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'मैं परम परिपूर्ण, तृप्त और धन्य अयोध्‍या हूं', मेरे राम आए तो फिर कोई चाह बाकी नहीं रही; लेकिन देश के चुनाव में...

Lok Sabha Election 2024 एक ओर भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का चिर स्वप्न साकार हुआ है दूसरी ओर 50 हजार करोड़ से अधिक की लागत से यशस्वी सूर्यवंशीय नरेशों से सेवित-संरक्षित अयोध्या अपनी गरिमा के अनुरूप श्रेष्ठतम सांस्कृतिक नगरी के रूप में सज्जित की जा रही है। ऐसे में अयोध्या की भावनाओं से अवगत करा रही है दैनिक जागरण की रिपोर्ट...

By Raghuvar Sharan Edited By: Deepti Mishra Updated: Mon, 20 May 2024 10:33 AM (IST)
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Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव में क्‍या चाहती है अयोध्‍या?
 रघुवरशरण, अयोध्‍या। अयोध्या इन दिनों अति निर्णायक दौर से गुजर रही है। एक ओर भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का चिर स्वप्न साकार हुआ है, दूसरी ओर 50 हजार करोड़ से अधिक की लागत से यशस्वी सूर्यवंशीय नरेशों से सेवित-संरक्षित अयोध्या अपनी गरिमा के अनुरूप श्रेष्ठतम सांस्कृतिक नगरी के रूप में सज्जित की जा रही है। अयोध्या के लिए यह सब करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार का भविष्य चुनाव से तय हो रहा है। ऐसे में अयोध्या की भावनाओं से अवगत करा रही है दैनिक जागरण की रिपोर्ट...

अयोध्या हूं। परम परिपूर्ण, तृप्त और धन्य। आखिर जिस भूमि पर परात्पर के नायक भगवान राम ने जन्म लिया, उसे पाने के लिए कुछ बाकी नहीं रह जाता। ...और प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव सहित पांच तीर्थंकर हमारी कोख से पैदा हुए। बुद्ध जैसे महामानव ने भी हमारी गोद में आश्रय लिया और 16 बरसात के चार माह व्यतीत करने के साथ हमारी ही वादियों से अनेक कालजयी उपदेश दिए, जिसका स्पंदन मैं आज भी अनुभूत करती हूं।

सिख गुरुओं, सूफी आचार्यों एवं रामानुजीय-रामानंदीय आचार्यों की साधना-सिद्धि से अभिषिक्त होने के साथ किसी को और क्या चाहिए। मैं तो अपनी प्रकृति में ही पूर्ण समाधिस्थ-स्वर्गिक थी। धरती पर आने से पूर्व भगवान विष्णु के लोक वैकुंठ के केंद्रीय प्रभाग में स्थापित थी और विष्णु की ही इच्छा से यहां लाई गई।

कालांतर में मैं दिव्य-दैवी सलिला सरयू से भी अभिषिक्त-अवगुंठित हुई। ऐसी अति विलक्षण विरासत के चलते मैं पृथ्वी पर होकर भी अपार्थिव और जगत में रहते हुए भी जगदीश में लीन रही। तथापि मैं उनके प्रति कृतज्ञ हुए बिना नहीं रह सकती, जिन्होंने मुझे संवारने की प्राण पण से चेष्टा की।

मेरा राम चाहें तो...

मेरे राम चाहें तो निमिष मात्र में मुझे पुन: उस वैकुंठ के वैभव से सज्जित कर सकते हैं, जहां से मैं सृष्टि के आरंभ में ही लाई गई थी। आज प्रश्न मेरी महिमा का नहीं है। धर्म, अध्यात्म, संस्कृति और इस राष्ट्र की जड़ों से अनुप्राणित लोगों की भावनाओं का है। उसकी अनदेखी मैं नहीं कर सकती। मैं चाहे जितनी वीतराग होऊं, किंतु ऐसे लोगों को मेरा पूर्ण आशीर्वाद है। आखिर उन्होंने मेरे प्रति अपनी प्रतिबद्धता का परिचय देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज मैं उनके प्रयास से प्रसन्न और गौरवान्वित हूं।

 मेरे राम के अनुरागी सुदीर्घ परीक्षा में न केवल सफल हुए, बल्कि अपेक्षा से भी अधिक अंक अर्जित किए। मैं स्वयं चमत्कृत हूं। यह विश्वास तो था कि एक दिन मुक्त होऊंगी, किंतु इस गौरव-गरिमा के साथ मुक्त होने की उम्मीद नहीं थी।

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यदि बात स्वयं की अस्मिता की परिचायक राम जन्मभूमि की करूं, तो शताब्दियों के संघर्ष और दशकों के आंदोलन के बाद संभावना की गाड़ी जहां की तहां ठहर सी गई थी। ऐसे में न्यायालय ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया और केंद्र और प्रदेश की सरकार ने भव्य राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त किया।

श्रेष्ठतम सांस्कृतिक नगरी का स्वरूप मिला

मुझे पूरा विश्वास है कि जिस तरह भव्य राम मंदिर से अभिषिक्त किए जाने के साथ मुझे श्रेष्ठतम सांस्कृतिक नगरी का स्वरूप दिया जा रहा है, उसी तरह यह प्रयास करने वालों का जीवन भी दिव्यता-भव्यता से युक्त होगा। मैं प्रारंभ से ही समष्टिगत रही हूं। मेरा कभी विभाजन में विश्वास नहीं रहा है।

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मैं श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप मानवीय एकता-अखंडता में विश्वास करती रही हूं। मैं जिस चेतना का मर्म प्रतिष्ठित करती हूं, उसका आशय ही अखंडता है। ऐसे में मैं चाहती हूं कि सोमवार को मतदान हो, तब सभी एकजुटता का परिचय दें। संकीर्णता और स्वार्थ से ऊपर उठकर समष्टि के हित को ध्यान में रखें।

 50 हजार करोड़ की विकास योजनाओं से मेरा भला तो सुनिश्चित ही हो गया है, मेरे साथ संपूर्ण देश का भला सुनिश्चित करने वाली सरकार चुननी होगी। ताकि राम मंदिर की तरह भव्यतम राष्ट्र मंदिर का भी निर्माण हो सके। हमारी संस्कृति और संकल्प के अनुरूप भारत पुन: विश्व गुरु का गौरव हासिल कर सके।

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मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति और लौकिक समृद्धि तो पहली सीढ़ी है और हम राष्ट्रीय जीवन में ऐसे सोपान पार करते हुए अगले पांच वर्ष के बीच उस शिखर को छू सकें, जहां पुन: श्रीराम जैसी मर्यादा, तीर्थंकरों जैसी जितेंद्रियता, बुद्ध जैसा बोध प्रवाहमान हो और भारत नाम का ही नहीं विश्व को अपनी कथनी-करनी और रहनी से प्रेरित कर विश्व गुरु का वैसा ही गौरव प्राप्त करे।

जैसा वह उन दिनों में था, जिन दिनों का विवेचन करते हुए इंदीवर जैसे प्रख्यात गीतकार ने लिखा- जब जीरो दिया मेरे भारत ने भारत ने मेरे भारत ने तारों की भाषा भारत ने दुनिया को पहले सिखलायी देता न दशमलव भारत तो यूं चांद पे जाना मुश्किल था धरती और चांद की दूरी का अंदाज लगाना मुश्किल था।

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