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ओवैसी ही रहेंगे या बदलेगा हैदराबाद का निजाम; कौन हैं BJP प्रत्‍याशी माधवी लता, जिनके प्रचार के अंदाज से विरोधी खेमे में है बेचैनी?

भाजपा प्रत्याशी माधवी लता ने ओवैसी परिवार की लगातार चार दशकों से ज्यादा की निष्कंटक निजामी को चुनौती दी है। प्रतिदिन कोई न कोई विवाद और प्रतिवाद के बीच ओवैसी के सामने माधवी लड़ रही हैं। हैदराबाद मुस्लिम बहुल सीट है लेकिन मतदाता सूची से इस बार पांच लाख 41 हजार वोटों के कम हो जाने एवं माधवी के प्रचार के निराले अंदाज से विरोधी खेमे में बेचैनी है।

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Wed, 24 Apr 2024 09:19 AM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: भाजपा के भाग्यनगर बनाम ओवैसी के हैदराबाद के संघर्ष का क्या होगा अंजाम
 अरविंद शर्मा,नई दिल्ली। हैदराबाद की लड़ाई को इस बार मामूली मत समझिए। भाजपा प्रत्याशी माधवी लता ने ओवैसी परिवार की लगातार चार दशकों से ज्यादा की निष्कंटक निजामी को चुनौती दे रखी है। प्रतिदिन कोई न कोई विवाद और प्रतिवाद के बीच ओवैसी के सामने माधवी अड़ी-खड़ी और लड़ रही हैं।

 हैदराबाद मुस्लिम बहुल सीट है, लेकिन मतदाता सूची से इस बार पांच लाख 41 हजार वोटों के कम हो जाने एवं माधवी लता के प्रचार के निराले अंदाज से विरोधी खेमे में बेचैनी है। यहां के 20 लाख वोटर सांसद नहीं, बल्कि मुसा नदी के तट पर बसे इस ऐतिहासिक शहर का भविष्य चुनने जा रहे हैं।

भाग्यनगर या हैदराबाद?

संसदीय चुनाव के परिणाम के आधार पर तेलंगाना की राजनीति भी करवट ले सकती है। यह भी तय हो सकता है कि 1591 में मुहम्मद कुली कुतुब शाह द्वारा बसाए गए हैदराबाद पर ओवैसी का कब्जा आगे भी जारी रहेगा या दक्षिण की ओर बढ़ रही भाजपा के कदम को माधवी लता से सहारा मिलेगा। ओवैसी जीतते हैं तो सब कुछ यथावत रहेगा, किंतु अगर जीत भाजपा की होती है तो इस शहर की पहचान की पुनर्व्याख्या तय है-भाग्यनगर या हैदराबाद।

आजादी के बाद से हैदराबाद में लोकसभा के हुए कुल 17 चुनावों में दस बार ओवैसी परिवार की जीत हुई है। सिर्फ सात बार ही अन्य को मौका मिला है। कांग्रेस को अंतिम जीत 1980 में मिली थी। 1984 में असदुद्दीन के पिता सलाहुद्दीन ओवैसी ने पहली बार कांग्रेस की जीत के सिलसिले पर ब्रेक लगाया था। उसके बाद किसी दल की दाल नहीं गली। लगातार छह चुनाव सलाहुद्दीन ने जीते और असदुद्दीन ने चार चुनाव।

कौन हैं भाजपा प्रत्याशी माधवी लता?

साल 2024 में भी यदि परिणाम नहीं बदला तो यह उनकी लगातार पांचवी जीत होगी। पिछले दो चुनावों से भाजपा दमदारी से लड़ रही है, मगर हार का अंतर कम नहीं कर पा रही। इस बार उम्मीद के साथ माधवी को उतारा है। चेहरा नया है, लेकिन पहचान पुरानी। माधवी प्रखर हिंदू नेता के साथ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जानी जाती हैं। गौशाला चलाती हैं। स्लम बस्तियों की मुस्लिम महिलाओं के सुख-दुख में खड़ी रहती हैं। आर्थिक सहायता दिलाती हैं। सनातन की प्रखर वक्ता हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं।

भाजपा ने दी मुझे बुलडोजर की ताकत

भाजपा ने ओवैसी के विरुद्ध सशक्त प्रत्याशी देकर विपक्ष के उन आरोपों को भी आईना दिखाया है, जो एआईएमआईएम को भाजपा की बी टीम बताते हैं। माधवी लता खुद बोलती हैं कि ओवैसी की पार्टी को अब कोई बी टीम नहीं कह सकता है, क्योंकि भाजपा ने मुझे बुलडोजर की ताकत देकर हैदराबाद भेजा है। माधवी के दावे में मुस्लिम महिलाओं का भी दम नजर आता है, क्योंकि तीन तलाक जैसे मुद्दे पर काम करते हुए उन्हें गरीब मुस्लिम महिलाओं का साथ मिला था।

नई पहचान की दहलीज पर

शहर का इतिहास कुतुब शाही और आसफ जाही की विरासतों से समृद्ध है। 1687 में मुगलों ने कब्जा कर लिया, किंतु 1948 में भारतीय संघ में शामिल होने के पहले तक यह शाही राजधानी के रूप में विकसित होता रहा। फिर नई पहचान की दहलीज पर है।

माधवी के समर्थकों को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा की गारंटी के पूरा होने की प्रतीक्षा है। पांच महीने पहले तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने दावा किया था कि राज्य की सत्ता में आने पर 30 मिनट के भीतर हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर कर दिया जाएगा।

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आसान नहीं माधवी की राह

लंबे समय से ओवैसी परिवार के प्रभुत्व का पर्याय बने इस क्षेत्र में परिवर्तन के प्रयासों को मंजिल तक पहुंचाना आसान नहीं। हैदराबाद संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की सात सीटें हैं। इनमें से छह पर ओवैसी की पार्टी का कब्जा है।

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मुस्लिमों की आबादी लगभग 59 प्रतिशत है। हिंदू 35 प्रतिशत और शेष अन्य हैं। 1984 में पहली जीत के बाद से ही ओवैसी के वोट में वृद्धि होती रही है। 2019 में उन्हें 59 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा के भगवंत राव को 2.82 लाख वोटों से मात दी थी। इस बड़े फासले को पाटना आसान नहीं।

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