Sidhi Lok Sabha Seat: कांग्रेस के हाथ से फिसल 'सीधी' बनी BJP का गढ़; जीत ने राजघराने के भाइयों में डाली थी फूट
Sidhi Lok Sabha Chunav 2024 updates देश के राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में आपको भी अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना भी जरूरी है ताकि इस बार किसको जिताना है यह तय करने में कोई दुविधा न आए। पढ़िए आज हम आपके लिए लाए हैं सीधी लोकसभा सीट और सीधी के सांसद के बारे में पूरी जानकारी...
नीलांबुज पांडे, सीधी। Sidhi Lok Sabha Election 2024 latest news: संसदीय सीट ‘सीधी’ शुरुआती दौर में सोशलिस्टों के कब्जे में थी। पहले दो चुनाव में यह शहडोल सीट के साथ जुड़ी थी। फिर कांग्रेस ने यहां अपनी पैठ बनाकर इसे अपना गढ़ बना लिया। साल 1962, 1967, 1980, 1984 और 1991 में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई। हालांकि, बीच में कई बार जनसंघ और भाजपा के प्रत्याशी भी जीते।
इसके बाद, भाजपा ने इस सीट पर अपना स्थायी कब्जा जमाया। कांग्रेस के हाथ से फिसली सीधी लोकसभा सीट तो अब भाजपा का गढ़ है। इस संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के कई दिग्गजों ने हाथ आजमाया, लेकिन उन्हें करारी शिकस्त मिली।पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह राहुल और भाई राव रणबहादुर सिंह भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। साल 2009, 2014 और 2019 में लगातार तीन चुनाव जीतकर भाजपा हैट्रिक लगा चुकी है। यहां भाजपा का वोट प्रतिशत भी लगातार बढ़ रहा है।
जीत के बाद भाइयों में बढ़ा विवाद
सीधी जिले के चुरहट के पूर्व राजघराने के सबसे बड़े बेटे व पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के भाई राव रणबहादुर सिंह साल 1971 में निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए। उनके मैदान में आने से भारतीय जनसंघ और कांग्रेस के नेताओं की चुनौती बढ़ गई। जनता ने राव रणबहादुर सिंह पर भरोसा जताया और लोकसभा में भेजा।बताया जाता है कि राव रणबहादुर सिंह के चुनाव मैदान में उतरने से अर्जुन सिंह नाराज थे। निर्दलीय चुनाव जीतने पर दोनों भाइयों में सियासी मतभेद भी शुरू हो गया। अर्जुन सिंह सीट को आरक्षित कराने के प्रयास में जुट गए। विवाद इतना बढ़ गया कि वह भाई के विरुद्ध कोर्ट में गवाही देने तक पहुंच गए थे।
वर्ष 1980 में यह सीट एसटी के लिए आरक्षित हो गई। वर्ष 2008 के परिसीमन के बाद फिर से सामान्य सीट हो गई। उधर, राव रणबहादुर सिंह वर्ष 1998 में चिन्मय मिशन आश्रम में रहने के लिए आ गए थे और अंत तक यहीं से जुड़े रहे।
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स्टिंग ऑपरेशन में फंस गए थे भाजपा सांसद
सीधी लोकसभा सीट 12 दिसंबर, 2005 को उस समय पूरे देश में चर्चा में आ गई, जब भाजपा के तत्कालीन सांसद चंद्र प्रताप सिंह पर सदन में सवाल पूछने के बदले 35 हजार रुपये की रिश्वत लेने के आरोप लगे। रिश्वत लेने का स्टिंग ऑपरेशन भी किया गया था। आरोपों की जांच करने के लिए सदन ने 23 दिसंबर, 2005 को विशेष समिति गठित की। जांच में चंद्र प्रताप सिंह दोषी पाए गए। उनके साथ 11 अन्य सांसद भी दोषी पाए गए थे। सांसदों को निष्कासित करने का प्रस्ताव सदन में लाया गया। इसके बाद सांसद को निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद वर्ष 2007 में उपचुनाव हुआ।उपचुनाव में कांटे की टक्कर में जीती कांग्रेस
वर्ष 2007 के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मानिक सिंह चुनाव मैदान में थे। तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। दोनों दलों की प्रतिष्ठा दांव पर थी। भाजपा के तमाम मंत्री और विधायक सीधी में डटे रहे तो कांग्रेस ने भी पूरा जोर लगा दिया। क्षेत्र की जनता ने अर्जुन सिंह के नाम को प्राथमिकता दी और मानिक सिंह जीत गए। मानिक सिंह केवल 1500 वोट से जीते थे। कांटे की टक्कर के इस चुनाव की क्षेत्र में अक्सर चर्चा होती है।तैयारी कर रहे थे गोविंद, रीति को मिला टिकट
साल 2014 की बात है। तत्कालीन भाजपा सांसद गोविंद मिश्रा दूसरी बार लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे थे। वे स्थानीय छत्रसाल स्टेडियम में कार्यकर्ताओं का सम्मेलन करने वाले थे। भाजपा ने एक दिन पहले देर शाम जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं रीति पाठक को प्रत्याशी बनाए जाने की घोषणा कर दिया। गोविंद मिश्रा टिकट कटने से हतप्रभ रह गए और उनके समर्थकों में मायूसी छा गई। दरअसल रीति पाठक का नाम टिकट की दौड़ में कहीं नहीं था। रीति पाठक ने यह चुनाव जीत लिया।अर्जुन की प्रतिष्ठा की दुहाई, राहुल के काम नहीं आई
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह राहुल को प्रत्याशी बनाया। उन्होंने अर्जुन सिंह 'दाऊ साहब' की प्रतिष्ठा से जोड़कर वोट मांगे, लेकिन इस चुनाव में भी भाजपा जीत हासिल करने में कामयाब रही। रीति पाठक के सामने अजय सिंह राहुल पौने तीन लाख मतों से पराजित हुए। अर्जुन सिंह की प्रतिष्ठा की दुहाई काम नहीं आई।'अबकी बारी-अटल बिहारी' के लगते थे नारे
भाजपा नेता सुधीर शुक्ला बताते हैं कि 1990 के दशक में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के पास चुनाव प्रचार के लिए संसाधनों की बेहद कमी थी। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे पर लोकसभा का चुनाव लड़ा जाता था।चुनाव प्रचार के दौरान क्षेत्र में आने-जाने के लिए वाहन व्यवस्था, बैनर, पोस्टर गिनती के हुआ करते थे। तब मोटरसाइकिल, साइकिल पर दरी लेकर कार्यकर्ता गांव में पहुंचते थे। गांव में बने घरों में दीवार लेखन किया जाता था और नारे लगाए जाते थे। उन्होंने बताया कि उस समय 'अबकी बारी-अटल बिहारी' का नारा लगाते थे। जहां गांव में लोग इकट्ठा हो जाते थे, वहीं सभा आयोजित हो जाती थी। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की राष्ट्रवादी, हिंदुत्व की विचारधारा को युवा पसंद करते थे।सीधी लोकसभा सीट में कितनी विधानसभा शामिल?
सीधी, चुरहट, धौहनी, सिहावल, देवसर, चितरंगी, सिंगरौली और ब्यौहारी (शहडोल) विधानसभा शामिल हैं।सीधी की ताकत
- कुल मतदाता - 20,18,153
- पुरुष मतदाता- 10,46,395
- महिला मतदाता- 9,71,744
- थर्ड जेंडर-14
सीधी ने इन नेताओं को पहनाया ताज
साल | सांसद | पार्टी |
1962 | आनंद चंद्र जोशी | कांग्रेस |
1967 | भानु प्रकाश सिंह | कांग्रेस |
1971 | राव रणबहादुर सिंह | निर्दलीय |
1977 | सूर्य नारायण सिंह | भारतीय लोकदल |
1980 | मोतीलाल सिंह | कांग्रेस |
1984 | मोतीलाल सिंह | कांग्रेस |
1989 | जगन्नाथ सिंह | भाजपा |
1991 | मोतीलाल सिंह | कांग्रेस |
1996 | तिलकराज सिंह | कांग्रेस |
1998 | जगन्नाथ सिंह | भाजपा |
1999 | चंद्रप्रताप सिंह बाबा | भाजपा |
2004 | चंद्रप्रताप सिंह बाबा | भाजपा |
2007 | मानिक सिंह- उपचुनाव | कांग्रेस |
2009 | गोविंद मिश्रा | भाजपा |
2014 | रीति पाठक | भाजपा |
2019 | रीति पाठक | भाजपा |