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#LokSabha Elections 2019 : सोशल मीडिया पर शुरू हुआ वार-पलटवार

,LokSabha Elections 2019 सोशल मीडिया पर चुनावी प्रचार के साथ ही वार-पलटवार शुरू हो गया है। वाट्सएप ग्रुप फेसबुक व ट्वीटर चुनावी जंग में प्रचार के हथियार बने हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 08 Apr 2019 09:57 AM (IST)
#LokSabha Elections 2019 : सोशल मीडिया पर शुरू हुआ वार-पलटवार
देवरिया, पवन कुमार मिश्र। लोकसभा चुनाव का शोर इन दिनों फिजा में है। राजनीतिक दल प्रत्याशियों के नाम घोषित करने में लगे हैं। इस बीच सोशल मीडिया पर चुनावी प्रचार के साथ ही वार-पलटवार शुरू हो गया है। वाट्सएप ग्रुप, फेसबुक व ट्वीटर चुनावी जंग में प्रचार के हथियार बने हैं।

देवरिया व सलेमपुर लोकसभा के लिए सातवें चरण में 19 मई को मतदान होना है। देवरिया संसदीय सीट से भाजपा ने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। टिकट को लेकर पार्टी के दावेदारों के समर्थक टिकट दिए जाने की मांग कर रहे हैं। साथ ही पार्टी का प्रसार भी कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी नियाज अहमद व बसपा के लोकसभा प्रभारी विनोद जायसवाल की तरफ से चुनाव प्रचार की गतिविधियों को तस्वीरों के साथ फेसबुक पर साझा किया गया है। हलांकि समर्थकों के बीच वार-पलटवार जारी है। फैंस के नाम से फेसबुक अकाउंट बना है। यही हाल सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र के उम्मीदवारों व उनके समर्थकों के बीच देखने को मिल रहा है। भाजपा प्रत्याशी सांसद रङ्क्षवद्र कुशवाहा, बसपा के प्रदेश अध्यक्ष व सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी आरएस कुशवाहा सोशल मीडिया में हैं। सपा नेता भी गठबंधन के प्रत्याशी के लिए प्रचार में लगे हैं। चुनावी दंगल में समर्थकों के बीच वार पलटवार शुरू है।

चुनावी ज्ञान : दल-बदल कानून

भारतीय संविधान में सन् 1985 में 52वें संविधान संशोधन के  माध्यम से अवसरवादी राजनीति को नियंत्रित करने के लिए दल-बदल के आधार पर सदस्यों की अर्हता समाप्त करने का प्रावधान किया गया है। इस संशोधन के माध्यम से संविधान के चार अनुच्छेदों (101,102, 190 और 191) को बदल दिया गया और दसवीं अनुसूची जोड़ी गई। इस सूची के अनुसार सांसद/ विधायक की सदस्यता समाप्त हो जाएगी, अगर...

- कोई सदस्य स्वेच्छा से अपने राजनैतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है या अपनी पार्टी व्हिप का उल्लंघन कर सदन में मतदान करता है अथवा मतदान में भाग नहीं लेता है और वह अपनी पार्टी से 15 दिनों के भीतर क्षमादान नहीं पाया हो।

- कोई निर्दलीय सदस्य किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण कर लेता है।

- कोई मनोनीत सदस्य नाम निर्देशित होने के छह महीने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।

इस कानून के कुछ अपवाद भी हैं

- सदन का अध्यक्ष बनने वाले सदस्य को इस कानून से छूट प्राप्त है।

- यदि किसी दल के दो तिहाई सदस्य दूसरे दल में विलय के पक्ष में हों तो इसे दल-बदल के तहत अवैध नहीं माना गया है। हालांकि वह कोई नया दल नहीं बना सकते हैं।

- किसी सदस्य को पार्टी से निष्कासित किए जाने पर यह नियम लागू नहीं होगा।