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Lok Sabha Election 2024: बाहर भी खूब चमके बाराबंकी के योद्धा, इन चार दिग्गजों ने राष्ट्रीय पटल पर बनाई पहचान

Lok Sabha Election 2024 उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के सियासी योद्धा अन्य लोकसभा सीटों पर भी अपनी पताका फहरा चुके हैं। इतना ही नहीं इन्होंने राष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान भी स्थापित की। बाराबंकी में इस बार बाहरी का मुद्दा उठा है। इस बीच आइए जानते हैं उन नेताओं के बारे में जिन्होंने दूसरे जिलों में जाकर वहां जीत हासिल की।

By Ajay Kumar Edited By: Ajay Kumar Updated: Thu, 09 May 2024 06:21 PM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: बाहर भी खूब चमके बाराबंकी के योद्धा।
जागरण, बाराबंकी। मौसम कोई भी हो, लेकिन चुनाव आते ही घर और बाहरी की चर्चा हवा में घुलने लगती है। बाहरी प्रत्याशी स्वयं को जनता से जोड़ने के लिए नए-नए संबंध गढ़ते हैं तो स्थानीय इसे दिखावे की राजनीति बताकर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करते हैं।

हालांकि, जनता अपने भरोसे पर नापतौल कर ही मतदान करती है, फिर चाहे कुर्सी स्थानीय प्रत्याशी के हिस्से में जाए या बाहरी के। जिले के कई ऐसे राजनेता रहे हैं, जिन्होंने दूसरे जनपदों में जाकर न सिर्फ चुनाव जीता, बल्कि वहां की जनता के मन पर अमिट छाप भी छोड़ी। बाराबंकी से आनंद त्रिपाठी की रिपोर्ट...

रफी अहमद किदवई

सबसे पहला नाम आता है स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के निजी सचिव रह चुके रफी अहमद किदवई का। मसौली निवासी रफी अहमद वर्ष 1952 में कांग्रेस के टिकट पर बहराइच पूर्वी लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे और जीत दर्ज की थी। इन्हें नेहरू कैबिनेट में कृषि मंत्री भी बनाया गया था।

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24 अक्टूबर 1954 को हृदयगति रुकने से उनका निधन हो गया। इनके नाम से जिला अस्पताल और रफी नगर रेलवे स्टेशन बनाया गया है। वहीं, बाराबंकी शहर के रहने वाले अनंतराम जायसवाल वर्ष 1977 में पड़ोसी लोकसभा फैजाबाद से सांसद चुने गए थे। वह तब भारतीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़कर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे थे।

सबसे ज्यादा बार जीते बेनी प्रसाद वर्मा

तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के दायां हाथ कहे जाने वाले सपा के कद्दावर नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने सर्वप्रथम 1984 में कैसरगंज लोकसभा सीट से भाग्य आजमाया था, लेकिन उस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

वर्ष 1996 में वह सपा के टिकट पर कैसरगंज सीट से दोबारा मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। इसके बाद लगातार 1998, 99 व 2004 में भी जीत की माला बेनी बाबू के गले में सजती रही। वर्ष 2009 में वह गोंडा से कांग्रेस के टिकट पर विजय प्राप्त कर संसद पहुंचे थे, लेकिन वर्ष 2014 का चुनाव हार गए।

मोहसिना ने आजमगढ़ उपचुनाव में खोला था कांग्रेस का खाता

इमरजेंसी के बाद हुए वर्ष 1977 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका था। आजमगढ़ से जनता पार्टी के रामनरेश यादव सांसद चुने गए थे, लेकिन थोड़े ही दिन बाद वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद वर्ष 1978 में आजमगढ़ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बड़ागांव निवासी मोहसिना किदवई ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्जकर इतिहास रच दिया और कांग्रेस के सूखे को समाप्त किया।

अब 92 साल की हैं मोहसिना किदवई

मोहसिना वर्ष 1980 व 84 में मेरठ लोकसभा सीट से भी सांसद चुनी गईं। भांजे फवाद किदवई बताते हैं कि इस समय मोहसिना किदवई की उम्र 92 वर्ष है। तबीयत अब ठीक नहीं रहती है, लेकिन जब मन होता है तो अपने चुनाव के किस्से सुनाने लगती हैं। उस समय उनकी आंखों की चमक देखने वाली होती है।

गोंडा सीट से श्रेया वर्मा मैदान में

स्व. बेनी प्रसाद वर्मा की पौत्री श्रेया वर्मा को सपा ने गोंडा से प्रत्याशी बनाया है। श्रेया का यह पहला चुनाव है। जिसमें उनके पास उनकी उपलब्धियों के रूप में अपने बाबा बेनी बाबू के किए गए काम ही हैं। श्रेया के पिता पूर्व मंत्री राकेश वर्मा भी उनके साथ हैं। श्रेया बेनी बाबू की सियासत की तीसरी पीढ़ी की विरासत हैं।

फिर उछला बाहरी का मुद्दा

बाराबंकी लोकसभा सीट से इस बार बसपा ने मूलरूप से औरैया निवासी शिव कुमार दोहरे को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि, वह करीब 25 वर्ष से लखनऊ में रहते हैं। भाजपा से राजरानी रावत व आइएनडीआइए से तनुज पुनिया मैदान में हैं। बसपा प्रत्याशी के नामांकन के बाद पत्रकारों ने बाहरी होने का सवाल किया तो इसका जवाब बसपा जिलाध्यक्ष केके रावत ने यह कहकर दिया कि यह कहां बाहरी हैं, पुनिया तो हरियाणा से आए हैं।

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