Lok Sabha Election 2024: क्या भाजपा को मिल गया मुलायम-लालू के सियासी वंशवाद का तोड़? कितना सफल होगा दांव?
Lok Sabha Election 2024 पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा यूपी और बिहार में चुनावी सफलता पाने में सफल रही लेकिन लालू और मुलायम के सियासी वंशवाद की काट भाजपा को अब तक नहीं मिल पाई है। हालांकि अब पार्टी ने मोहन यादव के रूप में ऐसा दांव चला है जिससे उसे भविष्य में सियासी लाभ की उम्मीद है। पढ़ें रिपोर्ट...
धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। 'यह सही है कि संतोष का भाव कुछ समय के लिए प्रगति रोक देता है, लेकिन आगे चलकर बड़े अवसर भी देता है। संगठन में जो लाबिंग करेगा,उसके हाथ कुछ आने वाला नहीं है, इसलिए सिर्फ अपना काम करते जाना है।' यह कहना है डॉ. मोहन यादव का, जो उनके जीवन में प्रमाणित भी हुआ है।
करीब 100 दिन पीछे जाकर आज के मोहन यादव से तुलना करें तो यकीन करना मुश्किल है कि विधायक दल की बैठक में पीछे की पंक्ति में बैठा विधायक, जो पिछली सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री था, वह आज मध्य प्रदेश सहित उत्तर भारत में भाजपा का ऐसा बड़ा चेहरा बनकर उभरा है, जिसने करीब पांच दशक से राजनीति में बड़ा नाम रहे कमल नाथ को भी चुनौती दी है।
छिंदवाड़ा में लगाया जोर
मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 28 भाजपा के पास हैं, जबकि छिंदवाड़ा में कमल नाथ के बेटे नकुल नाथ ने इस गढ़ को सुरक्षित रखा था। मोहन यादव ने इसी गढ़ को गड़बड़ करार देकर घेराबंदी शुरू कर दी है। तरक्की के जिन पैमानों पर कमल नाथ विधानसभा चुनाव में भी छिंदवाड़ा माडल की चर्चा करते थे, उसे मोहन यादव ने बेरोजगारी, गरीबी और पिछड़ेपन के सवालों से घेर दिया है।फिलहाल राजगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के चुनाव लड़ने के बावजूद छिंदवाड़ा को मध्य प्रदेश की सबसे हाट सीट बनाने में यादव सफल दिख रहे हैं। इससे पहले उत्तर प्रदेश पहुंचकर डॉ. मोहन यादव अखिलेश यादव को सपा में ही या कहें यादव बिरादरी में चुनौती दे चुके हैं।
अमित शाह ने दी वोटबैंक को चुनौती
एक दौर था जब उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के सामने भाजपा के लिए अस्तित्व का संकट था, तब 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले अमित शाह ने उत्तर प्रदेश का प्रभारी रहते हुए गैर यादव ओबीसी का नया वर्ग भाजपा के पक्ष में जोड़ा था और उत्तर प्रदेश की 80 में से 71 सीटें भाजपा के खाते में आई थीं।इसकी बड़ी वजह पीएम नरेन्द्र मोदी का वाराणसी से चुनाव लड़ना भी था, लेकिन सोशल इंजीनियरिंग से भाजपा का वोट शेयर 17.5 प्रतिशत से बढ़कर 42.6 प्रतिशत हो गया था, जबकि सपा 22.3 प्रतिशत पर अटक गई थी। अब मोहन यादव के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद बदली हुई परिस्थिति में सपा के सामने यादव वोट बैंक बचा पाने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।