपा और आईएनडीआईए के बीच इस प्रतिद्वंदिता में एक बड़ा अंतर दिखा। यह था नेतृत्व व लीडर को लेकर स्पष्टता। भाजपा के पास पीएम नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व और मोदी सरकार के दस वर्षों के कार्यकाल का रिकॉर्ड रहा। भाजपा की पूरी चुनाव प्रक्रिया पीएम मोदी के इर्द-गिर्द ही रही और पीएम मोदी ने अभी अपने 80 साक्षात्कारों, 206 रैलियों व रोड-शो के जरिये अपने दम पर पूरा एजेंडा सेट किया।एक तरफ दस वर्षों तक आजमाया हुआ चेहरा, जबकि दूसरी तरफ नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता के बीच फैसला करना बहुत मुश्किल नहीं हो सकता।