Lok Sabha Election 2024: दक्षिण की इस सीट पर द्रविड़ धारा की राजनीति को नहीं मिली जगह, इनके बीच है मुकाबला, जानिए क्या कहते हैं समीकरण
Kanniyakumari Lok Sabha Seat दक्षिण की राजनीति में द्रविण धारा की पार्टियों का ही दबदबा रहता है लेकिन इसके बावजूद तमिलनाडु की कुछ सीटें ऐसी हैं जहां पर दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और कांग्रेस ही हावी रही हैं। देश के आखिरी समुद्री सीमा तट के संसदीय क्षेत्र कन्याकुमारी में भी कमोबेश यही स्थिति है। जानिए इस सीट पर क्या हैं सामाजिक और सियासी समीकरण।
संजय मिश्र, कन्याकुमारी। तमिलनाडु की राजनीति में भले ही क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व पांच दशक से अधिक से कायम है मगर सुदुर दक्षिण में देश के आखिरी समद्री सीमा तट के संसदीय क्षेत्र कन्याकुमारी में भाजपा और कांग्रेस ने द्रविड पार्टियों को उभरने का मौका नहीं दिया।
इस बार भी द्रविड़ धारा के दलों के लिए गुंजाइश नहीं है। मुकाबला सीधे भाजपा-कांग्रेस के बीच ही है। द्रविड़ पार्टियां सहयोगी की भूमिका से आगे दिखाई नहीं दे रही हैं। प्रदेश में कन्याकुमारी जैसी दो-चार सीटे ही ऐसी हैं जहां दोनों राष्ट्रीय दलों को चुनावी विमर्श के अभियान को संचालित करने के लिए क्षेत्रीय दलों की बैशाखी की जरूरत नहीं है। धार्मिक-सामाजिक ध्रुवीकरण को भी चुनाव परिणाम की दिशा तय करने में अहम भूमिका माना जा रहा है।
समृध्द इतिहास
कन्याकुमारी का राजनीतिक इतिहास समृद्ध है, क्योंकि मशहूर स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे के कामराज ने कभी इसका प्रतिनिधित्व किया था। 2009 से पहले इस सीट का नाम नागर कोयल था। इस ऐतिहासिक क्षेत्र में द्रविड़ पार्टियों की गुंजाइश का रास्ता रोकने को लेकर दोनों राष्ट्रीय दल सचेत हैं। जोखिम लेने से भी बच रहे हैं।तमिलनाडु के पूर्व सीएम दिग्गज करुणानिधि की यह टिप्पणी द्रविड़ दलों की कन्याकुमारी में संघर्ष करते रहने की स्थिति बयान करती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि तिरूनलवेली तक ही उनकी सीमा है। कन्याकुमारी उनके लिए हमेशा समस्या रही है। तिरूनलवेली पड़ोसी जिला है। वहां भी मुकाबला कांग्रेस तथा भाजपा के बीच ही है।
भाजपा-कांग्रेस ने इन पर लगाया दांव
कन्याकुमारी में भाजपा ने लगातार 10वीं बार पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री पोन राधाकृष्णनन को तो कांग्रेस ने पांच बार से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे वसंत परिवार के विजय वसंत को मैदान में उतारा है। वसंत के पिता एच वसंता कुमार पांच बार लगातार कांग्रेस से सांसद रहे थे और उनके निधन के बाद 2021 में हुए उपचुनाव में पार्टी ने उनके बेटे विजय को टिकट दिया और वे जीत गए।दक्षिण में भाजपा के लिए मुश्किल दुर्ग रहे तमिलनाडु में इस बार सेंध लगाने के लिए भाजपा ने ताकत झोंक रखी है। इसीलिए पीएम मोदी ने राज्य में चुनाव प्रचार की शुरुआत कन्याकुमारी से ही की। राहुल गांधी की कन्याकुमारी से कश्मीर की चर्चित भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत यहीं से हुई थी, जिसकी सफलता के किस्से वर्तमान चुनाव में भी सुनाए जा रहे हैं।
वास्तविकता यह भी है कि कन्याकुमारी में भाजपा का प्रभाव होने की बड़ी वजह यहां लंबे समय से जारी धार्मिक ध्रुवीकरण है। मगर यहां मामला हिंदू-मुस्लिम का नहीं बल्कि ईसाई और हिंदू का है। क्षेत्र में करीब 50 प्रतिशत हिंदू है तो इसाई 46 प्रतिशत। मुस्लिम चार प्रतिशत हैं। 1970 की शुरुआत में हिंदू-इसाई समुदाय के बीच दंगों के बाद चुनाव में धार्मिक गोलबंदी राजनीति को प्रभावित करती रही है।
नहीं लिया जोखिम
भाजपा ने अपने बुजुर्ग नेता राधाकृष्णनन को चुनाव मैदान में उतार कर प्रयोग का जोखिम नहीं लिया है। दावा किया जा रहा कि इससे भाजपा के स्थानीय नेताओं का एक वर्ग नए लोगों की अनदेखी से असहज है। हालांकि राधाकृष्णनन की साफ-सुथरी मिलनसार छवि ऐसे असंतोष पर भारी है और संसदीय क्षेत्र के मुख्य शहर नागरकोयल के भाजपा समर्थक युवा वेलुपत कहते हैं कि सरल होते हुए भी वे यहां इसाई समुदाय के प्रभाव को तगड़ी चुनौती देते हैं। ऐसे में उनसे बेहतर उम्मीदवार नहीं हो सकता। चुनाव से जुड़ी और हर छोटी-बड़ी अपडेट के लिए यहां क्लिक करेंवास्तविकता यह भी है कि कन्याकुमारी में भाजपा का प्रभाव होने की बड़ी वजह यहां लंबे समय से जारी धार्मिक ध्रुवीकरण है। मगर यहां मामला हिंदू-मुस्लिम का नहीं बल्कि ईसाई और हिंदू का है। क्षेत्र में करीब 50 प्रतिशत हिंदू है तो इसाई 46 प्रतिशत। मुस्लिम चार प्रतिशत हैं। 1970 की शुरुआत में हिंदू-इसाई समुदाय के बीच दंगों के बाद चुनाव में धार्मिक गोलबंदी राजनीति को प्रभावित करती रही है।