Loksabha Election 2024: आंध्र प्रदेश में TDP की टूटती सांस को BJP से संजीवनी की आस, प्रदेश में दिख रहे नए सियासी समीकरण
आंध्र प्रदेश में कांग्रेस का छह दशक तक दबदबा रहा। तेदेपा के संस्थापक एनटी रामाराव ने आंध्र प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस को पहली बार 1983 में बाहर किया था। एनटीआर के दामाद चंद्र बाबू ने 1995 में तेदेपा का नेतृत्व संभाला। 2009 तक कांग्रेस- तेदेपा में ही मुकाबला होता रहा लेकिन वाइएसआर कांग्रेस के गठन के साथ ही कांग्रेस निस्तेज होती चली गई।
अरविंद शर्मा, विजयवाड़ा। 2014 में हुए विभाजन ने आंध्र प्रदेश की राजनीति को गहरे तक प्रभावित किया है। जहां कभी कांग्रेस की तूती बोलती थी, उसी की टूटन से बनी वाइएसआर कांग्रेस ने अपनी जड़ें गहरी करते हुए न सिर्फ तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) को कमजोर किया, बल्कि कांग्रेस का तो लगभग सफाया कर दिया।
अब उत्तर की तरह दक्षिण में अनुकूल माहौल बनाने में जुटी भाजपा को तेदेपा के रूप में अच्छा एवं अनुभवी साथी मिलने से राजग में जान आ गई है। पवन कल्याण की जन सेना पार्टी (जेएसपी) की नई ऊर्जा भी राजग के वोट में वृद्धि कर सकती है। तीनों मिलकर वाइएसआर कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने की तैयारी में हैं। इससे न सिर्फ राजग को अपनी जमीन मजबूत होते दिख रही है, बल्कि तेदेपा को टूटती सांस को भी संजीवनी मिलने की आस है।
विपक्ष की भूमिका में तेदेपा
आंध्र प्रदेश में लोस की 25 एवं विस की 175 सीटें हैं। दोनों के चुनाव साथ होते हैं। पांच वर्षों से जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व में राज्य में वाइएसआर कांग्रेस की सरकार है। विपक्ष की भूमिका में तेदेपा है, जिसका नेतृत्व चंद्रबाबू नायडु करते हैं। वह तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके, पर अब उनकी चमक फीकी पड़ती जा रही है। 2018 के पहले तेदेपा भी राजग की घटक होती थी, पर आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने पर छह वर्ष पहले उसने रिश्ता तोड़ लिया था।ये भी पढ़ें:
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संयुक्त आंध्र प्रदेश में भाजपा की कहानी शुरू होती है 1998 से । तेदेपा (लक्ष्मी पार्वती गुट) से दोस्ती कर पहली बार संयुक्त आंध्र प्रदेश में चार सीटें जीती थीं। 18 प्रतिशत वोट भी मिले थे। 1999 में तेदेपा के सहारे भाजपा ने 10 प्रतिशत वोट के साथ सात सीटें जीत ली थीं। 2004 और 2009 के लोस चुनाव में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली। 2014 में भाजपा- तेदेपा मिलकर लड़े तो दोनों को सीट और वोट का लाभ मिला। भाजपा के तीन सांसद और नौ विधायक जीतकर आए। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से तेदेपा के अलग होने पर दोनों को क्षति हुई। तेदेपा गिरकर तीन सीट पर आ गई और भाजपा खाता भी नहीं खोल सकी।