उत्तराखंड से महासमर का आगाज, 11 अप्रैल को होगा मतदान
आम चुनाव की रणभेरी बज गई। उत्तराखंड में पांचों सीटों पर पहले ही चरण में 11 अप्रैल को मतदान होगा।
By Edited By: Updated: Mon, 11 Mar 2019 08:08 PM (IST)
देहरादून, विकास धूलिया। निर्वाचन आयोग के कार्यक्रम घोषित करते ही आम चुनाव की रणभेरी बज गई। उत्तराखंड में पांचों सीटों पर पहले ही चरण में 11 अप्रैल को मतदान होगा। यानी, उत्तराखंड में व्यापक जनाधार और मजबूत नेटवर्क वाली दोनों राष्ट्रीय पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस पर अब यह अहम जिम्मेदारी आ गई है कि वह महासमर की शुरुआत पूरे देश में अपने पक्ष में संदेश देकर करें।
उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां ऐसी हैं, जिनका राज्यभर में व्यापक प्रभाव है। राज्य गठन के बाद से अब तक हुए तीन लोकसभा चुनावों में अमूमन इन्हीं दोनों पार्टियों के मध्य मुख्य मुकाबला होता आया है। केवल वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी एक लोकसभा सीट हरिद्वार जीतने में सफल रही, अन्यथा पांचों सीटें भाजपा और कांग्रेस में ही बंटती रही हैं। इस चुनाव में भाजपा को तीन, कांग्रेस व सपा को एक-एक सीट पर जीत मिली। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में पांचों सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की पांचों सीटों पर परचम फहराया। हालांकि तब इसे मोदी मैजिक का असर कहा गया लेकिन तीन वर्ष बाद वर्ष 2017 की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने सत्तारूढ़ कांग्रेस को चारों खाने चित कर दिया। 70 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा तीन-चौथाई से ज्यादा बहुमत के साथ 57 सीटों पर काबिज हुई, जबकि उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को महज 11 सीटों पर ही सिमटना पड़ा। यानी, पिछले पांच सालों के दौरान भाजपा उत्तराखंड में अजेय स्थिति में बनी हुई है।
पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में अंतिम चरण में मतदान हुआ था लेकिन इस बार पहले ही चरण में देवभूमि के मतदाताओं को देश की नई सरकार चुनने का अवसर मिल रहा है। देखा जाए तो सियासी पार्टियों के लिए यह मौका पूरे देश में संदेश देने का बन गया है। अगर आमचुनाव की शुरुआत में ही उत्तराखंड में भाजपा अपने पिछले पांच सालों के प्रदर्शन को दोहराने का संदेश देने में सफल रहती है तो इसका सीधा असर पार्टी के मनोबल पर पड़ेगा। यही भाजपा के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती भी है। ठीक इसी तरह, कांग्रेस इस अवसर का लाभ अपनी पिछली दो पराजयों का बदला लेने के रूप में उठाना चाहेगी। एक तरह से देखा जाए तो कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं, मगर पाने के लिए बहुत कुछ है। इसलिए कांग्रेस अपेक्षाकृत कम दबाव के साथ महासमर में उतरेगी।