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Lok Sabha Election 2024: आंध्र में वाईएसआर कांग्रेस की आंधी, भाजपा संग फिर चमकेंगे चंद्रबाबू के सितारे! ये है सियासी गणित

Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव 2019 में वाईएसआर कांग्रेस ने आंधी की तरह सब का सफाया कर दिया था लेकिन इस बार टीडीपी-बीजेपी गठबंधन से उसे तगड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है। क्या भाजपा का साथ चंद्रबाबू नायडू के लिए संजीवनी का काम करेगा या फिर वाईएसआर कांग्रेस का दबदबा कायम रहेगा जानिए क्या कहते हैं आंध्र प्रदेश के राजनितिक समीकरण।

By Jagran News NetworkEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Tue, 12 Mar 2024 01:55 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: इस बार का चुनाव चंद्रबाबू नायडू के अस्तित्व से जुड़ा है।
अरविंद शर्मा, विजयवाड़ा। उत्तर की तरह दक्षिण में अनुकूल माहौल बनाने में जुटी भाजपा को तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के रूप में अच्छा एवं अनुभवी साथी के मिलने से एनडीए में जान आ गई है। पवन कल्याण की जन सेना पार्टी (जेएसपी) की नई ऊर्जा भी एनडीए के वोट में वृद्धि कर सकती है।

तीनों मिलकर वाईएसआर कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे सकती हैं, जिससे टीडीपी की खिसकती जमीन को फिर आधार मिल सकता है। 2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन ने प्रदेश की राजनीति को गहरे रूप से प्रभावित किया है। इस दौरान जगन मोहन रेड्डी के उभार ने टीडीपी को कमजोर एवं कांग्रेस का लगभग सफाया कर दिया है।

आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 एवं विधानसभा की 175 सीटें हैं। लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ कराए जाते हैं। पांच वर्षों से जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व में राज्य में वाइएसआर कांग्रेस की सरकार है। विपक्ष की भूमिका में टीडीपी है, जिसका नेतृत्व चंद्रबाबू नायडू करते हैं।

टीडीपी ने छोड़ा था एनडीए का दामन

टीडीपी 2018 के पहले भी एनडीए की घटक होती थी, किंतु आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने के चलते केंद्र पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए छह वर्ष पहले भाजपा से रिश्ता तोड़ लिया था। संयुक्त आंध्र प्रदेश में भाजपा की कहानी शुरू होती है 1998 से। टीडीपी (लक्ष्मी पार्वती गुट) से दोस्ती कर पहली बार संयुक्त आंध्र प्रदेश में चार सीटें जीती थीं। 18 प्रतिशत वोट भी मिले थे।

टीडीपी के सहारे 1999 में भाजपा ने 10 प्रतिशत वोट के साथ सात सीटें जीत ली थी। 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली। 2014 में भाजपा-टीडीपी मिलकर लड़े। दोनों को सीट और वोट का लाभ मिला। भाजपा के तीन सांसद और नौ विधायक जीतकर आए।

वर्तमान आंध्र प्रदेश के हिस्से की 25 लोकसभा सीटों में टीडीपी को 15 और भाजपा को दो सीटों पर जीत मिली थी। 2019 के चुनाव में भाजपा से टीडीपी के अलग होने पर दोनों को क्षति हुई। टीडीपी तीन सीट पर आ गई और भाजपा खाता भी नहीं खोल सकी।

फीकी पड़ती जा रही थी चंद्रबाबू की चमक

आंध्र प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके चंद्र बाबू नायडू का भी एक दौर था। सितंबर 1995 से मई 2004 तक लगातार दो बार राज्य की सत्ता संभाली। फिर अलग तेलंगाना राज्य बनने के बाद जून 2014 से मई 2019 तक सीएम रहे। अब पहले की तरह प्रभावी नहीं रह गए। राज्य विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश में सिर्फ एक चुनाव 2019 में हुआ है।

इसमें जगन मोहन के सामने चंद्र बाबू टिक नहीं पाए। विधानसभा की 175 में सिर्फ 23 सीटें जीतकर टीडीपी घुटने के बल खड़ी है। पिछली बार की तुलना में उसे 79 सीटें कम मिलीं। लोकसभा में भी टीडीपी 15 से घटकर तीन पर आ गई। इस बार का चुनाव चंद्र बाबू के अस्तित्व से जुड़ा है। जीतने पर मुख्यमंत्री बनेंगे और हारने पर भी केंद्र में मंत्री बनने का मुहूर्त निकल सकता है।

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छह दशक तक कांग्रेस का दबदबा

आंध्र प्रदेश में कभी कांग्रेस और टीडीपी का ही दबदबा था। टीडीपी के संस्थापक एनटी रामाराव ने आंध्र प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस को पहली बार 1983 में बाहर किया था। एनटीआर के दामाद चंद्रबाबू ने 1995 में टीडीपी का नेतृत्व संभाला। 2009 तक कांग्रेस-टीडीपी में ही मुकाबला होता रहा। लेकिन वाइएसआर कांग्रेस के गठन के साथ ही कांग्रेस निस्तेज होते चली गई।

आंध्र प्रदेश की राजनीति में छह दशक तक प्रभावी रहने वाली कांग्रेस को 2014 में विधानसभा की मात्र 21 सीटें ही मिल पाईं। वर्तमान में राज्य में कांग्रेस के न तो कोई सांसद है और न ही विधायक। वोट प्रतिशत भी 1.17 प्रतिशत पर सिमट गया। जगन मोहन की छोटी बहन वाइएस शर्मिला ने महीने भर पहले अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर प्रदेश में कांग्रेस को संजीवनी देने में जुटी है।

आसान नहीं होगा जगन को रोकना

जगन मोहन के पिता राजशेखर रेड्डी कांग्रेस के कद्दावर नेता थे। 2004 और 2009 में उन्होंने ही कांग्रेस को आंध्र प्रदेश में सत्ता दिलाई थी। किंतु 2009 में उनके निधन के बाद जगन मोहन की कांग्रेस में उपेक्षा होने लगी। लिहाजा उन्होंने मार्च 2011 में वाइएसआर कांग्रेस नाम से नई पार्टी बना ली।

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लोकसभा चुनाव 2014 में सत्ता तो टीडीपी को मिली, लेकिन जगन मोहन के प्रदर्शन से साफ हो गया कि राजनीति करवट लेने वाली है। पहले चुनाव में ही जगन को 28 प्रतिशत वोटों के साथ विधानसभा की 70 सीटें मिल गईं। लोकसभा की नौ सीटों पर जीत हुई। 2019 के चुनाव में जगन के सारे विरोधी फीके पड़ गए। विधानसभा की 151 सीटों पर वाइएसआर कांग्रेस की जीत हुई। लोकसभा में भी 22 सीटें मिल गई।

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