‘गद्दार’ VS ‘वफादार’ की जंग और मैदान में बेटा; सीएम शिंदे की नाक का सवाल बना ठाणे, क्या उद्धव का दांव बदल देगा नतीजे?
महाराष्ट्र में 2019 की तुलना में इस बार के चुनाव काफी अलग हैं। एकनाथ शिंदे जिन्होंने जून 2022 में शिवसेना से बगावत की और भाजपा के सहयोग से राज्य के मुख्यमंत्री बने। 2019 के चुनाव में वह उद्धव संग प्रचार कर रहे थे। ठाणे शिंदे का गृह जनपद और गढ़ तो है ही यहां की दोनों सीटों पर उनका सीधा मुकाबला शिवसेना (उद्धव गुट) के उम्मीदवारों से हो रहा है।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। मुंबई के पड़ोसी ठाणे जिला की दो लोकसभा सीटें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की नाक का सवाल बन गई हैं। दरअसल, ठाणे शिंदे का गृह जनपद और गढ़ तो है ही, यहां की दोनों सीटों पर उनका सीधा मुकाबला शिवसेना (उद्धव गुट) के उम्मीदवारों से हो रहा है।
कुछ वर्ष पहले तक ठाणे क्षेत्रफल और आबादी की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा जिला हुआ करता था। पालघर को इससे काटकर नया जिला बना दिए जाने के बाद भी तीन लोकसभा सीटें और सात महानगरपालिकाएं अब भी ठाणे जिले में आती हैं। यह शिवसेना का पुराना गढ़ भी रहा है।
शिवसेना ने 1967 में ठाणे नगरपालिका से ही पहली बार चुनाव लड़कर राजनीति में कदम रखा था। तब वह ठाणे नगरपालिका की 40 में से 17 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। बाद में शिवसेना के एक दिग्गज नेता आनंद दिघे के नेतृत्व में ठाणे में भी शिवसेना उतनी ही मजबूत होकर उभरी, जितनी की मुंबई में। उन्हीं आनंद दिघे के शिष्य हैं एकनाथ शिंदे, जिन्होंने जून 2022 में शिवसेना से बगावत की हिम्मत जुटाई और भाजपा के सहयोग से राज्य के मुख्यमंत्री बने।
सीएम के बेटे का मुकाबला वैशाली दरेकर
इसी ठाणे जिले की तीन में से दो लोकसभा सीटों पर इस बार उनका सीधा मुकाबला उद्धव ठाकरे की शिवसेना से हो रहा है। कल्याण सीट पर तो 2014 से उनके पुत्र डॉ. श्रीकांत शिंदे ही जीतते आ रहे हैं। इस बार भी उन्हीं को टिकट मिला है। उनका मुकाबला शिवसेना (उद्धव गुट) की उम्मीदवार वैशाली दरेकर से हो रहा है।दरेकर दो बार कल्याण डोंबिवली महानगरपालिका की सभासद रह चुकी हैं। वह 2009 का लोकसभा चुनाव भी मनसे के टिकट पर लड़ चुकी हैं। इस बार वह श्रीकांत शिंदे को टक्कर देने उतरी हैं।
इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली छह में से तीन विधानसभा सीटों पर भाजपा, एक पर शिवसेना शिंदे गुट का और एक पर अब राजग का ही समर्थन कर रही मनसे का कब्जा है। सिर्फ एक सीट शिवसेना (उद्धव गुट) की सहयोगी राकांपा (शरद गुट) के पास है।मुख्यमंत्री शिंदे ने और भी कई क्षेत्रीय समीकरण अपने पुत्र के पक्ष में कर लिए हैं। इससे डॉ. श्रीकांत शिंदे के सामने दरेकर कोई बड़ी चुनौती नहीं बनती दिख रही हैं, लेकिन ठाणे जिले के ही ठाणे लोकसभा क्षेत्र में एकनाथ शिंदे गुट के उम्मीदवार नरेश म्हस्के की राह उतनी आसान नहीं है।
नरेश म्हस्के का मुकाबला ठाणे से ही दो बार के सांसद राजन विचारे से हो रहा है। जून 2022 में शिवसेना में हुए विभाजन के समय राजन विचारे ने एकनाथ शिंदे के साथ जाने के बजाय उद्धव के साथ रहने का फैसला किया था। शिंदे की तरह ही वह भी ठाणे के दिग्गज शिवसेना नेता रहे आनंद दिघे का ही शिष्य होने का दावा करते हैं।अब चुनाव के दौरान वह उद्धव गुट के अन्य नेताओं की तरह वफादार और गद्दार का जुमला उछालते दिख रहे हैं। उनका कहना है कि ठाणे में मुकाबला ‘गद्दार’ और ‘वफादार’ के बीच हो रहा है। वह ऐसा कहकर पुराने शिवसैनिकों की सहानुभूति अपनी ओर खींचना चाहते हैं।