मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है। सभी दल-एक दूसरे की घेराबंदी में जुटे हैं। सबकी नजर ओबीसी वर्ग पर है। भाजपा ने जहां अपनी राजनीतिक बिसात बिछा दी है तो वहीं कांग्रेस उसकी घेरेबंदी को तोड़ने की कोशिश में है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 11 ओबीसी चेहरों को उतारा है। कांग्रेस के 10 में से दो उम्मीदवार ओबीसी हैं।
By Jagran News NetworkEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Tue, 19 Mar 2024 12:09 PM (IST)
धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। भारत जोड़ो यात्रा में जातिगत जनगणना की मांग उठाने वाली कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में इसे मुद्दा नहीं बना पाई। राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना को मुद्दा जरूर बनाया मगर धरातल पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
बताया जाता है कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में प्रदेश के ओबीसी नेता हाशिये पर रहे, उन्हें आगे नहीं बढ़ाया गया। यही वजह रही कि इन दिग्गजों ने अरुण यादव या जीतू पटवारी जैसे नेताओं को मुख्यधारा में भी नहीं आने नहीं दिया।
इन आक्रामक नेताओं की जगह कमलेश्वर पटेल का चेहरा दोनों दिग्गज सामने लाते रहे हैं। यही कारण है कि ओबीसी वर्ग का भरोसा कांग्रेस जीत नहीं पाई।
ओबीसी को साधने में जुटी भाजपा
मध्य प्रदेश में भाजपा की नजर ओबीसी वर्ग को साधने पर है। इस बार लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने 29 में से 11 प्रत्याशी ओबीसी वर्ग से मैदान में उतारे हैं। इससे पहले प्रदेश को चार ओबीसी सीएम भी भाजपा दे चुकी है। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने अधिक प्रत्याशी ओबीसी वर्ग से उतारे थे।
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस ने अभी 10 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की है। इनमें दो सीटों पर ही ओबीसी चेहरों को टिकट दिया है। म्मीद जताई जा रही है कि कांग्रेस अभी इस वर्ग से कुछ और प्रत्याशियों को चुनावी समर में उतारेगी।
कांग्रेस और भाजपा में ओबीसी चेहरे
भाजपा में ओबीसी नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। इन नेताओं को पार्टी ने आगे भी बढ़ाया। इनमें उमा भारती,बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान और अब डॉ.मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया तो प्रहलाद पटेल, उदय प्रताप सिंह, नरेंद्र शिवाजी पटेल, कृष्णा गौर सहित अन्य नेताओं को आगे बढ़ाया। जातिवार गणना को कांग्रेस ने मुद्दा बनाया मगर भाजपा ने इसे जमकर भुनाया।
कांग्रेस में ओबीसी वर्ग से कोई बड़ा चेहरा अभी अपनी छाप नहीं छोड़ पाया है। विंध्य से आने वाले राजमणि पटेल को राज्यसभा भेजकर पार्टी ने भले ही उन्हें आगे बढ़ाने का प्रयास किया लेकिन वे भी अपना प्रभाव नहीं छोड़ सके।
क्या कांग्रेस तोड़ पाएगी भाजपा की घेराबंदी?
मुख्यमंत्री मोहन यादव की कैबिनेट में 11 मंत्री ओबीसी वर्ग से हैं। उधर,कमलेश्वर पटेल को कांग्रेस ने सीडब्ल्यूसी का सदस्य बनाया। मगर वह भी अपनी छाप नहीं छोड़ सके।
कमलेश्वर पटेल समाजवादियों के गढ़ कहे जाने वाले विंध्य अंचल से आते हैं। यही वजह है कि भाजपा की लंबी चौड़ी फौज के आगे कांग्रेस के गिने चुने ओबीसी चेहरे उसकी घेराबंदी को तोड़ नहीं पाते हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े
- मोहन यादव कैबिनेट में 11 मंत्री ओबीसी वर्ग से
- शिवराज सिंह कैबिनेट में 12 मंत्री इसी वर्ग से थे
- कमलनाथ सरकार में यह आंकड़ा सात था
- मोदी सरकार में 27 मंत्रियों का संबंध इसी वर्ग से
भाजपा ने हमेशा ओबीसी वर्ग के हितों का संरक्षण किया। उन्होंने कांग्रेस पर ओबीसी वर्ग की अनदेखी का आरोप लगाया। भूपेंद्र सिंह ने कहा कि भाजपा ने प्रदेश में ओबीसी कल्याण आयोग का गठन किया। इसे संवैधानिक मान्यता दी। ओबीसी गणना की रिपोर्ट सर्वोच्च अदालत में पेश की। इसी रिपोर्ट के आधार पर नगरीय निकाय और पंचायती राज संस्थाओं में ओबीसी आरक्षण मिल पाया। पूर्व मंत्री, भूपेंद्र सिंह, मप्र भाजपा के वरिष्ठ ओबीसी नेता।
क्या है टिकट का जातिगत गणित?
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 66 ओबीसी चेहरों को टिकट दिया वहीं कांग्रेस ने 62 को मैदान में उतारा था। वहीं भाजपा ने छह ओबीसी महिलाओं तो कांग्रेस ने पांच को टिकट दिया था।
भाजपा ने केवल ओबीसी का मुखौटा दिखाया: जेपी धनोपिया
प्रदेश कांग्रेस के मोर्चा प्रकोष्ठों के प्रभारी और कमल नाथ सरकार में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रहे जेपी धनोपिया ने आरोप लगाया कि भाजपा ने कभी कोई काम ओबीसी हित में नहीं किया है। कमलनाथ सरकार ने सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण का नियम बनाया। मगर भाजपा ने इसे लागू नहीं किया।
भाजपा के ओबीसी वर्ग से आने वाले चारों सीएम सिर्फ मुखौटा रहे। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी वर्ग से हैं। ओबीसी वर्ग से ही अशोक सिंह को राज्यसभा भेजा है। टिकट वितरण में भी ध्यान रखा जा रहा है। जातिवार गणना का मुद्दा कांग्रेस ने ही उठाया है और इसे आगे तक ले जाने का संकल्प पार्टी ने लिया है।