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Chunavi किस्सा: जब किसानों के चंदे से जलता था पार्टी कार्यालय का चूल्हा, मामूली खर्चे में हो जाता था चुनावी प्रचार

Lok Sabha Election आज के समय में चुनाव बेहद खर्चीले हो गए हैं जहां प्रचार अभियान में लाखों-करोड़ो रूपए खर्च हो जाते हैं। आज कोई आम आदमी चुनाव लड़ने से पहले 100 बार सोचेगा। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। 12 बार चुनाव लड़ने वाले पूर्व मंत्री बता रहे हैं कि कैसे पहले किसानों से चंदा इकट्ठा कर चुनाव लड़ा जाता था। पढ़ें अतीत के आईने से ये रिपोर्ट...

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Tue, 16 Apr 2024 08:32 PM (IST)
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Lok Sabha Election: फंड कम होने पर लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार सहयोग राशि देते थे।
अरविंद कुमार सिंह, जमुई। चुनाव में अब राजनीतिक दलों की निर्भरता भले ही कारपोरेट सेक्टर पर टिक गई हो, लेकिन एक दौर था जब किसान के चंदे से पार्टी कार्यालयों का चूल्हा जलता था। पूर्व मंत्री रामेश्वर पासवान कहते हैं कि वे सिकंदरा विधानसभा क्षेत्र से 12 बार चुनाव लड़े। आठ बार जीत मिली।

पहली बार 1969 में जीत दर्ज कराई थी। 1977, 1990, 1995 और 2000 में हार का सामना करना पड़ा था। किसी भी चुनाव में कार्यकर्ताओं के भोजन पर उनका एक पैसा खर्च नहीं हुआ। उल्टे दाल और चावल बच जाता था। एक वह दौर था। कार्यकर्ता नेता और जनता के बीच की कड़ी होते थे।

फिजूल खर्ची और तामझाम नहीं था

समर्पण और त्याग नेता और कार्यकर्ता की पूंजी होती थी। गाड़ी व प्रचार तंत्र का तामझाम भी ज्यादा नहीं था। इस कारण फिजूल खर्च की गुंजाइश कहां थी। गांव के एक-एक घर से कार्यकर्ताओं का लगाव होता था। फंड कम होने पर सभी के सामने इसे रखा जाता था, लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार सहयोग राशि भी देते थे।

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बदल गया है स्वरूप

अब चुनाव प्रचार का स्वरूप बदल गया है। वह खुद के चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में पूर्व मंत्री कृष्णा शाही तथा पूर्व सांसद राजो सिंह के चुनाव प्रचार को याद करते हुए कहते हैं कि चुनाव प्रचार में कभी खाने के लिए सोचना नहीं पड़ता था। सिर्फ भोजन ही नहीं, उसके साथ भाव भी मिलता था।

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