इन दोनों गद्दियों के वारिस आधुनिक लोकतंत्र में चुनाव मैदान में उतरते रहे हैं। जीतते भी रहे हैं और हारते भी। संयोग से यह वर्ष छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का 350वां वर्ष है और इस बार उनके दोनों वंशज अलग-अलग पार्टियों से मैदान में हैं। छत्रपति उदयनराजे भोसले सातारा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, तो कोल्हापुर के महाराज श्रीमंत साहूजी महाराज छत्रपति कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं।
कांग्रेस के गढ़ में ठोक रहे ताल
पश्चिम महाराष्ट्र के ज्यादातर लोकसभा क्षेत्रों की भांति ही सातारा लोकसभा क्षेत्र भी शुरू से कांग्रेस का गढ़ रहा है। कांग्रेस के दिग्गज नेता यशवंतराव चव्हाण यहां के पांच बार चुनकर लोकसभा में पहुंचे थे। कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष भी तीन बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 1996 में पहली बार इस सीट से छत्रपति उदयनराजे भोसले निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़े और तीसरे स्थान पर रहे।
उदयनराजे पहली बार 1998 में भाजपा के नजदीक आए और उसी वर्ष पहली बार चुनाव जीतकर राज्य विधानसभा के सदस्य बने। उससे पहले उनके चाचा अभयसिंहराजे भोसले 1978 से 1995 तक लगातार इसी सीट से विधानसभा चुनाव जीतते रहे थे। अब अभयसिंहराजे के पुत्र शिवेंद्रराजे भोसले भी सातारा विधानसभा सीट से ही भाजपा के विधायक हैं।
2019 में भाजपा में हुए शामिल
खुद उदयनराजे भोसले किसी एक दल के प्रति निष्ठा रखने के लिए नहीं जाने जाते। 2009 से 2019 तक के चुनाव वह राकांपा के टिकट पर लड़कर जीतते रहे, लेकिन 2019 का चुनाव जीतने के कुछ ही महीने बाद वह पार्टी एवं संसद सदस्यता, दोनों से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो गए। फिर अपनी ही खाली की गई सीट पर हुए उपचुनाव में उन्हें राकांपा के श्रीनिवास पाटिल से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन भाजपा ने महाराज को राज्यसभा में भेजने में कोई कोताही नहीं बरती।
अब 2024 का लोकसभा चुनाव घोषित होने पर उदयनराजे का राज्यसभा कार्यकाल करीब दो साल का बाकी था, लेकिन दबंग छवि के उदयनराजे भोसले ने लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना लिया। पूछने पर कहते हैं कि मैं जनता के द्वारा चुनकर संसद में जाना चाहता था। बैकडोर इंट्री मुझे पसंद नहीं है। इसलिए लोकसभा चुनाव लड़ रहा हूं।
जीत के प्रति आश्वस्त
उदयनराजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए कहते हैं कि मैंने कई प्रधानमंत्री देखे हैं। सभी ने सिर्फ नाम लिया छत्रपति शिवाजी का। उनके विचारों पर चलने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं मोदी। वह कहते हैं कि मोदी न सिर्फ विकास की बात करते हैं, बल्कि उसे जमीन पर भी उतारते हैं।
उदयनराजे चाहते हैं कि छत्रपति शिवाजी का दिल्ली में एक भव्य स्मारक बने और उनके किए गए कार्यों पर विस्तृत शोध भी हो, ताकि उनके बारे में यदाकदा खड़े होने वाले विवादों पर विराम लग सके, और उनका सही मूल्यांकन हो सके। रोज सुबह अपने जलमहल में स्थापित मां भवानी को नमन करके दूरदराज की प्रचार यात्रा पर निकलने वाले उदयनराजे अपने पक्ष में हुई प्रधानमंत्री की सभा के बाद जीत के प्रति और आश्वस्त दिख रहे हैं।
शरद पवार की पैठ
दूसरी ओर उनके विरुद्ध राकांपा (शपा) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे शशिकांत शिंदे खुद को जनता के बीच का आदमी बताते हुए कहते हैं कि मैं जनता के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहने वाला व्यक्ति हूं, और यही हमारी खासियत है। उनका इशारा महाराजा की आम जनता के लिए आसानी से उपलब्धता को लेकर है। शिंदे इस समय शरद पवार की पार्टी राकांपा (शपा) से विधान परिषद के सदस्य हैं और पहली बार राष्ट्रीय राजनीति में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
वर्तमान सांसद श्रीनिवास पाटिल की तुलना में उन्हें कमजोर उम्मीदवार माना जा रहा है, क्योंकि पूर्व नौकरशाह श्रीनिवास पाटिल ने उदयनराजे भोसले को 90,000 मतों से हराया था, लेकिन इस क्षेत्र में शरद पवार की पैठ को न तो भाजपा हलके में ले सकती है, न महाराजा उदयनराजे भोसले।
कोल्हापुर से शाहूजी महाराज मैदान में
छत्रपति शिवाजी महाराज की कोल्हापुर गद्दी के वारिस 76 वर्षीय शाहूजी महाराज अपनी सौम्य छवि, मृदुभाषिता एवं जनता से मिलने-जुलने के लिए जाने जाते हैं। शायद यह गुण उनमें अपने बाबा राजर्षि शाहू महाराज से आया होगा, जोकि अपने सामाजिक कार्यों के लिए जाने जाते हैं। महाराष्ट्र में वंचित वर्ग के उत्थान के लिए जिस तिकड़ी को याद किया जाता है, उस फुले-शाहू-आंबेडकर की मजबूत कड़ी थे, राजर्षि शाहू जी महाराज।
उन्होंने देश को स्वतंत्रता मिलने से पहले ही वंचित वर्गों के लिए आरक्षण की शुरुआत कर दी थी। कोल्हापुर में उन्होंने आज से करीब 100 वर्ष पहले ही अलग-अलग जातियों एवं धर्मों के विद्यार्थियों के लिए छात्रावास एवं स्कूल-कालेज बनवाए, और उनकी ऐसी व्यवस्था कर दी कि वे सभी छात्रावास आज भी संचालित हैं।
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इन्हीं में से एक मुस्लिम बोर्डिंग के कर्ता-धर्ता अब्दुल कादिर हमजा मलबारी राजर्षि शाहू जी महाराज का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि वह तो फरिश्ता थे। अर्थात, शिवाजी महाराज कोल्हापुर गद्दी को जितनी ख्याति स्वयं शिवाजी के कारण मिलती है, उसी तरह उनके वंशज राजर्षि शाहूजी महाराज के कारण भी मिलती है।
कांग्रेस की विचारधारा के करीब
शाहूजी महाराज की इसी लोकप्रियता का लाभ लेने की गरज से इस बार महाविकास आघाड़ी ने शिवसेना (शिंदे गुट) के उम्मीदवार एवं वर्तमान सांसद संजय मांडलिक के विरुद्ध कोल्हापुर से श्रीमंत शाहूजी महाराज से चुनाव लड़ने का आग्रह किया। मविआ के तीनों दलों में से कोई एक पार्टी चुनने का अधिकार भी उन्हें ही दिया। शाहूजी महाराज कहते हैं कि वह खुद को कांग्रेस की विचारधारा के करीब पाते हैं, इसलिए उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
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लोकतंत्र बनाम तानाशाही का आरोप
वह कहते हैं कि इन दिनों लोकतंत्र बनाम तानाशाही पर बहस चल रही है। मैं ऐसे परिवार से आता हूं, जहां मेरे दादा छत्रपति राजश्री शाहू महाराज जैसे महान लोकतंत्रवादी हुए हैं। उनका डा. बाबासाहेब आंबेडकर के साथ घनिष्ठ संबंध था। कहीं न कहीं हमें एक स्टैंड लेना होगा। इसलिए मैंने चुनाव लड़ने का फैसला किया। बता दें कि शाहूजी महाराज स्वयं पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उनके परिवार से उनके बड़े पुत्र संभाजी महाराज एक बार राष्ट्रपति मनोनीत राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं, जबकि छोटे पुत्र मालोजी महाराज विधानसभा सदस्य रह चुके हैं।
दूसरी ओर शिवसेना उम्मीदवार संजय मांडलिक 2019 का चुनाव करीब ढाई लाख के अंतर से राकांपा से जीते थे। अब वह उद्धव ठाकरे का साथ छोड़कर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ हैं। इस क्षेत्र की एक विधानसभा सीट कागल से विधायक एवं राज्य सरकार में मंत्री हसन मुश्रिफ अजीत पवार गुट के हैं। उनकी पूरी ताकत संजय मांडलिक के साथ है, लेकिन इसी क्षेत्र की तीन विधानसभा सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं। इन सबसे ऊपर छत्रपति शाहूजी महाराज का मृदु स्वभाव एवं कोल्हापुर में उनके पूर्वजों द्वारा किए गए काम उनका पक्ष मजबूत कर रहे हैं। इसलिए इस सीट पर लड़ाई कांटे की दिखाई दे रही है।
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