Lok Sabha Election 2024: 'जा पर कृपा राम की होई', जब सियासी मैदान में उतरे छोटे पर्दे के सीता, हनुमान और कृष्ण तो जनता ने बिठाया सिर आंखों पर
Lok Sabha Election 2024 आस्था और धर्म का बारीक सा अंतर राजनेता भले ही न समझते हों मगर जनता भली भांति जानती है। इसीलिए ऐसी ह्रदयस्पर्शी भूमिकाएं निभाने वाले कलाकारों को आम चुनाव में अक्सर विजयश्री का हार पहनाती रही है फिर चाहे वह सीता का किरदार निभाने वाली दीपिका चिखिलिया हों या हनुमान बनने वाले दारा सिंह। पढ़ें अनंत विजय की ये खास रिपोर्ट।
अनंत विजय, नई दिल्ली। चुनाव प्रचार के दौरान मेरठ से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी अरुण गोविल की एक तस्वीर आई थी जिसमें वो श्रीराम की तस्वीर हाथ में लिए नजर आ रहे थे। कुछ लोगों ने उनकी इस तस्वीर पर आपत्ति जताई और उसको चुनाव प्रचार में धर्म का उपयोग बताना आरंभ किया था।
ऐसा करने वाले ये भूल गए कि उत्तर प्रदेश के एक उपचुनाव में अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया को कांग्रेस ने राम और सीता की वेशभूषा में चुनाव प्रचार में उतारा था। उससे कुछ ही दिनों पहले रामानंद सागर निर्मित धारावाहिक ‘रामायण’ में इन दोनों ने राम और सीता की भूमिका निभाई थी।
धर्म नहीं आस्था
दरअसल राम और सीता या रामायण के पात्र धर्म नहीं हैं, वो आस्था है। 1943 में भी जब विजय भट्ट निर्देशित फिल्म ‘रामराज्य’ आई थी तो लोगों ने उसमें श्रीराम और सीता की भूमिका निभाने वाले प्रेम अदीब और शोभना समर्थ को बहुत मान दिया था। वो जिधर निकल जाते थे, उधर उनको देखने के लिए और सम्मान देने के लिए आस्थावान भारतीयों की भीड़ उमड़ती थी। यह प्रभु श्रीराम और रामकथा में भारतीयों की आस्था ही है जिसने इस कथा के पात्रों को चुनाव में विजयश्री का हार पहनाकर भारतीय संसद में भेजा।आस्था की विजय
रामानंद सागर के धारावाहिक ‘रामायण’ में सीता की भूमिका निभाने वाली दीपिका चिखलिया जब 1987-88 में सड़कों पर आती थीं, तो लोग उनको सीता ही मानकर सम्मान प्रकट करते थे। आस्थावान भारतीयों की भीड़ उनको घेर लेती थी। सीता की भूमिका में उनका जो गेटअप था या उनका जो अभिनय या संवाद अदायगी थी या जिन प्रसंगों में वो टीवी स्क्रीन पर आती थीं वो सभी दर्शकों के मन पर एक अमिट छाप छोड़ते थे।
वो रामकथा और माता सीता के प्रति आस्था ही थी कि जब 1991 में दीपिका चिखलिया बडोदरा से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार बनीं तो जनता ने उनके सिर पर जीत का सेहरा बांधकर लोकसभा भेजा। उस समय बडोदरा कांग्रेस पार्टी का गढ़ हुआ करता था। दीपिका ने बडोदरा राजघराने के रंजीत सिंह प्रताप सिंह गायकवाड़ को लोकसभा के चुनाव में पराजित किया था। यह रामकथा और माता सीता के प्रति आस्था की जीत थी। राजनीति में आई दीपिका ने दिग्गज कांग्रेसी उम्मीदवार को न केवल परास्त किया बल्कि करीब 50 प्रतिशत वोट भी हासिल किए।
'रावण' को भी मिला अपार जनसमर्थन
आस्था से जीत का दूसरा उदाहरण धारावाहिक रामायण में रावण का किरदार निभाने वाले अरविंद त्रिवेदी हैं, जिनको जनता ने बहुत पसंद किया था। 1991 के चुनाव में ही अरविंद त्रिवेदी ने गुजरात के साबरकांठा से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। तब उनके खिलाफ महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी जनता दल के उम्मीदवार थे और जनता दल से टूटकर अलग हुए जनता दल (गुजरात) के उम्मीदवार मगनभाई पटेल थे।
तीन वर्ष पहले ही धारावाहिक ‘रामायण’ ने लोकप्रियता का नया कीर्तिमान स्थापित किया था। श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन भी चल रहा था। लंकेश की भूमिका निभाने वाले अरविंद त्रिवेदी चुनावी मंच से गरजते थे कि राम की अवहेलना करने का परिणाम क्या होता है, ये मुझसे बेहतर कौन जानता है। तो जनता पर उसका पर्याप्त प्रभाव पड़ता था। अरविंद त्रिवेदी ने राजमोहन गांधी को पराजित कर दिया। राजमोहन गांधी तीसरे नंबर पर रहे थे।
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