अब इलाहाबाद जिले की पहचान बदल गई है, क्योंकि इसका नाम प्रयागराज हो गया है। अब वह पुराना राजनीतिक वैभव भी नहीं रहा है। कभी प्रधानमंत्रियों का जनपद कहे जाने वाले इस जिले के राजनीतिक इतिहास पर अमलेन्दु त्रिपाठी की रिपोर्ट...
यह है इसका अतीत
सबसे पहले राजनीतिक अतीत पर निगाह डालते हैं। तीन राजनीतिक विभूतियां पं. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी व वीपी सिंह न सिर्फ इलाहाबाद में पैदा हुए बल्कि प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। पं. नेहरू फूलपुर संसदीय क्षेत्र से चुनकर प्रधानमंत्री बने। लालबहादुर शास्त्री इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए।यह भी पढ़ें: श्याम रंगीला ही नहीं इन 33 लोगों का भी नामांकन हुआ खारिज; इन छह प्रत्याशियों से होगा पीएम मोदी का मुकाबला
2004 के बाद से कोई नेता नहीं बना केंद्रीय मंत्री
वीपी सिंह फूलपुर व इलाहाबाद संसदीय सीट से चुनाव लड़ते रहे थे, जबकि चंद्रशेखर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई के दौरान ही राजनीति का ककहरा सीखा था। गौरवशाली इतिहास रखने वाले इसी जनपद की दोनों संसदीय सीटों पर अब एक भी चेहरा ऐसा नहीं है, जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान हो। इतना ही नहीं 2004 में डॉ. मुरली मनोहर जोशी के बाद से प्रयागराज का कोई नेता केंद्रीय मंत्री नहीं बन सका।
यहां हर विचारधारा पुष्पित-पल्लवित होती रही
ब्रिटिश शासनकाल के खिलाफ छिड़ी आजादी की लड़ाई का केंद्र रहा इलाहाबाद कभी कांग्रेस का गढ़ था। स्वराज भवन 24 नवंबर, 1931 से 1947 तक कांग्रेस मुख्यालय रहा। कांग्रेस की सारी रणनीति यहीं बनती थी। पं. नेहरू के चुनाव लड़ने के समय आनंद भवन राजनीति का केंद्र हुआ करता था। तमाम बड़े निर्णय यहीं लिए जाते थे। बावजूद इसके यहां हर विचारधारा पुष्पित-पल्लवित होती रही।
लोहिया ने फूलपुर से लड़ा चुनाव
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघ चालक प्रो. राजेंद्र सिंह रज्जू भय्या की कर्मस्थली भी यही रही। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षक होने के साथ उन्होंने भगवा विचारधारा को विस्तार दिया। समाजवादी विचारधारा को बढ़ाने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया ने 1962 का लोकसभा चुनाव फूलपुर से पं. जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से लड़ा था। लोहिया चुनाव भले हार गए, लेकिन अपनी विचारधारा का ऐसा बीजारोपण किया कि आगे चलकर उसका प्रभाव देशभर में दिखा।
यह दिग्गज भी जीत चुके इलाहाबाद का दिल
समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य छोटे लोहिया के नाम से विख्यात जनेश्वर मिश्र फूलपुर से चुनकर संसद पहुंचे। विजयलक्ष्मी पंडित, कमला बहुगुणा जैसे बड़े नेता फूलपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ते रहे। इनके अलावा पुरुषोत्तम दास टंडन, हेमवती नंदन बहुगुणा के अलावा मेगा स्टार अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव जीतकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे और राष्ट्रीय पटल पर चमक बिखेरी।
इनके नाम के साथ संगम नगरी की साख बढ़ी। इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र को भगवा विचारधारा भी रास आई। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे डॉ. मुरली मनोहर जोशी यहां से लगातार तीन चुनाव जीतने में सफल रहे।
अब सूनापन नजर आ रहा
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो अब सूनापन नजर आ रहा है। अधिकांश नेता क्षेत्रीय स्तर पर सिमट कर रह गए हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का दखल जरूर है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। यहां का जनमानस सांसद और विधायक भले चुन रहा है, लेकिन नेतृत्व कर्ताओं का आभामंडल उतना बड़ा नजर नहीं आ रहा।
कैसा है बगल की सीटों का हाल
जनपद के दोनों लोकसभा क्षेत्र इलाहाबाद और फूलपुर में 2014 व 2019 में कमल खिला है। इससे सटी दो अन्य लोकसभा क्षेत्र प्रतापगढ़ और कौशांबी की बात करें तो यहां भी भाजपा के सांसद हैं। इसके बावजूद केंद्र के मंत्रिमंडल में कोई जगह नहीं बना पाया। प्रतापगढ़ में राजा दिनेश सिंह के बाद कोई केंद्रीय मंत्री नहीं बन पाया। राजा दिनेश सिंह विदेश मंत्री रहे थे।
सामाजिक आंदोलनों से बढ़ा नेताओं का आभामंडल
नेता आंदोलनों से निकलते हैं, जिस आंदोलन का जितना बड़ा फलक, नेता का आभामंडल भी उतना ही बड़ा होता है। प्रयागराज स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र रहा तो उस दौर के नेता दिल्ली तक पहचाने जाते थे। इसके बाद वीपी सिंह, चंद्रशेखर जैसे नेताओं ने सामाजिक आंदोलन खड़ा किया।क्षेत्रीय मुद्दों के प्रभावी होने का सिलसिला शुरू हुआ तो अलग तरह की राजनीति आई। उसमें सर्वमान्यता का लोप हुआ। नए नेता और क्षेत्रीय दल पनपे। वे प्राय: जिले या बहुत अधिक लखनऊ तक सिमटकर रह गए।
पिछली सदी के अंतिम दशक में अशोक सिंहल के नेतृत्व में राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा। उसे भाजपा के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने का प्रयास हुआ। वहीं, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक एकता यात्रा निकालकर जन-जन में राष्ट्रवाद की भावना जगाई।
छात्र राजनीति पर प्रतिबंध ने घटा दिया कद
1963 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे श्यामकृष्ण पांडेय मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य से अत्यंत चिंतित हैं। वह इसके पीछे छात्र राजनीति बंद होने को प्रमुख कारण मानते हैं। कहते हैं कि पहले छात्र राजनीति में गढ़कर युवाओं का व्यक्तित्व विकास होता था।
उन्हें राजनीतिक भाषण देने से लेकर हावभाव व व्यवहार की सीख मिलती रही है। जितने भी बड़े जनाधार वाले नेता हुए हैं, उनका जुड़ाव छात्र राजनीति से रहा है। उस परंपरा को खत्म करने से राजनीतिक क्षरण हुआ है।
फूलपुर में सबसे अधिक कांग्रेस उम्मीदवार के सिर बंधा ताज
फूलपुर संसदीय क्षेत्र कांग्रेस के लिए हमेशा खास रहा। इसी सीट से पहला चुनाव 1952 में पं. नेहरू ने जीता और प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित किया। यहां से जीतने वाले कांग्रेसियों में मसुरियादीन, विजय लक्ष्मी पंडित, विश्वनाथ प्रताप सिंह, रामपूजन पटेल का नाम शामिल है।इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजनीति विभाग व पं. दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के समन्वयक -प्रो. मधुरेंद्र का कहना है कि अब सामाजिक आंदोलनों का दौर खत्म-सा हो गया है। जाति, धर्म और धन का बोलबाला है। चुनाव प्रबंधन राजनेता नहीं बल्कि निजी कंपनियां कर रही हैं।
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