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Lok Sabha Election 2024: कश्मीर में क्यों हो रहा अधिक मतदान? कहीं ये वजहें तो नहीं; बहुत कुछ कहता है मतदाताओं का जोश

Lok Sabha Election 2024 कश्मीर के मतदाताओं के जोश ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। बंपर मतदान ने कश्मीर में आए बदलाव पर मुहर लगा दी है। पहली बार यहां लोगों ने अपनी वोट की ताकत को जाना है। अब यहां के लोग संसद में अपनी मजबूत आवाज चाहते हैं। कश्मीर के लोगों ने लोकतंत्र की ताकत और उसकी गहराई को समझा है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Thu, 23 May 2024 10:33 AM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: कश्मीर घाटी में मतदान ने तोड़े कई रिकॉर्ड।
नवीन नवाज, जागरण, श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों के मतदान ने ही बता दिया है कि कश्मीर में कितना बदलाव आया है। वादी की श्रीनगर व बारामुला संसदीय सीट पर बढ़ा हुआ मतदान बताता है कि लोगों का लोकतंत्र और संसद के प्रति विश्वास बढ़ा है। वह पंचायत से लेकर संसद तक अपना प्रतिनिधि पहुंचाने को उत्सुक हैं। मतदाताओं के जोश ने बता दिया कि आम कश्मीरी लोकतंत्र में भागेदारी कर शांत व विकसित जम्मू-कश्मीर की नींव रखना चाहते हैं।

बारामुला की हवा में दिखा जोश

ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब, श्रीनगर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों और चुनाव बहिष्कार के नारों का केंद्र बना रहता था। अब यहां सियासी नारों की गूंज और रैलियों की हलचल है। इससे भी अधिक जोश बारामुला की हवा में दिखाई दिया। कल तक बहिष्कार के नारे लगाने वाले मतदान के लिए कतार में खड़े दिखाई दिए।

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अब इस सीट पर सबकी निगाहें

अब सबकी नजर अनंतनाग-राजौरी सीट पर है, जहां मतदान 25 मई को है। यह बदलाव अनायास ही नहीं है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद सही मायने में यहां के लोगों ने नया कश्मीर देखा है। लोकतंत्र की ताकत और उसकी गहराई को समझा है।

पंचायतों को मिले अधिकार

विस भंग होने के बावजूद जम्मू- कश्मीर में पंचायतों व शहरी निकायों ने लोकतंत्र का अलख जगाया है। पहली बार त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था यहां लागू हुई। पंचायतों को उनके अधिकार मिले और इसका ही असर यह रहा कि ग्रामीण विकास की गति तीव्र हुई।

लोगों ने महसूस की वोट की ताकत

प्रशासनिक सजगता और पंचायतों की सक्रियता से पहली बार लोगों को विश्वास हुआ कि वोट की ताकत से वह अपना नसीब खुद लिख सकते हैं। यही वजह है कि वह न केवल खुलकर बाहर आए बल्कि अधिक से अधिक मतदान भी किया।

क्या विधानसभा चुनाव की खुलेंगे राहें?

राजनीतिक दलों ने 370 से लेकर पाकिस्तान के मुद्दे को खूब उछाला पर लोग शांति, रोजगार और विकास के प्रति अपनी अपेक्षाएं रखते रहे। इन उम्मीदों को पूरा करने के लिए वोट किया। लोग अपेक्षा कर रहे हैं कि चुनाव में उनकी भागेदारी जल्द विस चुनाव की राह भी खोलेगी।

मतदाताओं ने बिना हिचक कहा कि वह लोकतंत्र में आस्था की पुष्टि के लिए वोट डाल रहे हैं। उन्होंने भारतीय नागरिक के रूप में अपनी गरिमा व सम्मान की बात की। कहा कि केंद्र हमारे मुद्दे सुने और अविश्वास की दीवार तोड़ दी जाए।

अब अपनी अंगुली की स्याही नहीं मिटाते

1987 के बाद कश्मीर ने लोकतंत्र का सबसे बुरा दौर देखा है। जनभागेदारी के अभाव में चुनावी राजनीति कुछ घरानों के ईर्द-गिर्द घूमती रही। पाकिस्तान परस्त तत्वों और अलगावादियों की चेतावनी के कारण लोग खुलकर भागेदारी से बचते रहे। अब परिस्थितियां भिन्न हैं और अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद यह कश्मीर में पहला बड़ा चुनाव है।

शांतिपूर्वक माहौल के कारण मतदाता अब अपनी अंगुली की स्याही नहीं मिटाते, बल्कि बड़े उत्साह से दिखाते हैं और तस्वीर खिंचवाते हैं। इसका श्रेय पांच वर्ष के दौरान जम्मू-कश्मीर में जीवन के हर क्षेत्र में आए बदलाव को ही जाता है और इसकी नींव पांच अगस्त 2019 को रख दी गई। आतंकियों और अलगाववादियों के पूरे तंत्र पर चोट की जा रही है, राष्ट्रवाद और अलगाववाद के बीच के ग्रे जोन को नष्ट कर दिया गया है।

50 की उम्र में पहली बार वोट डालने आए

बहुत से मतदाता ऐसे थे, जो आयु में 50 वर्ष के आसपास पहुंच चुके थे, पर पहली बार वोट डाल रहे थे। नए-पुराने आतंकियों के स्वजन भी वोट डालते हुए दिखे। प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के नेता अब चुनावी राजनीति में भागेदारी की चाह रख रहे हैं। यही वह तत्व थे, जो कभी बहिष्कार के नारे लगाते थे। इस बदलाव से लोग गदगद हैं।

चुनाव सब लड़ रहे हैं, पर जीत लोकतंत्र रहा

राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि सबसे बड़ी बात है कि चुनाव सब लड़ रहे हैं, पर जीत लोकतंत्र रहा है। लोगों की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विश्वास की जीत हो रही है। आवश्यक है कि विश्वास की इस भावना को और मजबूत बनाया जाए। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा नहीं है और ऐसे मे आम लोगों की तंत्र में भागेदारी बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि यह चुनाव जल्द हों।

लोगों को रास आ रहा ये बदलाव

फिलहाल, भाजपा कश्मीर में चुनावी राजनीति में नहीं है, पर शायद वह विश्वास की कड़ी को और मजबूत बनाकर ही चुनाव के अखाड़े में कूदना चाहती है। नए चेहरों और नए दलों की भागेदारी से साफ है कि आमजन को यह बदलाव रास आ रहा है।

370 हटने से सोच में आया बड़ा बदलाव

पुंछ में एक चुनावी सभा के दौरान राज्यसभा सदस्य गुलाम अली खटाना ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभावशाली नेतृत्व की वजह से ही कश्मीर ही नहीं, देश ने बदलाव देखे हैं। लोस चुनाव में भारी मतदान इसका उदाहरण है। अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद लोगों के सोच में बड़ा बदलाव आया है।

संसद में मजबूत आवाज चाहते हैं लोग

राजनीतिक विशेषज्ञ बिलाल बशीर का कहना है कि लोकसभा चुनाव में भारी मतदान साबित करता है कि जम्मू-कश्मीर के लोग विशेषकर युवा चाहते हैं कि संसद में उनका प्रतिनिधि मजबूती से अपनी आवाज रख सके। जम्मू-कश्मीर में फिलहाल विधानसभा नहीं है और ऐसे में लोग चाहते हैं कि उनकी आवाज सुनाई दे। ये लोग पहली बार मतदान करने आए हैं।

अब लोकतंत्र का अहसास

कश्मीर मामलों के जानकार रमीज मखदूमी कहते हैं कि कश्मीर में पहली बार लोकतंत्र का अहसास हुआ है। पंचायतों और नगर निकायों के प्रतिनिधियों को देखा है कि वह कैसे काम करते हैं। इससे लोगों का चुनावी राजनीति में विश्वास बढ़ा है।

लोगों को लगता है कि अगर एक सरपंच अपने क्षेत्र में 50-60 लाख रुपये का काम करा पा रहा है तो सांसद पूरे क्षेत्र की स्थिति बदल सकते हैं। ऐसे में कश्मीर की खुशहाली के लिए वे कोई अवसर अब चूकना नहीं चाहते।

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