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क्‍या बंगाल में ठीक नहीं है कानून-व्यवस्था! कभी ED तो कभी NIA पर हो रहे हमले, वे घटनाएं जिनकी देशभर में हुई चर्चा

Lok Sabha Election 2024 पश्चिम बंगाल की बदहाल कानून व्यवस्था की गूंज राष्ट्रीय पटल पर हमेशा होती है। इस मुद्दे पर विपक्षी दल सत्ताधारी दल पर निशाना साधते हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसे बंगाल की छवि को खराब करने की साजिश बताती हैं। इस बार भी चुनाव में कानून-व्यवस्था ज्वलंत मुद्दा है। यहां ईडी और एनआईए पर भी हमले हो चुके हैं।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Wed, 10 Apr 2024 02:02 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: बीते साल दर साल, विधि-व्यवस्था बदहाल।

विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। बंगाल में पार्टियां बदलीं, सरकार बदली, सियासी चेहरे बदले, पुलिस तंत्र भी बदलता गया, नहीं बदली तो बस कानून एवं व्यवस्था की बदतर हालत। समय के साथ पुलिस डिस्ट्रिक्ट के गठन हुए, कमिश्नरेट बने, दर्जनों थाने खुले, विभिन्न पुलिस प्रकोष्ठ के निर्माण हुए, ढेरों पद सृजित हुए, पुलिसकर्मियों को अत्याधुनिक हथियारों व उपकरणों से लैस किया गया, फिर भी कानून एवं व्यवस्था की स्थिति जस की तस है।

हर चुनाव में कानून-व्यवस्था मुद्दा

वाममोर्चा के 34 वर्षों के शासनकाल से लेकर वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस के 13 वर्षों के राज तक बंगाल में कानून एवं व्यवस्था की बदहाली प्रत्येक चुनाव में बदस्तूर ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। इस लोकसभा चुनाव में भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है।

भाजपा, कांग्रेस, वाममोर्चा से लेकर चुनावी मैदान में उतरे छोटे-बड़े सभी दल कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को लेकर तृणमूल पर निशाना साध रहे हैं। दूसरी ओर राज्य की मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी हर बार की तरह इसे विरोधी दलों की बंगाल की छवि बिगाड़ने की साजिश करार दे रही हैं।

टीएमसी नेताओं का ये तर्क

वहीं, तृणमूल के नेता-कार्यकर्ता चुनाव प्रचार में कह रहे हैं कि राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने कोलकाता को देश का सबसे सुरक्षित शहर करार दिया है। आखिर बंगाल में कानून एवं व्यवस्था ध्वस्त क्यों है?

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ

इसके जवाब में कानून विशेषज्ञ बृजेश गिरि बताते हैं कि बंगाल में दशकों से एक ट्रेंड चलता आ रहा है, वह यह है कि जब जिस पार्टी के हाथों में सत्ता होगी, पुलिस पर पूरी तरह से उसी का नियंत्रण होगा। पुलिस सत्ताधारी पार्टी की कैडर बनकर रह गई है। वाममोर्चा के जमाने में तो थाने में घुसकर पुलिस वालों को धमकाया जाता था। थाने में तोड़फोड़ की कई घटनाएं हो चुकी हैं।

चुनाव आयोग बेहद सतर्क

बंगाल में लोस चुनाव की तारीखों की घोषणा से काफी पहले केंद्रीय बल भेजा जाना और 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश से लगभग आधी सीटें 42 होने पर भी बंगाल में वहां की तरह सर्वाधिक सात चरणों में मतदान कराया जाना, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि चुनाव आयोग इस राज्य को लेकर कितना सतर्क है।

पुलिस को आयोग का कड़ा निर्देश

चुनाव की घोषणा से पहले बंगाल में तैयारियों का जायजा लेने कोलकाता आई चुनाव आयोग की पूर्ण पीठ ने राज्य के आला प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों को हिंसा-मुक्त चुनाव कराने का बेहद कड़ा निर्देश दिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार तो यहां तक कहकर गए हैं कि पुलिस-प्रशासन ने अगर ठीक तरीके से अपना काम नहीं किया तो आयोग को काम करवाना आता है।

कानून को शर्मसार करने वाली घटनाओं की लंबी फेहरिस्त

  • बोगटूई में लोगों के घरों में ताला जड़कर आग लगाकर जिंदा जलाकर मार डाला गया।
  • कृष्णागंज में तृणमूल विधायक सत्यजीत विश्वास और झालदा में कांग्रेस पार्षद तपन कांदू की सरेआम गोली मारकर हत्याकर दी गई थी।
  • माकपा के युवा संगठन डीवाईएफआई के कार्यकर्ता अनीस खान के घर में पुलिस की वर्दी में घुसकर उन्हें छत से फेंककर हत्या कर दी गई।
  • संदेशखाली में पुलिस की नाक के नीचे बड़ी संख्या में महिलाओं का यौन उत्पीड़न व ईडी की टीम पर हमला।
  • पूर्व मेदिनीपुर जिले के भूपतिनगर में विस्फोट कांड की तफ्तीश के सिलसिले में गई एनआईए की टीम पर हमला।
  • 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा व पिछले साल हुए पंचायत चुनाव में भारी रक्तपात इसकी वीभत्सता को और बढ़ाते हैं।

जान बचाने को पुलिस वालों को मेज के नीचे छिपना पड़ा

बंगाल में कानून-व्यवस्था की इससे लज्जाजनक तस्वीर और क्या होगी कि 2014 में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निवास स्थल से कुछ दूरी पर स्थित अलीपुर थाने में तृणमूल नेता के हमले के दौरान वहां ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मी जान बचाने के लिए मेज के नीचे छिप गए थे। विरोधी दल लगातार कानून-व्यवस्था का मुद्दा उठाते आए हैं।

...जब सड़क पर उतरे राज्यपाल

पिछले कई राज्यपाल भी इसे लेकर सवाल करते आए हैं। वर्तमान राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस तो पिछले साल पंचायत चुनाव के समय सड़क पर उतर गए थे। लोगों के बीच सुरक्षा की भावना पैदा करने को उन्होंने इस लोस चुनाव में भी मतदान के दिनों में लोगों के बीच रहने की बात कही है। सियासी विश्लेषकों का कहना है कि बंगाल में भ्रष्टाचार की तरह कानून-व्यवस्था भी बड़ा मुद्दा है। राज्य में कई बार राष्ट्रपति शासन लागू करने की भी मांग उठ चुकी है।

जब तक पुलिस से सत्ताधारी पार्टी का नियंत्रण नहीं हटेगा, तब तक कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार की उम्मीद करना बेमानी है। सत्ताधारी पार्टी और पुलिस के बीच स्पष्ट रेखा होनी चाहिए। पुलिस को निष्पक्ष व स्वतंत्र तरीके से काम करने की छूट देनी होगी। बृजेश गिरि, कानून विशेषज्ञ।

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