Amethi Lok Sabha Election 2024 कांग्रेस ने लंबे सस्पेंस के बाद अमेठी रायबरेली के प्रत्याशियों की घोषणा की लेकिन अपने फैसले से सबको चौंकाया भी। पार्टी ने राहुल को अमेठी की जगह रायबरेली से उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में सवाल है कि राहुल ने अमेठी क्यों छोड़ी। इस एक प्रश्न के कई उत्तर हो सकते हैं। जानिए इसके पीछे क्या रही होगी कांग्रेस की रणनीति...
अम्बिका वाजपेयी/ पुलक त्रिपाठी, रायबरेली। अंतिम दिन तक रहस्य बनाए रखने के बाद अंतत: राहुल गांधी ने रायबरेली से नामांकन पत्र दाखिल कर दिया, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह कि राहुल ने अमेठी सीट क्यों छोड़ी? राहुल गांधी के नामांकन की भीड़ में जैसे ही सवाल उठा, वहां खड़े कांग्रेसी रामदेव बोले, अमेठी ने दिल तोड़ा इसलिए राहुल ने उसे छोड़ा।
उनकी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि दिनकर बोल पड़े कि रायबरेली में नेता चुनाव नहीं लड़ते यहां जनता चुनाव लड़ती है। सोनिया गांधी ने अपनी विरासत पुत्र को सौंपी है। इन बातों को आप कदाचित समर्थकों का भावनात्मक लगाव कह सकते हैं, क्योंकि सोनिया ने राहुल को नामांकन कक्ष में हाथ पकड़कर इस तरह आगे किया जैसे अपनी राजनीतिक थाती उनको सौंप दी हो।
एक नहीं, कई वजहें
राजनीतिक पंडितों के कयास बताते हैं कि गांधी परिवार की अमेठी से लगातार दूरी, स्मृति ईरानी की सक्रियता तथा हार की आशंका ने राहुल को अमेठी छोड़ने पर विवश किया, लेकिन उनके रायबरेली आने को केवल इन्हीं कुछ बातों से आंका नहीं जा सकता। राहुल के अमेठी छोड़ने पर भाजपा कहां चुप रहने वाली थी। बंगाल के बर्धमान में मोदी ने कहा कि शहजादे अमेठी से भागकर रायबरेली में रास्ता तलाश रहे हैं तो स्मृति इरानी ने इसे चुनाव से पहले ही हार स्वीकार करने वाला कदम बताया।
इस कदम के अपने-अपने निहितार्थ हैं, लेकिन सबसे ज्यादा हतप्रभ तो अमेठी और रायबरेली के पार्टी पदाधिकारी हैं। उनकी प्रतिक्रिया पर दलीय आस्था की छाप स्वाभाविक है, लेकिन चेहरे के हाव-भाव बयानों से मेल खाते नहीं दिखे। कांग्रेस के रायबरेली जिलाध्यक्ष पंकज तिवारी कहते हैं कि राहुल, प्रियंका हों या सोनिया, हमें उनको जिताकर भेजना है। प्रत्याशी की घोषणा और नामांकन एक औपचारिकता है। डरकर भागने के आरोप हास्यास्पद हैं।
भाजपा के आरोप
कांग्रेस के अमेठी जिलाध्यक्ष प्रदीप सिंघल ने कहा कि पार्टी सर्वोपरि है, हम लोग तो चुनाव की तैयारी कर रहे थे। गठबंधन का साथ है और किशोरी लाल शर्मा जी से बेहतर संगठन को कौन जानता है। सोनिया जी ने इतने दिन रायबरेली की सेवा की है, अब राहुल जी करेंगे। अमेठी के भाजपा जिलाध्यक्ष राम प्रसाद मिश्र ने कहा कि अपनी निष्क्रियता की वजह से राहुल को अमेठी छोड़नी पड़ी, यही हाल रायबरेली में भी होगा। अगर किसी तरह से राहुल गांधी जीत गए तो रायबरेली छोड़कर वायनाड को अपनाएंगे।
तिलोई विधायक मयंकेश्वर शरण सिंह ने कहा कि रायबरेली की जनता को समझना होगा कि कर्म प्रधान होता है। राहुल ने अमेठी में अच्छे कर्म किए होते तो उन्हें हार न मिलती। अगर राहुल गांधी पांच साल में पांच बार ही अमेठी आएंगे तो कौन उन्हें वोट देगा। वह रायबरेली के साथ ऐसा नहीं करेंगे, भविष्य में देखना रोचक होगा।
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परिवार की परिपाटी
कयास लगाए जा रहे थे कि रायबरेली से प्रियंका व अमेठी से राहुल गांधी चुनाव लड़ेंगे, लेकिन आखिरी समय में कांग्रेस ने रणनीति बदली और राहुल को रायबरेली से प्रत्याशी घोषित किया। गांधी परिवार के निकटतम कांग्रेसी इसके पीछे असल वजह 2019 में अमेठी से राहुल की हार से ज्यादा परिवार की परिपाटी बता रहे हैं। राहुल इसे आगे बढ़ाने जा रहे हैं। इसके तहत गांधी परिवार के वरिष्ठ सदस्य को अमेठी छोड़कर रायबरेली का रुख करना पड़ता रहा है।
रणनीतिक रूप से इस कदम से सत्तादल की अब तक की तैयारियों को विफल कर नए सिरे से मुकाबले में आने के लिए मजबूर करना माना जा रहा है। अमेठी राजीव गांधी, संजय गांधी की कर्मस्थली रही है। राहुल गांधी भी 2004-2019 तक सांसद रहे। जानकारों का मानना है कि 2019 में स्मृति इरानी से मिली शिकस्त के बाद अमेठी से राहुल का लगाव कम हुआ, लेकिन पिता व ताऊ की यादों को अपने आंचल में समेटे होने व पुराने रिश्ते को अटूट बनाने के लिए परिवार के भरोसेमंद सिपहसालार केएल शर्मा को मैदान में उतार कर जनता को अपना भरोसा मजबूत करने का एक अवसर दिया है।
गांधी परिवार की पारंपरिक सीट
रायबरेली की सलोन तहसील का एक हिस्सा अमेठी में है, लेकिन इस क्षेत्र पर रायबरेली की पकड़ मजबूत मानी जाती है। 1967 में इंदिरा ने रायबरेली से चुनाव लड़ा। फिर 1971, 1977 में लड़ीं। इसके बाद 1980 में एक बार फिर इंदिरा गांधी ने कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर रायबरेली को चुना। इसी तरह सोनिया गांधी रायबरेली से साल 2004 में चुनाव लड़ीं। उसके बाद 2006 के उपचुनाव, 2009, 2014 और फिर 2019 में चुनाव लड़ा। सोनिया हर बार रायबरेली से अजेय रहीं।
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जीतने के बाद रायबरेली छोड़ेंगे राहुल?
अमेठी-रायबरेली के भावुक कार्यकर्ता कुछ भी कहें, लेकिन राहुल के रायबरेली से नामांकन के पीछे की सोच इस बीच आए जयराम रमेश के एक पोस्ट में झलक पड़ी। जयराम लिखते हैं- ‘रायबरेली विरासत नहीं, जिम्मेदारी और कर्तव्य है!’ इस सूत्र वाक्य के बाद लंबी चौड़ी पोस्ट के बीच की लाइनें महत्वपूर्ण हैं, जिसमें लिखा है- प्रियंका को एक चुनाव क्षेत्र तक सीमित न रखा जाए। प्रियंका तो कोई भी उपचुनाव लड़कर सदन पहुंच जाएंगी।’
रणनीतियों की बारीकी समझने वाले कहते हैं कि यदि सिर्फ एक चुनाव क्षेत्र में सीमित होने की बात होती तो राहुल पर भी तो यही लागू होता है। फिर तो राहुल वायनाड से भी न लड़ते। असल बात यह है कि राहुल की दक्षिण की तुलना में उत्तरी राज्यों में वैसी अपील नहीं जैसी प्रियंका की है। इसलिए राहुल रायबरेली से नामांकन के बाद भी उत्तर प्रदेश में कम ही सक्रिय दिखेंगे।
यूपी पर फोकस करेंगी प्रियंका
प्रियंका ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि छह मई के बाद वह अमेठी-रायबरेली में डेरा जमाएंगी। इस बहाने वह आसपास की सीटों के प्रचार में भी सक्रिय रहेंगी। कांग्रेस के हिस्से में जो सीटें आई हैं, वह अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश की हैं। अमेठी-रायबरेली को बेस बनाकर वह कांग्रेस के पक्ष में अधिक योगदान दे सकती हैं, जबकि राहुल की सक्रियता यूपी से बाहर ही रहेगी। जयराम ने उपचुनाव का जिक्र कर इस संभावना को भी हवा दे दी है कि राहुल जीतते हैं तो भी वह रायबरेली के बजाय वायनाड को ही चुनेंगे। तब संभवत: प्रियंका यहां उपचुनाव लड़ें।
जयराम के यह पोस्ट डालने के कुछ घंटे पहले सुबह 10 बजे ही रायबरेली के फिरोज गांधी डिग्री कालेज चौराहे पर खड़े देवेंद्र सिंह बता रहे थे कि राहुल यह सीट जीतकर छोड़ देंगे और प्रियंका लड़ेंगी। अभी वह पूरे देश में प्रचार में व्यस्त हैं। राहुल और प्रियंका को अगल-बगल की सीटों में व्यस्त कर देना कहां की समझदारी है। शायद यही पार्टी की रणनीति है, जिसके बारे में कांग्रेसी नेता कई दिनों से चर्चा कर रहे थे। राहुल वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे हैं, चर्चा यह भी है कि यदि वह दोनों सीटों पर जीत जाते हैं तो प्रियंका के लिए रायबरेली सीट छोड़ सकते हैं।
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