दक्षिण के दंगल में BJP का 'सिंघम', IPS से इस्तीफा देकर राजनीति में की एंट्री; मोदी-शाह भी कर चुके हैं तारीफ
Lok Sabha Election 2024 अगर तमिलनाडु में भाजपा ने अपनी अपेक्षाएं और लक्ष्य पूरे करने के साथ ही अपने प्रदर्शन से चौंकाया तो अन्नामलाई को इसका श्रेय तो जाएगा ही वह और बड़े कद के साथ लोगों के सामने आएंगे। यह उस राजनेता के लिए बड़ी बात होगी जो अगस्त 2020 में ही भाजपा में आया और एक वर्ष में राज्य इकाई का प्रमुख बना।
मनीष तिवारी, नई दिल्ली। के. अन्नामलाई की महंगी फ्रेंच घड़ी को लेकर सवाल उठाने वालों की कमी नहीं है, पर उनके विरोधी भी मानेंगे कि उनकी टाइमिंग शानदार है। सिंघम शैली के पुलिस अफसर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भरोसेमंद सिपाही बनने तक उनकी यात्रा उल्लेखनीय है।
तमिलनाडु में वह भाजपा का चेहरा भी हैं, उम्मीदें भी और भविष्य का भरोसा भी। उनकी लड़ाई केवल कोयंबटूर में भाजपा प्रत्याशी के रूप में ही नहीं है, बल्कि उनके सामने असल चुनौती तमिलनाडु में भाजपा के उदय को सुनिश्चित करने की है।
अन्नामलाई पर सारा दारोमदार
अगर राज्य में भाजपा ने अपनी अपेक्षाएं और लक्ष्य पूरे करने के साथ ही अपने प्रदर्शन से चौंकाया तो अन्नामलाई को इसका श्रेय तो जाएगा ही, वह और बड़े कद के साथ लोगों के सामने आएंगे। यह उस राजनेता के लिए बड़ी बात होगी, जो अगस्त 2020 में ही भाजपा में आया और एक वर्ष में राज्य इकाई का प्रमुख बना। उनमें छिपी संभावनाओं और उन्हें सही समय पर पहचाने जाने का भी यह प्रमाण होगा।अन्नामलाई की राजनीति आक्रामक है। पहले उनके हमले तमिलनाडु में सत्ताधारी द्रमुक की ओर थे और फिर समय तथा परिस्थितियां बदलने के साथ निशाना कुछ अवसरों पर सहयोगी एआइएडीएमके की ओर मुड़ गया। इस राजनीति ने उन्हें प्रशंसक दिए और भाजपा को एक ऐसे राज्य में आधार जहां द्रविडियन विचारधारा हावी रही है और दक्षिणपंथी सोच का स्थान सीमित रहा है। माना जा रहा है कि 19 अप्रैल को पूरे राज्य में एक साथ मतदान के साथ ही यह स्थिति बदलने वाली है।
कर्नाटक में आइपीएस अफसर के रूप में अपने मिजाज तथा कार्यशैली से अन्नामलाई युवाओं के चहेते पहले ही बन चुके थे। राजनीति में वह हमलावर तेवरों, आत्मविश्वास के साथ हावी होने वाली शारीरिक भाषा, तीखे-बुद्धिमत्तापूर्ण जवाबों के साथ कहीं बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करने में सफल हैं। उनके साथ एक सबसे बड़ा लाभ यह भी जुड़ा है कि पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को उन पर पूरा भरोसा है। सनातन संस्कृति के प्रति जबरदस्त आग्रह के बावजूद उन्होंने शायद ही कभी अल्पसंख्यक विरोधी कोई बात कही हो। दिलचस्प यह है कि वह कई जाने-पहचाने अल्पसंख्यक चेहरों को पार्टी के खेमे में लाने में सफल रहे। इनमें प्रमुख नाम रेसर अलीशा अब्दुल्ला का है।