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Lok Sabha Election 2024: लगातार तीन बार से हैं सांसद, इस बार अग्निपरीक्षा, क्या बादल का गढ़ बचा पाएंगी हरसिमरत?

Lok Sabha Election 2024 बठिंडा लोकसभा सीट पर इस बार पूर्व केंद्रीय मंत्री और शिरोमणि अकाली दल प्रत्याशी हरसिमरत कौर बादल की अग्निपरीक्षा है। वे 2009 से अभी तक लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव यहां से जीत चुकी हैं। भाजपा ने पूर्व आईएएस अधिकारी परमपाल कौर मलूका को उतारा है। पिछला चुनाव भाजपा और अकाली दल ने गठबंधन में लड़ा था।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Wed, 29 May 2024 09:58 AM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: पंजाब की बठिंडा सीट का सियासी समीकरण।

इन्द्रप्रीत सिंह, जागरण बठिंडा। अकाली राजनीति के बाबा बोहड़ कहे जाने वाले प्रकाश सिंह बादल की अनुपस्थिति में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) पहला लोकसभा चुनाव लड़ रहा है। यह चुनाव न सिर्फ बादल परिवार, बल्कि शिअद का अस्तित्व बचाने का भी सवाल है।

वर्ष 2015 में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के कारण पंजाब की सत्ता के हाशिये पर खड़ी पार्टी को तो अपना वर्चस्व बहाल करना ही है, लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी सुखबीर बादल पर है, जिन्हें अपनी पत्नी और प्रकाश सिंह बादल की बहू हरसिमरत कौर बादल की सीट को भी बचाना है। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि स्वयं सुखबीर बादल जो पिछली बार फिरोजपुर से सांसद थे, इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।

सुखबीर बादल ही प्रचार अभियान में जुटे

सुखबीर हर सीट पर अपने प्रत्याशियों को जितवाने के लिए प्रचार कर रहे हैं। पंजाब में शिअद अगर कहीं लड़ाई लड़ता दिखाई दे रहा है तो वे बठिंडा और फिरोजपुर की सीटें ही हैं। परिवारवाद से बचने के लिए सुखबीर ने अपने परिवार से किसी और को टिकट नहीं दिया है। हालांकि खडूर साहिब से उनके बहनोई व पूर्व मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरों भी लड़ने के लिए तैयार थे, लेकिन जब उन्हें टिकट नहीं दिया गया तो वह पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए।

बहनोई को दिखाया बाहर का रास्ता

सुखबीर ने रिश्तेदारी की परवाह न करते हुए बहनोई को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। चौथी जीत दर्ज करन के लिए संघर्ष कर रहीं हरसिमरत अपने हर भाषण में प्रकाश सिंह बादल की ओर से इस सीट पर किए गए कामों को याद कराती हैं। उनकी इन दलीलों की काट उनके विरोधियों के पास नहीं है। वह लोगों को याद दिलाती हैं कि बठिंडा में बनाए गए एम्स की, केंद्रीय यूनिवर्सिटी की और इसी तरह के कई और कार्यों की...।

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बठिंडा के हरिंदर सिंह का कहना है कि अगर लोगों ने काम के आधार पर वोट दिया तो उनके लिए हरसिमरत बादल के साथ-साथ बादल परिवार की अनदेखी करना मुश्किल होगा। जिन प्रोजेक्टों के बारे में हरसिमरत लोगों को बता रही हैं, वे पूरे केवल इसलिए हुए हैं, क्योंकि वह केंद्र की राजग सरकार में लंबे समय तक मंत्री रही हैं।

2009 में पहली बार यहां से जीतीं हरसिमरत

हरसिमरत सबसे पहले 2009 में उस समय जीतीं, जब राज्य में शिअद-भाजपा की सरकार थी। इस संसदीय क्षेत्र में जो भी काम हुआ है, निश्चित रूप से उसका श्रेय हरसिमरत कौर को मिलेगा ही। वह पिछले लंबे समय से महिलाओं के साथ जुड़ी रही हैं। लेकिन इस बार वक्त कुछ बदल भी गया है। शहरी वोटों को साधने वाली भाजपा अब शिअद के साथ नहीं है।

विधानसभा प्रभारियों ने छोड़ी पार्टी

भाजपा की प्रत्याशी परमपाल कौर जितने भी वोट प्राप्त करेंगी, वे हरसिमरत बादल के खाते से ही जाएंगे। परमपाल कौर के ससुर सिकंदर सिंह मलूका, जो वर्षों शिअद के जिला अध्यक्ष रहे हैं, वह भी हरसिमरत का साथ नहीं दे रहे हैं। संसदीय सीट की विधानसभा सीटों के प्रभारी चाहे दर्शन सिंह कोटफत्ता हों या जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू, दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए हैं। बलविंदर सिंह भूंदड़ जैसे नेता बूढ़े हो चुके हैं।

आप ने गुरमीत सिंह खुड्डियां को उतारा

दूसरी ओर, बादल को उनका अंतिम चुनाव हराने वाले आम आदमी पार्टी (आप) के गुरमीत सिंह खुड्डियां, जो राज्य की आप सरकार में मंत्री भी हैं, अब हरसिमरत कौर के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। आप जानती है कि जब तक शिअद का पंथक वोट पूरी तरह से टूटकर बिखर नहीं जाता, यह कभी भी पार्टी के लिए खतरा बनकर खड़ा हो सकता है। आखिर आप के पास जो भी काडर है, वह दूसरी पार्टियों के निराश लोगों का ही है। वह खुद कृषि मंत्री हैं, लेकिन भाजपा से नाराज किसान मतदाताओं को अपने पाले में नहीं कर पा रहे हैं।

लक्खा सिधाना से किसकों खतरा?

आप के एक वरिष्ठ विधायक मानते हैं कि संसदीय सीट की विधानसभा सीटों के पार्टी विधायकों के प्रति लोगों की नाराजगी हमारे प्रत्याशियों को झेलनी पड़ रही है, लेकिन उनकी अपनी छवि अच्छी होने के कारण हम लोगों को मनाने में कामयाब हो रहे हैं। हमें दिक्कत गैंगस्टरों की दुनिया से राजनीति में आए लक्खा सिधाना से भी है।

पिछले विधानसभा चुनाव में जिन युवाओं ने झाड़ू को पकड़कर सारी गंदगी साफ की थी, अब वे लक्खा सिधाना के साथ चल रहे हैं। वह जीतने की स्थिति में तो नहीं है, लेकिन हमारा नुकसान जरूर कर रहा है।

भाजपा प्रत्याशी को शहरी मतदाताओं पर भरोसा

भाजपा प्रत्याशी परमपाल कौर मलूका को शहरी वोटों पर भरोसा है, लेकिन लंबे समय तक इस सीट पर भाजपा के अपना प्रसार न कर पाने के कारण परमपाल कौर को दिक्कतें आ रही हैं। कांग्रेस के जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू को कोई ऐसी दिक्कत नहीं है। हर विधानसभा सीट पर कांग्रेस का काडर उनके साथ चल रहा है।

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