पंजाब की 13 लोकसभा सीटों का सियासी हाल, दांव पर दलों की साख; इतिहास में पहली बार चतुष्कोणीय मुकाबला
अकाली दल और भाजपा की राह जुदा होने से पंजाब की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है। पूरा खेल पार्टियों से निकलकर चेहरों पर केंद्रित होता जा रहा है। इस बार पंजाब में चेहरे सबसे बड़ी भूमिका अदा करेंगे। पंजाब की राजनीति के इतिहास में पहली बार चतुष्कोणीय मुकाबला भी होगा।भाजपा कांग्रेस और आप के साथ देश का सबसे पुराना क्षेत्रीय दल शिरोमणि अकाली दल मैदान में है।
कैलाश नाथ, चंडीगढ़। पंजाब में इस बार लोकसभा चुनाव अंतिम चरण में हैं। चुनाव जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, रोमांच भी बढ़ता जा रहा है। इस बार का चुनाव भी पार्टियों की जगह चेहरों पर फोकस होता जा रहा है। बड़े चेहरे के लिए हर दल दूसरी पार्टी में सेंधमारी की जुगाड़ में है।
भाजपा देश में 400 पार के नारे को सच साबित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन शिअद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। आम आदमी पार्टी भी पुनः लोकसभा में अपना खाता खोलने की कवायद में जुटी है, जबकि कांग्रेस 2022 के विधानसभा चुनाव में अपने खोए हुए आधार को पुनः पाकर राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत पार्टी बनने की कोशिश में है।
2027 पर सभी दलों की निगाहें
यही नहीं, चुनाव भले ही लोकसभा का हो, लेकिन सभी पार्टियों की नजर 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। 2024 के जरिये 2027 पर निशाना साधने के कारण ही इस लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक तोड़फोड़ देखने को मिल रही है।पंजाब में ऐसा कभी नहीं हुआ
पंजाब के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ कि एक पार्टी किसी प्रत्याशी को टिकट दे देती है और वह दूसरी पार्टी में चला जाता है। एक सिटिंग विधायक इस्तीफा देकर दूसरी पार्टी का प्रत्याशी बन जाता है। तीन बार के सांसद रवनीत बिट्टू तो चार बार सांसद रहीं परनीत कौर कांग्रेस छोड़ भाजपा के उम्मीदवार बन गए हैं। फिलहाल अभी आप ने नौ तो भाजपा ने छह प्रत्याशी ही घोषित किए हैं। बाकी मैदान खाली है।
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क्या बसपा साबित होगी एक्स फैक्टर?
भले ही पंजाब में चारकोणीय मुकाबला हो, लेकिन बहुजन समाज पार्टी का एक्स फैक्टर बनके उभरना तय है। रिजर्व सीटों पर बसपा का अपना एक आधार रहा है। जालंधर, होशियारपुर तो ऐसी सीटें हैं, जहां पर वह हमेशा ही मुकाबले में रहती हैं। फिरोजपुर में भी बसपा का अच्छा वोट बैंक है। इसलिए रिजर्व सीटों पर कोई भी पार्टी बसपा को कम करके आंकने को तैयार नहीं है।गुरदासपुर: भाजपा का रहा वर्चस्व
सीमावर्ती क्षेत्र गुरदासपुर सीट की कहानी हमेशा ही जुदा रही है। विधानसभा में यहां पर कांग्रेस का बोलबाला रहता है तो लोकसभा में राष्ट्रीय मुद्दे लोगों को भाते हैं। यही कारण है कि यह भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है। यहां पर फिल्म अभिनेता को पसंद किया जाता है, लेकिन भाजपा सांसद सनी देओल ने लोगों को निराश किया तो पार्टी ने इस बार अभिनेता के बजाय नेता पर दांव खेल दिया। राजपूत बिरादरी से दो बार के विधायक दिनेश बब्बू को मैदान में उतारा है। कांग्रेस के पास इस सीट पर चेहरों की कोई कमी नहीं है, लेकिन कांग्रेस भाजपा को झटका देना चाहती है इसलिए उसकी नजर स्वर्ण सिंह सलारिया पर है। शिअद और आप चेहरे की तलाश में हैं।अमृतसर: हर दल की होगी अग्निपरीक्षा
अमृतसर लोकसभा सीट हमेशा से ही पंजाब की राजनीति के सिर का ताज रही है। भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर एक बार फिर पूर्व नौकरशाह तरणजीत सिंह संधू को टिकट दिया है। संधू स्थानीय उम्मीदवार हैं और भारतीय विदेश सेवा से सेवानिवृत्त हुए हैं। अमृतसर में सिखों और हिंदू मतदाताओं का संतुलन है। इसे देखते हुए भाजपा ने जहां सिख तो शिरोमणि अकाली दल अनिल जोशी के रूप में हिंदू को उम्मीदवार बनाने की तैयारी में है। जोशी भाजपा से ही शिअद में गए हैं। आम आदमी पार्टी ने अपने मंत्री कुलदीप धालीवाल पर दांव खेला है। कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। सांसद गुरजीत औजला पुनः टिकट का दावा ठोक रहे हैं, लेकिन उनकी राह में ओपी सोनी डट गए हैं।होशियारपुर: आप तैयार, बाकी दल ढूंढ रहे प्रत्याशी
वंचित राजनीति का एक और गढ़ होशियारपुर से कभी बसपा सुप्रीमो मायावती भी लड़ी थीं। 10 वर्षों से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। सत्तारूढ़ आप को इस सीट से टिकाऊ उम्मीदवार नहीं मिला तो उसने कांग्रेस के सिटिंग विधायक डॉ. राजकुमार चब्बेवाल से इस्तीफा दिलाकर उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया।चब्बेवाल के जाने से कांग्रेस की परेशानी बढ़ गई है। फिलहाल कांग्रेस किसी अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंच पाई है। शिअद की स्थिति भी कुछ ऐसे ही है। भाजपा पर इस सीट पर अपना वर्चस्व कायम रखने का दबाव है। केंद्रीय राज्य मंत्री सोम प्रकाश पर उम्र हावी है। पूर्व सांसद विजय सांपला के रूप में विकल्प है, लेकिन राह आसान नहीं।जालंधर: दल बदलुओं ने बढ़ाया राजनीति का रोमांच
वंचित राजनीति का गढ़ रहे जालंधर में राजनीति रोमांच पर है। आम आदमी पार्टी ने अपने सांसद सुशील रिंकू को टिकट दी, लेकिन वह टिकट ठुकराकर श्री राम के सहारे भाजपा की नाव पर सवार हुए और उम्मीदवार बन गए। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जालंधर में एंट्री करना चाहते हैं, लेकिन छह दशक तक इस सीट पर काबिज रहे चौधरी खानदान के तीसरे वंशज विक्रम चौधरी बगावत के मूड में आ गए हैं। रिंकू के जाने से आप भी नए चेहरे की तलाश कर रही है। शिअद के पास पवन टीनू चेहरा तो हैं लेकिन पार्टी हिम्मत नहीं जुटा पा रही है।लुधियाना: सबसे रोचक मुकाबला
पंजाब का मैनचेस्टर कहे जाने वाले लुधियाना की कहानी बेहद रोचक बनी हुई है। भाजपा ने कांग्रेस के स्तंभ परिवार बेअंत सिंह के पोते रवनीत बिट्टू को इस सीट से प्रत्याशी बनाया है। बिट्टू लुधियाना से दो बार सांसद रहे हैं। भाजपा को छोड़ अभी तक कोई भी पार्टी इस सीट से उम्मीदवार की घोषणा नहीं कर पाई है।कांग्रेस की पहली पसंद तो पूर्व मंत्री भारत भूषण आशु थे, लेकिन वह चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। लोक इंसाफ पार्टी के पूर्व विधायक सिमरजीत सिंह बैंस कांग्रेस में जाने की जुगत में हैं। बैंस केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि आप के संपर्क में भी बताए जा रहे हैं। उनका लक्ष्य चुनाव लड़ना है।संगरूर: हर दल की साख दांव पर
संगरूर सीट पर हर दल की साख दांव पर है। यह मुख्यमंत्री भगवंत मान का गृह क्षेत्र है। वह दो बार इस सीट से सांसद भी रहे हैं। 2022 में उन्हें शिरोमणि अकाली दल (मान) के प्रत्याशी सिमरनजीत सिंह मान ने झटका दिया और उपचुनाव को जीत लिया था। इस बार आप ने अपने मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर को उम्मीदवार बनाया है। सिमरनजीत सिंह मान भी फिर चुनाव मैदान में हैं। शिरोमणि अकाली दल की तरफ से परमिंदर सिंह ढींडसा का नाम प्रत्याशी के तौर पर लगभग तय है, हालांकि पार्टी ने अभी घोषणा नहीं की है। कांग्रेस की तरफ से विजय इंदर सिंगला का भी नाम लगभग तय माना जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक इस सीट पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं।फतेहगढ़ साहिब: मुश्किल में कांग्रेस
कांग्रेस को इस सीट पर आप ने करारा झटका दिया है। पूर्व विधायक गुरप्रीत सिंह जीपी को तोड़ कर अपना प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस के डॉ. अमर सिंह यहां से सांसद हैं, लेकिन वह अपनी टिकट बचाने की जुगत में लगे हुए हैं, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का नाम लगातार इस सीट पर आ रहा है। चन्नी चुनाव चाहे जालंधर से लड़ें या फतेहगढ़ साहिब से। उन्हें टिकट कहीं से भी मिले एक वर्ग का नाराज होना तय है। चन्नी फतेहगढ़ साहिब से लड़ते हैं तो डॉ. अमर सिंह भाजपा में जा सकते हैं। चन्नी अगर जालंधर से लड़ते हैं तो चौधरी परिवार की नाराजगी तय है। शिअद भी प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई है।फरीदकोट: गायकों के बीच महायुद्ध
बाबा फरीद की धरती राजनीतिक रूप से पंजाब में सबसे पिछड़ी हुई मानी जाती है। यहां पर हमेशा ही स्थानीय उम्मीदवारों का टोटा रहा है। इस बार इस सीट पर जाने-माने गायकों के बीच मुकाबला होना तय है। आप ने जहां पंजाबी गायक करमजीत अनमोल को टिकट दी है, वहीं तो भाजपा ने हंसराज हंस की दिल्ली से टिकट काट कर उम्मीदवार बनाया है।इस सीट पर एक और गायक मोहम्मद सदीक कांग्रेस से सांसद हैं। वह भी टिकट बचाने के लिए दौड़ लगा रहे हैं, क्योंकि पार्टी सुखमिंदर डैनी को टिकट देना चाहती है। सदीक का दांव चला तो इस सीट पर गायकों का महायुद्ध होना तय है। शिअद चेहरे की तलाश में है।खडूर साहिब: हर दल उलझन में
पंथ का गढ़ मानी जाने वाली खडूर साहिब सीट की कहानी किसी उलझन से कम नहीं रही है। 2019 में कांग्रेस के जसबीर डिंपा ने चुनाव जीता था। डिंपा अभी भी टिकट की कतार में हैं लेकिन 2014 में इस सीट से लोकसभा से किस्मत आजमा चुके राणा गुरजीत सिंह उनकी राह में बाधा बने हुए हैं।आप ने अपने मंत्री लालजीत भुल्लर को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा अभी भी इस सीट से उम्मीदवार की तलाश कर रही है, क्योंकि उनकी पार्टी में कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं हैं जो इस पंथक सीट पर दावा ठोक सके। शिअद ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं।फिरोजपुर: शिअद के गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी
यह सीट अकाली दल का मजबूत गढ़ है। पहले अकाली दल से शेर सिंह घुबाया चुनाव जीता करते थे। बाद में सुखबीर बादल इस सीट पर आ गए। 2019 में वह चुनाव जीते। यहां पर किसी भी पार्टी ने अभी तक अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। इस सीट पर कांग्रेस के पूर्व विधायक रमिंदर आवला के हाथों में 'लड्डू' है। कांग्रेस, शिअद और भाजपा आवला को अपना प्रत्याशी बनाना चाहती है।आवला भाजपा के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ के भी खासे करीबी हैं तो शिअद प्रधान सुखबीर बादल के भी। भाजपा की तरफ से हालांकि राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी भी टिकट के दावेदार है। इस बीच आप विधायक गोल्डी कंबोज के पिता सुरिंदर कंबोज को बहुजन समाज पार्टी ने टिकट देकर इस सीट पर रोमांच को बढ़ा दिया है।पटियाला: कांटे की टक्कर
शाही शहर पटियाला लोकसभा सीट पर इस बार राजनीतिक लड़ाई बेहद रोमांचक होने जा रही है। कांग्रेस की टिकट पर चार बार की सांसद परनीत कौर इस बार कमल का फूल लेकर मैदान में उतरी हैं। कांग्रेस से डॉ. धरमवीर गांधी का मैदान में उतरना तय है। वह 2014 में परनीत कौर को हरा चुके हैं। यहां सर्वाधिक हिंदू होने के कारण शिअद से पूर्व विधायक एनके शर्मा प्रत्याशी हो सकते हैं। आप ने स्वास्थ्य मंत्री डॉ. बलबीर सिंह को मैदान में उतारा है।बठिंडा: फिर बनेगी हॉट सीट
बठिंडा लोकसभा सीट शिअद का मजबूत गढ़ मानी जाती है। हरसिमरत कौर बादल यहां से जीत की हैट्रिक लगा चुकी हैं। चौथी बार भी उनका चुनाव लड़ना तय है। इस बार भी उनका मुकाबला कांग्रेस के प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग से हो सकता है। हालांकि वड़िंग की पत्नी अमृता वड़िंग भी दावा ठोक रही थीं लेकिन पार्टी वड़िंग को ही टिकट देने का मन बना चुकी है। आप ने मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां को उम्मीदवार बनाया है।श्री आनंदपुर साहिब: अभी आप का ही प्रत्याशी घोषित
खालसा पंथ की सृजनहार धरती से आप ने अपने प्रवक्ता मलविंदर कंग को उम्मीदवार घोषित किया है। कांग्रेस अभी तक यह फैसला नहीं कर पाई कि वह अपने सांसद मनीष तिवारी को ही पुनः टिकट देगी या उन्हें चंडीगढ़ से उतारेगी।कांग्रेस से राणा गुरजीत सिंह भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं। पूर्व स्पीकर राणा केपी सिंह भी टिकट के चाहवान हैं। इस सीट के तहत खरड़, कुराली, मोहाली ऐसे क्षेत्र हैं जो हिंदू बाहुल्य हैं। भाजपा की तरफ से अविनाश राय खन्ना और डॉ. सुभाष शर्मा टिकट की दौड़ में हैं, जबकि शिअद से पूर्व सांसद प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा और डॉ. दलजीत सिंह चीमा का नाम सबसे ऊपर है। यह भी पढ़ें: 'शिवसेना जैसा होगा उनका हाल, जो कहता हूं वो होकर रहता है', भविष्यवक्ता बने झारखंड ये माननीय