Move to Jagran APP

कांग्रेस-वामपंथ से भाजपा तक... बिहार में कैसे हुआ दलों का सियासी उभार? पढ़ें- कब किसने बनाई अपनी पैठ

Lok Sabha Election 2024 बिहार की राजनीति में समय-समय पर अलग-अलग सियासी दलों का प्रभाव रहा। शुरुआत में कांग्रेस यहां प्रभावशाली रही। इसके बाद वामपंथ और समाजवाद ने भी जगह बनाई। बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी अपनी पैठ बनाई। 1967 के आम चुनाव में पहली बार पटना में कांग्रेस का किला दरका था। पढ़ें बिहार की राजनीति से जुड़ी ये दिलचस्प रिपोर्ट...

By Ajay Kumar Edited By: Ajay Kumar Updated: Tue, 09 Apr 2024 06:54 PM (IST)
Hero Image
लोकसभा चुनाव 2024: कभी कांग्रेस से लेकर वामपंथ व समाजवाद फिर भाजपा की पैठ।

व्यास चंद्र, पटना। कभी मगध की राजधानी के रूप में राजनीति के कई उतार-चढ़ाव को देख चुका पाटलिपुत्र। जिसने राजशाही देखी थी। समय चक्र के साथ पाटलिपुत्र से बिहार की राजधानी पटना तक की यात्रा में कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव भी देखे। बात चाहे प्राचीन भारत के इतिहास की हो या आधुनिक की, राजतंत्र से लोकतंत्र तक की सदियों की यात्रा में कई शासक हुए, जिन्होंने इसके गौरव को बढ़ाया।

राजनीति में इनका रहा प्रभाव

मौर्य, गुप्त, शुंग, से लेकर मुगल, फिर अंग्रेजी शासन तक को देखने वाली धरती। जब लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रभावी हुई तो सरकार जनता के मतों से बनने लगी। इस लोकसभा चुनाव में एक बार फिर राजनीतिक बिसात बिछ चुकी है। शह और मात की रणनीति बनने लगी है। इतिहास पर नजर डालें तो यहां की राजनीति पर कांग्रेस से लेकर वामपंथ, समाजवाद से लेकर दक्षिणपंथी राजनीति तक का प्रभाव रहा है।

तब पटना में थे चार लोकसभा क्षेत्र

आजादी के बाद डेढ़ दशक तक पटना पर कांग्रेस का एकछत्र राज था। आजादी के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में पटना के नाम से चार लोकसभा क्षेत्र थे। सभी पर कांग्रेस उम्मीदवार विजयी हुए थे। पाटलिपुत्र सीट से सारंगधर सिंह, पटना मध्य से कैलाशपति सिन्हा, पटना पूर्वी से तारकेश्वरी सिन्हा, पटना सह शाहाबाद से बलिराम भगत सांसद चुने गए थे।

परिसीमन में दो सीटें आई अस्तित्व में

पांच वर्षों बाद 1957 में दूसरा आमचुनाव हुआ। परिसीमन के बाद पटना जिला में क्रमश: पटना और बाढ़ लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया। एक बार फिर कांग्रेस ने दोनों सीटें अपनी झोली में डालीं। पटना लोकसभा सीट से सारंगधर सिंह और बाढ़ से तारकेश्वरी सिन्हा ने संसद भवन का सफर तय किया।

यह भी पढ़ें: मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त राजीव कुमार को मिली 'Z' कैटेगरी की सुरक्षा, जानिए गृह मंत्रालय ने क्‍यों लिया यह फैसला

1967 में हुए चुनाव में बाढ़ सीट पर फिर से जनादेश तारकेश्वरी सिन्हा को मिला। पटना सीट पर रामदुलारी देवी विजेता बनीं। पटना की दोनों सीटों पर महिला सांसद चुनी गईं।

संपूर्ण क्रांति ने छीनी कांग्रेस की दोनों सीटें

देश में संपूर्ण क्रांति की लहर चलने लगी। चुनाव आते-आते इस क्रांति ने जोर पकड़ लिया। कांग्रेस विरोधी लहर में बाढ़ सीट कांग्रेस से छिन गई। पटना सीट भी सीपीआई से छिन गई। बाढ़ से श्याम सुंदर गुप्ता, जबकि पटना से महामाया प्रसाद सिन्हा भारतीय लोक दल से दिल्ली पहुंचने में सफल रहे।

1980 में पटना सीट पर सीपीआई ने किया कब्जा

केंद्र में मची उथल-पुथल के बीच 1980 में फिर चुनाव हुए। बाढ़ से एक बार फिर धरमवीर सिंह सांसद चुने गए। वे कांग्रेस (आई) से अलग हुए गुट कांग्रेस यू के टिकट पर विजयी हुए। वहीं पटना सीट पर सीपीआई के रामअवतार शास्त्री जीते। वैसे, मध्यावधि चुनाव की शुरुआत तो 1971 से ही हो चुकी थी, वह सिलसिला जारी था।

1984 में कांग्रेस ने की वापसी

1984 में हुए चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस का झंडा बुलंद हुआ। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में बाढ़ से प्रकाश चंद्रा तो पटना से डॉ. सीपी ठाकुर सांसद बने। समय बीतने के साथ कांग्रेस का जनाधार खिसकने लगा था। वामपंथ की बुलंदी भी कम होने लगी थी।

जब पटना सीट पर जीती भाजपा

भारतीय जनता पार्टी केंद्र की राजनीति में सशक्त होने लगी थी। इसका असर 1989 के आम चुनाव में पड़ा। बाढ़ से जनता दल के उम्मीदवार के रूप में नीतीश कुमार तो पटना से भाजपा के शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव ने जीत हासिल की। 1991 के चुनाव में बाढ़ से नीतीश कुमार एक बार फिर चुने गए।

1967 में पहली बार दरका कांग्रेस का किला

1967 के आम चुनाव में पहली बार पटना में कांग्रेस का किला दरक गया। बाढ़ तो कांग्रेस के पास रहा, लेकिन पटना सीट पर लाल झंडा कायम हो गया। बाढ़ से कांग्रेस के टिकट पर तारकेश्वरी सिन्हा तो पटना से सीपीआई के रामअवतार शास्त्री सांसद चुने गए।

1969 में केंद्र में बनी अल्पमत सरकार के कारण 1971 में आम चुनाव हुआ। बाढ़ लोकसभा क्षेत्र पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा। धरमवीर यहां से सांसद बने। पटना से फिर सीपीआई के रामअवतार शास्त्री लोकसभा पहुंचे।

2004 में नीतीश और सीपी ठाकुर से राजद ने छीनीं दोनों सीट

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने समय से कुछ पहले ही लोकसभा चुनाव में कूदने का फैसला लिया, लेकिन यह निर्णय उनके पक्ष में नहीं गया। केंद्र से सरकार तो गई ही पटना की दोनों लोकसभा सीटों पर राजद ने कब्जा जमा लिया। बाढ़ से विजय कृष्ण ने नीतीश कुमार को, जबकि पटना से रामकृपाल यादव ने डॉ. सीपी ठाकुर को शिकस्त दे दी। इसके बाद दोनों लोकसभा क्षेत्रों का अस्तित्व भी समाप्त हो गया।

पटना साहिब सीट से शत्रुघ्न सिन्हा भी जीते

2008 में नए सिरे से परिसीमन के बाद पटना साहिब और पाटलिपुत्र सीट अस्तित्व में आई। 2009 में हुए चुनाव में पटना साहिब से भाजपा नेता के रूप में अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने जबकि पाटलिपुत्र सीट से जदयू के रंजन प्रसाद यादव ने जीत हासिल की।

 2014 में पटना की दोनों सीटों पर कमल खिला। पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा, जबकि पाटलिपुत्र से रामकृपाल यादव ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में परचम फहराया। इसके अगले चुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा की जगह रविशंकर प्रसाद ने पटना साहिब सीट जीती।

इंद्र कुमार गुजराल के सामने उतरे थे यशवंत सिन्हा

1991 में पटना लोकसभा सीट हाइप्रोफाइल हो गई, लेकिन परिणाम से पहले विवादों में घिर गई। तब जनता दल के उम्मीदवार के रूप में इंद्र कुमार गुजराल तो समाजवादी जनता पार्टी से पूर्व आईएएस अधिकारी यशवंत सिन्हा आमने-सामने थे। बूथ कैप्चरिंग और धांधली की शिकायतों के बाद यहां का चुनाव रद्द कर दिया गया था।

पांच बार बाढ़ के सांसद चुने गए नीतीश कुमार

इसके बाद 1993 में यहां से जनता दल से रामकृपाल यादव सांसद चुने गए। 1996 में बाढ़ से नीतीश कुमार समता पार्टी तो पटना सीट से जनता दल से रामकृपाल यादव एक बार फिर विजेता बने। 1998 में बाढ़ से समता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में नीतीश कुमार, जबकि पटना से डॉ. सीपी ठाकुर ने भाजपा का झंडा बुलंद किया। एक ही वर्ष बाद 1999 के चुनाव में एक बार फिर दोनों ने अपनी सीटें बचाईं।

यह भी पढ़ें: काम नहीं केवल नाम ही काफी है! इन पार्टियों के बारे में कभी नहीं सुना होगा, इनके नेता भी लड़ रहे हैं चुनाव