Lok Sabha Election 2024: बाहर भी खूब चमके बाराबंकी के योद्धा, इन चार दिग्गजों ने राष्ट्रीय पटल पर बनाई पहचान
Lok Sabha Election 2024 उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के सियासी योद्धा अन्य लोकसभा सीटों पर भी अपनी पताका फहरा चुके हैं। इतना ही नहीं इन्होंने राष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान भी स्थापित की। बाराबंकी में इस बार बाहरी का मुद्दा उठा है। इस बीच आइए जानते हैं उन नेताओं के बारे में जिन्होंने दूसरे जिलों में जाकर वहां जीत हासिल की।
जागरण, बाराबंकी। मौसम कोई भी हो, लेकिन चुनाव आते ही घर और बाहरी की चर्चा हवा में घुलने लगती है। बाहरी प्रत्याशी स्वयं को जनता से जोड़ने के लिए नए-नए संबंध गढ़ते हैं तो स्थानीय इसे दिखावे की राजनीति बताकर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करते हैं।
हालांकि, जनता अपने भरोसे पर नापतौल कर ही मतदान करती है, फिर चाहे कुर्सी स्थानीय प्रत्याशी के हिस्से में जाए या बाहरी के। जिले के कई ऐसे राजनेता रहे हैं, जिन्होंने दूसरे जनपदों में जाकर न सिर्फ चुनाव जीता, बल्कि वहां की जनता के मन पर अमिट छाप भी छोड़ी। बाराबंकी से आनंद त्रिपाठी की रिपोर्ट...
रफी अहमद किदवई
सबसे पहला नाम आता है स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के निजी सचिव रह चुके रफी अहमद किदवई का। मसौली निवासी रफी अहमद वर्ष 1952 में कांग्रेस के टिकट पर बहराइच पूर्वी लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे और जीत दर्ज की थी। इन्हें नेहरू कैबिनेट में कृषि मंत्री भी बनाया गया था।यह भी पढ़ें: चौथे चरण की 15 हाई प्रोफाइल सीटें: 5 केंद्रीय मंत्री, एक पूर्व मुख्यमंत्री व दो क्रिकेटर मैदान में; फिल्म अभिनेता समेत दांव पर इनकी साख
24 अक्टूबर 1954 को हृदयगति रुकने से उनका निधन हो गया। इनके नाम से जिला अस्पताल और रफी नगर रेलवे स्टेशन बनाया गया है। वहीं, बाराबंकी शहर के रहने वाले अनंतराम जायसवाल वर्ष 1977 में पड़ोसी लोकसभा फैजाबाद से सांसद चुने गए थे। वह तब भारतीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़कर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे थे।
सबसे ज्यादा बार जीते बेनी प्रसाद वर्मा
तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के दायां हाथ कहे जाने वाले सपा के कद्दावर नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने सर्वप्रथम 1984 में कैसरगंज लोकसभा सीट से भाग्य आजमाया था, लेकिन उस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
वर्ष 1996 में वह सपा के टिकट पर कैसरगंज सीट से दोबारा मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। इसके बाद लगातार 1998, 99 व 2004 में भी जीत की माला बेनी बाबू के गले में सजती रही। वर्ष 2009 में वह गोंडा से कांग्रेस के टिकट पर विजय प्राप्त कर संसद पहुंचे थे, लेकिन वर्ष 2014 का चुनाव हार गए।