Lok Sabha Election 2024: बंगाल में ‘भूमिपुत्र’ पर उलझीं तृणमूल और भाजपा, जानिए दूसरे चरण में क्या हैं मुद्दे
West Bengal Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में पश्चिम बंगाल की तीन सीटों पर मतदान होना है। इन तीनों सीटों पर पिछली बार भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इस बार भी वह प्रदर्शन बरकरार रखना चाहेगी तो टीएमसी यहां वापसी करना चाहेगी। जानिए इन क्षेत्रों में क्या हैं मुद्दे और किसने किसे बनाया है उम्मीदवार।
भारतीय बसंत कुमार, रायगंज। उत्तर बंगाल में दूसरे चरण में रायगंज, बालुरघाट और दार्जिलिंग की तीन सीटों पर मतदान होना है। तीनों सीटें भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के लिए नाक की लड़ाई हैं। रायगंज और बालुरघाट में सभा कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बंगाल में घुसपैठ, शासन में भ्रष्टाचार और संदेशखाली की गुंडागर्दी के खिलाफ हुंकार भर चुके हैं। अपनी गारंटी और बंगाल में केंद्र सरकार की ओर से हुए विकास को गिनवा गए हैं।
रामनवमी के दिन बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा-पत्र जारी कर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर रोक और केंद्र में सत्ता में आने पर जिस नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को रद्द करने की घोषणा की है, उसे ही इस क्षेत्र के चुनावी दौरे में अपने आधार वोटरों को याद करा रही हैं। रायगंज में मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत है। इस चुनाव में कांग्रेस का भी यहां से उम्मीदवार हो जाने के कारण मुस्लिम वोटर दोराहे पर खड़े हैं।
दार्जलिंग
दार्जिलिंग सीट पर अंतिम समय में भाजपा सांसद राजू बिष्ट को दूसरी बार टिकट देकर भाजपा ने तृणमूल को ‘भूमिपुत्र’ की खोज का मौका दे दिया है। दरअसल, पिछले चार चुनाव से दार्जिलिंग में कभी भी भाजपा का स्थानीय उम्मीदवार नहीं रहा। तृणमूल इस सीट पर भूमिपुत्र के रूप में इसी क्षेत्र में कभी लंबे समय तक तैनात रहे अधिकारी गोपाल लामा को टिकट देकर स्थानीय बनाम बाहरी का नारा गढ़ रही है। कांग्रेस ने भी इसी एजेंडे पर स्थानीय डाक्टर मुनीष तामांग को टिकट दिया है।रायगंज
भूमिपुत्र का मसला रायगंज सीट पर भी था। यहां से देबश्री राय चौधरी सांसद थीं। वह बाहरी थीं। भाजपा ने इसे भांपकर अबकी यहां से उनको टिकट नहीं देकर कार्तिक चंद्र पाल को मौका दिया है। देबश्री राय चौधरी का क्षेत्र से न्यूनतम कनेक्ट मैदान से विदा होने का प्रमुख कारण बना। रायगंज सीट के तीनों प्रमुख उम्मीदवार पाला बदलने वाले और नए चेहरे हैं।
भाजपा ने जहां अपने सांसद का टिकट काटा, वहीं तृणमूल ने भी कभी भाजपा के ही विधायक रहे कृष्ण कल्याणी को मैदान में उतारा है। रायगंज वही सीट है, जहां पिछले साल रामनवमी के समय दंगा हुआ था। नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी के कोर्ट-कचहरी करने के बाद यहां की जांच एनआईए के पास गई थी। पंद्रह लोग इसी मामले में अब तक जेल में हैं।
ये भी है मुद्दा
रायगंज में रामनवमी का पिछला बवाल इस चुनाव का एजेंडा है। इस बार रामनवमी पर पूरी तरह अगर शांति रही तो एनआईए का दखल एक बड़ा कारक है। एक वर्ग को डर था कि उपद्रव हुआ तो फिर एनआईए अपना काम करेगी। तृणमूल ने जांच का सुप्रीम कोर्ट तक विरोध किया था। यह विरोध रायगंज के इस चुनाव में ध्रुवीकरण का औजार है।
इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि इस बार प्रशासनिक अनुमति के बाद भी डालखोला क्षेत्र में रामनवमी की कमेटी ने शोभायात्रा से परहेज किया। तर्क था कि स्थानीय प्रशासन ने कड़ी शर्त रख दी, जिसका अनुपालन कठिन है, लेकिन रायगंज के इसी डालखोला क्षेत्र में जहां पिछली बार उपद्रव हुआ था, लोग जुटे और स्वत:स्फूर्त विशाल शोभायात्रा शांतिपूर्वक निकली।
यह पूछने पर कि कांग्रेस की ओर से वाममोर्चा समर्थित अलीइमरान रम्ज उर्फ विक्टर के मैदान में आ जाने से भाजपा विरोधी वोट कैसे एकजुट रह सकेगा, जावेद का कहना है कि तृणमूल के पास जमीनी संगठन है। कांग्रेस के पास इसका अभाव है। विक्टर की अपनी लोकप्रिय छवि का असर पड़ेगा, पर भाजपा विरोधी मतों का ध्रुवीकरण जरूर होगा। पूर्व विधायक विक्टर की नैसर्गिक पहचान वाम दलों के घटक फारवर्ड ब्लॉक से रही है।
शोभायात्रा बड़ा संदेश
शोभायात्रा का स्वत: निकल जाना ही एक बड़ा नैरेटिव है। एनआईए का दखल इसके केंद्र में है। यही रायगंज के चुनाव का संकेतक भी है। गैरिक गांगुली यहां के वकील हैं, उनकी मानें तो यह ध्रुवीकरण का बड़ा संकेत है। मर्चेंट एसोसिएशन के दामोदर अग्रवाल मानते हैं कि एकजुट हिंदुत्व, सुरक्षा और शांति के लिए आवश्यक है। स्थानीय प्रबुद्ध जन सुभाष चक्रवर्ती बताते हैं कि फ्री राशन एक वर्ग के लिए एजेंडा हो सकता है पर सामान्य वर्ग शांति और सुरक्षा चाहता है। बांग्लादेश की सीमा से एकदम सटे रायगंज में घुसपैठ की जड़ें गहरी जमी हैं।देश कानून से चले, बुलडोजर से नहीं
ट्रांसफर एरिया ऑफ सूरजापुर ऑर्गेनाइजेशन के पसारूल आलम को दर्द है कि सीएए के बाद एनआरसी की तैयारी है। उनका कहना है कि देश कानून से चले, बुलडोजर से नहीं। डालखोला के शिक्षक जावेद भी कुछ ऐसी ही धारणा रखते हैं। ममता सरकार के मौलवी भत्ता व छात्रवृति योजना को आंखों में धूल झोंकने वाले फैसले मानते हैं।ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: इन जातियों को साधने वाला ही मिथिलांचल में लहराएगा पताका, जानिए किस सीट पर क्या कहते हैं समीकरणयह पूछने पर कि कांग्रेस की ओर से वाममोर्चा समर्थित अलीइमरान रम्ज उर्फ विक्टर के मैदान में आ जाने से भाजपा विरोधी वोट कैसे एकजुट रह सकेगा, जावेद का कहना है कि तृणमूल के पास जमीनी संगठन है। कांग्रेस के पास इसका अभाव है। विक्टर की अपनी लोकप्रिय छवि का असर पड़ेगा, पर भाजपा विरोधी मतों का ध्रुवीकरण जरूर होगा। पूर्व विधायक विक्टर की नैसर्गिक पहचान वाम दलों के घटक फारवर्ड ब्लॉक से रही है।