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MP Lok Sabha Election Result 2024: एमपी में क्लीन स्वीप, बीजेपी की कूटनीति के सामने कमजोर पड़ती गई कांग्रेस, जानिए कैसे बदले समीकरण?

Madhya Pradesh Lok Sabha Election Result 2024 चुनाव परिणामों में इस बार बीजेपी बहुमत के जादुई आंकड़े 272 से दूर रही। अब NDA के साथी दलों के साथ सरकार बनाने की कवायदें चल रही हैं। वहीं कांग्रेस ने पिछले चुनाव से लगभग दोगुनी सीटें पाईं। इन सबके बीच मध्यप्रदेश ऐसा बड़ा राज्य रहा जहां बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया। जानिए एमपी क्यों बीजेपी के लिए अभेद्य किला है।

By Jagran News Edited By: Deepak Vyas Updated: Wed, 05 Jun 2024 08:39 PM (IST)
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Madhya Pradesh Lok Sabha Election Result 2024: बीजेपी की कूटनीति के सामने कमजोर पड़ती गई कांग्रेस

चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। MP Lok Sabha Chunav Result 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में मध्यप्रदेश कांग्रेस की करारी हार हुई। प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों पर बीजेपी का परचम लहराया और कांग्रेस के हाथ एक भी सीट नहीं लग पाई। ऐसे में सवाल यही उठता है कि आखिर मध्यप्रदेश को बीजेपी का अभेद्य किला क्यों कहा जाता है। यहां क्यों कांग्रेस या दूसरी पार्टियां नहीं पनप पाईं। इसके कई फैक्टर हैं। कई राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि यहां बीजेपी जितनी ताकतवर नहीं है, उसे कहीं ज्यादा कांग्रेस कमजोर है। जानिए एमपी में बीजेपी की 'ताकत' के क्या मायने हैं?

लोकसभा चुनाव में कमजोर कांग्रेस की बुरी हालत की शुरुआत कुछ माह पहले हुए मप्र विधानसभा चुनाव से ही होने लगी थी। बीजेपी ने कांग्रेस को इतना कमजोर जोर कर दिया कि वह लड़ने लायक स्थिति में ही नहीं रही। जब चुनाव में सीनियर लीडरशिप की जरूरत थी, तब मालवा निमाड़ से लेकर बुंदेलखंड तक कांग्रेस के पहली, दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेता बीजेपी में मिल गए।

कांग्रेसी नेता हों या कार्यकर्ता..बीजेपी में जाने की लगी थी होड़

चुनाव से पहले बड़ी संख्या में कांग्रेसी नेता और हजारों की संख्या में कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल होते गए। कांग्रेस अपनी आंखों से अपने नेताओं को बीजेपी में जाते हुए मूकदर्शक बने देखती रही। बड़ी संख्या में शीर्ष नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक बीजेपी में शामिल होते गए। इनमें चौंकाने वाला नाम वरिष्ठ कांग्रेसी सुरेश पचोरी का रहा। इसके अलावा पूर्व कांग्रेस विधायक निलेश अवस्थी, कांग्रेस के पूर्व विधायक अजय यादव, भोपाल से बसपा के पूर्व सांसद रामलखन सिंह जैसे नेता बीजेपी में शामिल हो गए। कांग्रेस राज्यभर में जिला, विकासखंड और बूथ स्तर के कांग्रेसियों का 'भगवाकरण' होते देखती रही।

जब खुद जीतू पटवारी को करना पड़ा खंडन

कांग्रेस नेताओं का बीजेपी में पलायन इस कदर हो रहा था कि जब यह खबर चल गई कि खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी भी बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, तब उन्हें खुद सफाई देना पड़ा कि वे ऐसा कुछ करने नहीं जा रहे हैं। कई कांग्रेस प्रत्याशी तक बीजेपी में शामिल हो गए। इनमें इन्दौर से अक्षय कांति बम का नाम भी शामिल है, जिन्होंने पर्चा तो कांग्रेस प्रत्याशी के बतौर भरा, लेकिन ऐन वक्त पर पर्चा वापस ले लिया और वरिष्ठ बीजेपी नेता कैला​श विजयवर्गीय की उपस्थि​ति में बीजेपी में शामिल हो गए। सुरेश पचोरी के खास रहे संजय शुक्ला भी बीजेपी में शामिल हो गए। यह फेहरिस्त बहुत लंबी है।

अपना 'घर' बचाने में फंसे रहे दिग्विजय सिंह और कमलनाथ

इस चुनाव में एमपी के पूर्व सीएम और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ऐलान कर दिया था कि वे 76 साल के हो गए हैं और यह उनका अंतिम चुनाव है। लेकिन इस बार जीत की राह आसान नहीं थी, इसलिए एमपी के दूसरे इलाकों में जाकर प्रचार करने की बजाय 'राजगढ़' सीट पर अपनी जीत के लिए प्रचार में ही ज्यादातर समय फंसे रहे। वे अपने प्रतिद्वंद्वी और गुना से चुनाव लड़ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को काउंटर करने भी गुना में सक्रियता नहीं दिखा पाए।

कमलनाथ का साथ छोड़ गए 'अपने'

उधर कमलनाथ भी अपने गढ़ छिंदवाड़ा से बेटे नकुलनाथ को जिताने के लिए भरसक प्रयास करते नजर आए। चूंकि कमलनाथ के खास रहे दीपक सक्सेना उनका साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। ऐसे में उनके लिए अपना गढ़ बचाना मुश्किल हो गया। वहीं चुनाव से पहले यह खबर भी चर्चा में रही कि कमलनाथ और उनके बेटे बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। लेकिन ऐसा न हो सका। इस वजह से भी कांग्रेस के परंपरागत वोटर्स में उनकी 'इमेज' पर असर पड़ा। लिहाजा यह सीट भी बीजेपी के खाते में चली गई और नकुलनाथ हार गए।

दिग्विजय और कमलनाथ के बीच बनी दूरियां

दिग्विजय सिंह और कमलनाथ दोनों ही मध्यप्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के सिरमौर रहे हैं। दोनों को ही सरकार चलाने का अच्छा ज्ञान है। ऐसे में दोनों नेताओं के बीच दूरियां भी कांग्रेस के लिए घातक साबित हुई। कार्यकर्ता दो खेमों में बंट गए। यहां ​तक कि दोनों नेताओं के समर्थकों के बीच मनमुटाव की खबरें भी आईं। बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं का एकजुट होना काफी मायने रखता है। लेकिन कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं था, लिहाजा कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।

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उम्मीदवारों के चयन में देरी, चुनाव से कन्नी काटने लगे नेता

कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए मजबूत उम्मीदवार ही नहीं मिल पाए। ज्यादातर पुराने स्थानीय नेता बीजेपी में शामिल हो गए। जो बचे थे वे चुनाव लड़ने से बचते नजर आए। वहीं कई जगह उम्मीदवारों के चयन में कांग्रेस को जी जान लगाना पड़ा। लेकिन सही प्रत्याशियों का चयन नहीं हो पाया। कांग्रेस ने उम्मीदवार फाइनल किए, तब तक काफी देर हो चुकी थी। बीजेपी ने तो पहले से ही सभी तैयारियां कर ली थी।

जीतू पटवारी के अध्यक्ष बनने से असहज हो गए सीनियर कांग्रेसी

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद आलाकमान ने इन्दौर के जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया। जीतू पटवारी राहुल गांधी की 'गुड बुक' में रहे हैं। लेकिन उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने पर कई कांग्रेसी असहज महसूस करने लगे। इसका प्रभाव कांग्रेस के कैंपेन पर भी पड़ा। रही सही कसर, जीतू पटवारी के विवादित बयानों ने पूरी कर दी। जीतू पटवारी ने इमरती देवी के बारे में विवादित बयान दिया, हालांकि बाद में माफी मांगी। लेकिन उनकी गलत बयानी का प्रभाव भी नजर आया।

कांग्रेस की लचरता पर भारी पड़ी बीजेपी की कूटनीति

भारतीय जनता पार्टी की कामयाबी यह रही कि उन्होंने जहां बड़ी संख्या में कांग्रसियों को बीजेपी में शामिल कराया, वहीं कमलनाथ और दिग्गी राजा को अपने अपने इलाकों में घेर लिया। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ राजेश बादल कहते हैं कि '2019 तक कांग्रेस और बीजेपी का वोट बैंक करीब करीब बराबर यानी 40 फीसदी के आसपास था।' लेकिन इसी बीच यह सर्वविदित है कि बीजेपी ने कांग्रेस को अपनी कुशल रणनीति से कमजोर कर दिया। इसका खामियाजा भी कांग्रेस को भुगतना पड़ा।

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