Lok sabha Election 2024: चुनावी मौसम में गूंज रहे लुभावने नारे, जानिए ये किस तरह मतदाताओं पर डालते आ रहे प्रभाव
Lok sabha Election 2024 चुनाव का मौसम आते ही विभिन्न पार्टियां नारों से मतदाताओं को प्रभावित करती है। लोकसभा चुनाव में ये 1952 से प्रभावित करते रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार नारे चुनाव में न सिर्फ अहम भूमिका निभाते हैं बल्कि जनमत को दिशा देने का कार्य भी करते हैं। ऐसे नारों का क्या मनोविज्ञान होता है। ये किस तरह मतदाताओं को प्रभावित करते हैं? पढ़िए रिपोर्ट...।
Lok sabha Election 2024: अबकी बार... मोदी सरकार’ 2014 में यह नारा लोगों की जुबां पर ऐसा छाया कि भाजपा पूरे बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में काबिज हो गई। अब 10 साल बाद इस नारे को विस्तार मिला है-’ फिर एक बार...मोदी सरकार’। नारे चुनाव में न सिर्फ अहम भूमिका निभाते हैं, बल्कि जनमत को दिशा देने का कार्य भी करते हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एसके द्विवेदी कहते हैं कि ‘चुनावी नारों का बहुत महत्व होता है। कम शब्दों में अपनी बात को प्रभावी ढंग से इन्हीं के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जाता है। बड़ी संख्या में अशिक्षित लोगों को नारों के माध्यम से ही राजनीतिक दल अपनी बात समझाते हैं।’ चुनावी नारों के अतीत और वर्तमान पर राज्य ब्यूरो के वरिष्ठ संवाददाता आशीष त्रिवेदी की दृष्टि...।
नारों की लड़ाई, चाहे कांग्रेस हो या भाजपाई
इस बार भी नारों की लड़ाई है। चुनाव प्रचार करने निकल रहीं भाजपा कार्यकर्ताओं की टोलियां ‘एक ही नारा एक ही नाम, जय श्रीराम जय श्रीराम’ और ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ नारे के साथ दिख रहीं हैं तो विरासत टैक्स को लेकर मचे घमाचान के बीच चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मंच से यह कहना कि ‘कांग्रेस की लूट जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी’ अब धीरे-धीरे लोगों की जुबान पर चढ़ रहा है। वहीं कांग्रेस की अगुवाई वाला आइएनडीआइए ‘हाथ बदलेगा हालात’ का चुनावी नारा लेकर मैदान में कूदा है। वह बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और किसानों की आय दोगुणी न होने के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है।
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नारों की भूमिका पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. डीआर साहू कहते हैं कि ‘चुनाव में ये नारे उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। ये कहीं न कहीं लोगों को प्रभावित जरूर करते हैं। चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, वे अपनी बातों को लोगों तक आसानी से इनकी मदद से पहुंचा देता है।’ आइएनडीआइए ने उत्तर प्रदेश के लिए ‘न्याय का हाथ, सपा का साथ, बदलेंगे यूपी के हालात’ और ‘झूठ का चश्मा उतारिए, सरकार बदलिए-हालात बदलिए’ आदि नारे लोगों के बीच दिए हैं। सपा ‘अबकी बार भाजपा साफ’ का नारा लगा रही है। अखिलेश अपनी चुनावी सभाओं में यह नारा लगाने से नहीं चूकते।
नारों में छिपा होता है मनोविज्ञान
लखनऊ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की अध्यक्ष प्रो. अर्चना शुक्ला कहती हैं कि ‘चुनावी नारों से पार्टियां अपनी बात रखती हैं। इसे मनोविज्ञान की भाषा में अतिरिक्त सकारात्मक पुष्टि कहा जाता है। चाहे वह कोई दल हो या व्यक्ति विशेष, इसके जरिए लोग उससे सीधा जुड़ते हैं।’ बसपा के नेता अपना भाषण ‘जय भीम-जय भारत’ से शुरू कर अपना परंपरागत वोट बैंक साधने में जुटे हैं। मायावती के भतीजे आकाश आनंद अपनी चुनावी सभाओं में ‘मुझे मुफ्त राशन नहीं, बहनजी का शासन चाहिए’ का नारा जोर-शोर से लगा रहे हैं।चुनावी मौसम आए तो नारों की बयार भी खूब बहती है। कोई भी चुनाव हो तो उसके तमाम नारे लोगों के मन-मस्तिष्क पर छाते हैं। भाते हैं। वे न केवल सत्ता के द्वार खोलने का जरिया बनते हैं, बल्कि बाहर करने में भी अहम भूमिका निभाते रहे हैं। इस बार भी भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा के मंचों से नारे गूंज रहे हैं।