Chunavi किस्सा: जब लोकसभा सीट पर तीन साल तक नहीं था कोई भी सांसद, जानिए क्या थी वजह
Lok Sabha Election लोकतंत्र में कोई भी क्षेत्र बिना जन-प्रतिनिधि के नहीं रहत है। सीट खाली होने पर चुनाव आयोग जल्द ही उस पर चुनाव कराता है। लेकिन देश में एक मौका ऐसा भी आया है जब एक लोकसभा सीट तीन साल तक सांसद विहीन रही थी। जानिए क्या थी इसकी वजह और क्यों नहीं कराए गए थे चुनाव ।
मनोज मिश्र, बेतिया। बिहार की बेतिया लोकसभा सीट जोकि अब पश्चिम चंपारण के नाम से जानी जाती है, तीन वर्षों तक सांसद विहीन रही थी। यह कालखंड 1974 से 1977 के बीच का है। दरअसल 1971 के आम चुनाव में बेतिया सीट से कांग्रेस के कमलनाथ तिवारी सांसद चुने गए थे। 17 जनवरी, 1974 को 67 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया था।
आपातकाल की हो गई घोषणा
इस बीच देश के हालात तेजी से बदले और 1975 में आपातकाल की घोषणा हो गई। ऐसे में यहां चुनाव लंबित रह गया। इसके बाद 1977 में चुनाव हुआ, जिसमें भारतीय लोक दल से फजलुर्रहमान विजयी घोषित हुए थे। बता दें कि कमलनाथ तिवारी 1962 और 1967 में भी यहां से सांसद रह चुके थे और 1971 में वह तीसरी बार इस सीट से चुने गए थे।
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इंदिरा गांधी को दी थी चुनौती
वरिष्ठ अधिवक्ता रैफुल आजम बताते हैं कि कमलनाथ ने कई मौके पर इंदिरा गांधी का विरोध किया था। उनके सहयोगी सांसदों को लगता था कि इससे पार्टी में उन्हें नुकसान होगा, पर उनका कद बड़ा था।
अधिवक्ता जगदंबा शुक्ला बताते हैं कि कमलनाथ ने लैंड सीलिंग एक्ट का संसद में विरोध किया था। संसद में विरोध भाषण भी दिया था। इंदिरा गांधी के खुलेआम विरोध के बाद उस दौर के अधिसंख्य कांग्रेसियों को लगने लगा था कि कमलनाथ का टिकट कट जाएगा, लेकिन 1971 में बेतिया सीट से पार्टी ने उन्हें ही उम्मीदवार बनाया था।