बिहार का वो दौर: जब एक ही सीट पर उतरे चार दिग्गज, आयोग को रद्द करना पड़ा था चुनाव, वजह चौंका देगी
Lok Sabha Election 2024 1991 में बिहार की पटना लोकसभा सीट पर मध्यावधि चुनाव होना था। यहां से चार बड़े चेहरे मैदान में थे। मगर कुछ ऐसा हुआ कि निर्वाचन आयोग को चुनाव रद्द करना पड़ा। उस वक्त टीएन शेषण मुख्य चुनाव आयुक्त थे। दो साल बाद 1993 में यहां चुनाव हुआ लेकिन तब तक दिग्गज चेहरों ने यहां से दूरी बना ली थी।
अनिल कुमार, पटना सिटी। बात 1991 के आम मध्यावधि चुनाव की है, तब पटना संसदीय क्षेत्र का विभाजन नहीं हुआ था। राजनीति के चार बड़े दिग्गज यहां से ताल ठोंक रहे थे। आइके गुजराल, यशवंत सिन्हा, डॉ. सीपी ठाकुर और शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव के बीच कांटे की टक्कर थी। इस कारण पटना संसदीय क्षेत्र पर पूरे देश की निगाहें टिकी थी, परंतु वह चुनाव पटना की शांतिप्रिय जनता के लिए बदनुमा दाग सिद्ध हुआ।
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मतदान के दौरान व्यापक पैमाने पर बूथ लूट और मतपत्रों की छीना झपटी के कारण चुनाव आयोग ने मतगणना पर रोक लगा दी और बाद में पूरे संसदीय क्षेत्र का चुनाव रद्द कर दिया। तब टीएन शेषण मुख्य चुनाव आयुक्त थे, उनके कड़े फैसले व हनक प्रसिद्ध थी, अपनी छवि के अनुरूप उन्होंने निर्णय भी किया था।
ये चेहरे थे मैदान
राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था, जनता दल से अलग राजद अस्तित्व में नहीं आया था। लालू प्रसाद ने पटना से चुनाव लड़ने के लिए इंद्र कुमार गुजराल को पंजाब से पटना बुलाया था। गुजराल के अलावा भाजपा से शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव और कांग्रेस से डॉ. सीपी ठाकुर मैदान में थे। मैदान में सबसे चर्चित चेहरा यशवंत सिन्हा थे।
यशवंत सिन्हा को रोकना चाहते थे लालू
चार माह की चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा के लिए यह प्रतिष्ठा का चुनाव था। वहीं, लालू प्रसाद हर हाल में यशवंत सिन्हा को संसद में पहुंचने से रोकना चाहते थे। जबकि यशवंत कायस्थ बहुल संसदीय क्षेत्र में वोटरों को गोलंबद करने में सफल हो रहे थे और स्वयं को स्थानीय और गुजराल को बाहरी बता प्रचार कर रहे थे। हालांकि, राजनीति के मंजे खिलाड़ी लालू ने अपने उम्मीदवार को बाहरी बताने वाले बयान का सटीक काट ढूंढ लिया था और गुजराल को गुज्जर बना अपनी ही जमात का बताते चल रहे थे।
बूथों पर नहीं थी पुलिस की तैनाती
अपने वोटरों को वे पूरी तरह से समझा चुके थे लेकिन चुनाव को केवल जनता के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता था। तब चुनाव आयोग बूथों की सुरक्षा व्यवस्था में पूरी तरह से स्थानीय प्रशासन पर निर्भर रहता था। प्रदेश में लालू प्रसाद यादव की सरकार थी और 20 मई 1991 को हुए मतदान में पुलिस बल की तैनाती इस तरह से की गई थी कि वह न बूथों पर दिख रही थी और न ही सड़कों पर। ऐसे में बहुत कम आम लोग घरों से निकलने की हिम्मत जुटा पाए।
चुनाव आयोग को रद्द करना पड़ा था चुनाव
अगले दिन पर्यवेक्षकों व बड़ी संख्या में पीठासीन पदाधिकारियों की रिपोर्ट देख कर चुनाव आयोग ने मतगणना पर रोक लगा दी। बाद में पूरी समीक्षा के बाद चुनाव को रद्द कर दिया गया। दो वर्ष बाद 1993 में पटना का अगला चुनाव हुआ, तब यहां से न तो आइके गुजराल थे और न ही यशवंत सिन्हा। उस चुनाव में रामकृपाल यादव को लालू प्रसाद ने मैदान में उतारा और वे जीतकर पहली बार सांसद बने। बाद में वर्ष 1997 में इंद्र कुमार गुजराल भारत के 12 वें प्रधानमंत्री बने।
'एक तरफ नेशन, दूसरी तरफ शेषण'
देश के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त रहते हुए टीएन शेषण ने लोकसभा चुनाव में जारी धनबल, बाहुबल व मंत्री पद के दुरुपयोग पर ऐसी नकेल कसी कि मुहावरा बना-एक तरफ नेशन, दूसरी तरफ शेषण। देश के निम्न व मध्य वर्ग के मन में तिन्नेल्लई नारायण अय्यर शेषण की छवि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में बन गई, जिन्होंने केवल वही किया, जो संविधान में लिखा है। स्वयं कानून की चौहद्दी में रहे तथा दूसरों को इस चौहद्दी से बाहर नहीं जाने दिया। देश के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त रहते हुए टीएन शेषन ने जैसा कहा था, वर्ष 1991 के चुनाव में ठीक वैसा ही करके भी उन्होंने दिखाया।
तब लालटेन था किसी और का, लालू घुमा रहे थे चक्र
आज राष्ट्रीय जनता दल का चुनाव चिह्न ‘लालटेन’ है। 1991 के चुनाव में भी चुनाव चिह्न के तौर पर ‘लालटेन’ आवंटित था लेकिन इसके धारक प्रत्याशी चंदेश्वर प्रसाद सिन्हा थे। तब लालू के जनता दल का चुनाव चिह्न चक्र छाप था।
लालू प्रसाद यादव ने बना लिया था प्रतिष्ठा का प्रश्न
यशवंत सिन्हा के पटना पूर्वी चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष नंदगोला के चंद्रमणि सिंह बताते हैं कि उस समय लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे। गुजराल की जीत उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई थी। उधर, यशवंत सिन्हा कड़ी टक्कर दे रहे थे। लोकसभा चुनाव के दिन नजारा बदल गया। दबंगों और बाहुबलियों की जमात बूथ लूटती रही, चुनाव में लगे कर्मचारी और पुलिस तमाशबीन बने रहे।
बोगस वोटिंग भी खूब हुई। प्रशासन की ढील के कारण पटना का चुनाव मजाक बन कर रह गया। चुनाव आयोग में इस धांधली की सैकड़ों शिकायत पहुंची। जांच में गड़बड़ी पाने के बाद चुनाव आयोग ने 1991 के पटना लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया था।