Loksabha Exit Polls 2019: जानें- कितने अलग होते हैं Exit और ओपिनियन पोल? ये है पूरा गणित
Loksabha Election 2019 Exit Polls लोकसभा चुनाव के सभी चरणों की वोटिंग पूरी होने के साथ ही रविवार शाम Exit Poll आने शुरू हो जाएंगे। जानते हैं आखिर क्या होते हैं Exit Poll...
By Mohit PareekEdited By: Updated: Sun, 19 May 2019 11:53 AM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। Lok Sabha Exit Polls 2019: लोकसभा चुनाव 2019 के अंतिम चरण की वोटिंग जारी है और वोटिंग खत्म होने के साथ ही एग्जिट पोल आने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। वैसे तो कहा जाता है कि एग्जिट पोल चुनाव की तस्वीर साफ करते हैं और बताते हैं कि इस बार विजय रथ पर कौन सवार हो सकता है? हालांकि, इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि कई बार एग्जिट पोल गलत भी साबित हो जाते हैं। एग्जिट पोल आना शुरू हो, उससे पहले आपका ये जानना जरूरी है कि आखिर एग्जिट पोल क्या होते हैं, कैसे यह ओपनियन और पोस्ट पोल से अलग होते हैं और इनका क्या पूरा गणित है...
क्या होते हैं एग्जिट पोल?
सर्वे से होकर ही एग्जिट पोल के आंकड़े सामने आते हैं। एग्जिट पोल में एक सर्वे के माध्यम से यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि आखिर चुनाव परिणाम किसके पक्ष में आ रहे हैं। एग्जिट पोल हमेशा वोटिंग पूरी होने के बाद ही दिखाए जाते हैं। इसका मतलब यह है कि सभी चरण के चुनाव होने के बाद ही इसके आंकड़े दिखाए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि हर चरण के बाद एग्जिट पोल दिखा दिया जाए। वोटिंग के दिन जब मतदाता वोट डालकर निकल रहा होता है, तब उससे पूछा जाता है कि उन्होंने किसे वोट दिया। इस आधार पर किए गए सर्वेक्षण से जो व्यापक नतीजे निकाले जाते हैं, इसे ही एग्जिट पोल कहते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, 15 फरवरी 1967 को पहली बार नीदरलैंड में इसका इस्तेमाल किया था। क्या होते हैं पोस्ट पोल?
Exit Polls में सर्वे एजेंसी मतदान के तुरंत बाद मतदाता से राय जानकर मोटा-मोटा हिसाब लगा लेती है। जबकि पोस्ट पोल हमेशा मतदान के अगले दिन या फिर एक-दो दिन बाद होते हैं। इसके माध्यम से वोटर की राय जानने की कोशिश की जाती है। कहा जाता है कि पोस्ट पोल के परिणाम ज्यादा सटीक होते हैं।
सर्वे से होकर ही एग्जिट पोल के आंकड़े सामने आते हैं। एग्जिट पोल में एक सर्वे के माध्यम से यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि आखिर चुनाव परिणाम किसके पक्ष में आ रहे हैं। एग्जिट पोल हमेशा वोटिंग पूरी होने के बाद ही दिखाए जाते हैं। इसका मतलब यह है कि सभी चरण के चुनाव होने के बाद ही इसके आंकड़े दिखाए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि हर चरण के बाद एग्जिट पोल दिखा दिया जाए। वोटिंग के दिन जब मतदाता वोट डालकर निकल रहा होता है, तब उससे पूछा जाता है कि उन्होंने किसे वोट दिया। इस आधार पर किए गए सर्वेक्षण से जो व्यापक नतीजे निकाले जाते हैं, इसे ही एग्जिट पोल कहते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, 15 फरवरी 1967 को पहली बार नीदरलैंड में इसका इस्तेमाल किया था। क्या होते हैं पोस्ट पोल?
Exit Polls में सर्वे एजेंसी मतदान के तुरंत बाद मतदाता से राय जानकर मोटा-मोटा हिसाब लगा लेती है। जबकि पोस्ट पोल हमेशा मतदान के अगले दिन या फिर एक-दो दिन बाद होते हैं। इसके माध्यम से वोटर की राय जानने की कोशिश की जाती है। कहा जाता है कि पोस्ट पोल के परिणाम ज्यादा सटीक होते हैं।
क्या होते हैं ओपिनियन पोल?
वैसे तो सभी सर्वे/पोल ओपिनियन पोल ही होते हैं और एग्जिट-पोस्ट पोल इसी का हिस्सा होते हैं। हालांकि, आम बोलचाल की भाषा में प्री पोल/सर्वे को ओपनियन पोल कहा जाता है। इसमें सर्वे चुनाव शुरू होने से पहले करवाया जाता है और उसके माध्यम से वोटर्स से उनकी राय जानी जाती है। वैसे इन्हें प्री पोल कहा जाता है। इसके जरिए पत्रकार विभिन्न मसलों, मुद्दों और चुनावों में जनता की नब्ज टटोलने के लिए किया करते थे। कैसे सामने आते हैं आंकड़े?
किसी भी पोल में आंकड़े सर्वे के माध्यम से सामने आते हैं। इसके लिए सैंपलिंग की जाती है। सर्वे में आंकड़े हासिल करने के लिए फील्ड वर्क किया जाता है। इसकी सैंपलिंग के लिए चुनावी सर्वे करने वाली एजेंसी के लोग मतदाताओं से राय लेते हैं। कई बार यह डाटा बातचीत तो कई बार कोई फॉर्म भरवाकर हासिल किए जाते हैं। यह फॉर्म सीधे भी हार्ड कॉपी में भी भरवाए जा सकते हैं तो अब इंटरनेट का अधिक इस्तेमाल किया जाता है। यह डाटा उम्र, आयु वर्ग, आय वर्ग, जाति, क्षेत्र आदि के आधार पर इकट्ठे किए जाते हैं। इसके लिए क्षेत्र के आधार पर लोगों की संख्या तय किए जाते हैं और उनसे राय ली जाती है।
वैसे तो सभी सर्वे/पोल ओपिनियन पोल ही होते हैं और एग्जिट-पोस्ट पोल इसी का हिस्सा होते हैं। हालांकि, आम बोलचाल की भाषा में प्री पोल/सर्वे को ओपनियन पोल कहा जाता है। इसमें सर्वे चुनाव शुरू होने से पहले करवाया जाता है और उसके माध्यम से वोटर्स से उनकी राय जानी जाती है। वैसे इन्हें प्री पोल कहा जाता है। इसके जरिए पत्रकार विभिन्न मसलों, मुद्दों और चुनावों में जनता की नब्ज टटोलने के लिए किया करते थे। कैसे सामने आते हैं आंकड़े?
किसी भी पोल में आंकड़े सर्वे के माध्यम से सामने आते हैं। इसके लिए सैंपलिंग की जाती है। सर्वे में आंकड़े हासिल करने के लिए फील्ड वर्क किया जाता है। इसकी सैंपलिंग के लिए चुनावी सर्वे करने वाली एजेंसी के लोग मतदाताओं से राय लेते हैं। कई बार यह डाटा बातचीत तो कई बार कोई फॉर्म भरवाकर हासिल किए जाते हैं। यह फॉर्म सीधे भी हार्ड कॉपी में भी भरवाए जा सकते हैं तो अब इंटरनेट का अधिक इस्तेमाल किया जाता है। यह डाटा उम्र, आयु वर्ग, आय वर्ग, जाति, क्षेत्र आदि के आधार पर इकट्ठे किए जाते हैं। इसके लिए क्षेत्र के आधार पर लोगों की संख्या तय किए जाते हैं और उनसे राय ली जाती है।
पहले लग चुका है बैन
साल 1998 में चुनाव आयोग ने ओपिनियन और एग्जिट पोल पर बैन लगा दिया था। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को निरस्त कर दिया। उसके बाद 2009 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर एग्जिट पोल को बैन करने की मांग उठी। उसके बाद कानून संशोधन किया गया और संशोधित कानून के अनुसार चुनावी प्रक्रिया के दौरान जब तक अंतिम वोट नहीं पड़ जाता, एग्जिट पोल नहीं दिखाए जा सकते हैं।कितने होते हैं सच?
एग्जिट पोल के रिजल्ट और वोटिंग के असली रिजल्ट कभी-कभी समानांतर चलते हैं तो कभी बिल्कुल अलग हो जाते हैं। तमिलनाडु चुनाव 2015, बिहार विधानसभा 2015 में गलत साबित हुए थे। वहीं साल 2004 लोकसभा चुनाव में सभी एग्जिट पोल फेल हुए और कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने सरकार बनाई। उसके बाद साल 2014 में सही साबित हुए, क्योंकि लोकसभा चुनाव में मोदी लहर का अनुमान एग्जिट पोल्स में दिखा था। लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप
साल 1998 में चुनाव आयोग ने ओपिनियन और एग्जिट पोल पर बैन लगा दिया था। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को निरस्त कर दिया। उसके बाद 2009 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर एग्जिट पोल को बैन करने की मांग उठी। उसके बाद कानून संशोधन किया गया और संशोधित कानून के अनुसार चुनावी प्रक्रिया के दौरान जब तक अंतिम वोट नहीं पड़ जाता, एग्जिट पोल नहीं दिखाए जा सकते हैं।कितने होते हैं सच?
एग्जिट पोल के रिजल्ट और वोटिंग के असली रिजल्ट कभी-कभी समानांतर चलते हैं तो कभी बिल्कुल अलग हो जाते हैं। तमिलनाडु चुनाव 2015, बिहार विधानसभा 2015 में गलत साबित हुए थे। वहीं साल 2004 लोकसभा चुनाव में सभी एग्जिट पोल फेल हुए और कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने सरकार बनाई। उसके बाद साल 2014 में सही साबित हुए, क्योंकि लोकसभा चुनाव में मोदी लहर का अनुमान एग्जिट पोल्स में दिखा था। लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप