लोकसभा चुनाव 2019: उत्तराखंड में एकबार फिर कमल और हाथ में दो-दो हाथ
अविभाजित उत्तर प्रदेश की बात हो या फिर वर्ष 2000 में उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में वजूद में आने के बाद की। यहां वर्चस्व भाजपा या कांग्रेस का ही रहा है।
By Raksha PanthariEdited By: Updated: Fri, 15 Mar 2019 10:04 AM (IST)
देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड में चुनाव लोकसभा के हों या विधानसभा, मतदाताओं ने हमेशा राष्ट्रीय राजनैतिक दलों का ही साथ दिया। अविभाजित उत्तर प्रदेश की बात हो या फिर वर्ष 2000 में उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में वजूद में आने के बाद, वर्चस्व भाजपा या कांग्रेस का ही रहा। लोकसभा चुनाव की ही बात की जाए तो राज्य गठन के बाद हुए तीन आम चुनाव के नतीजे इस बात की तस्दीक भी करते हैं। यानी, मैदान में भले ही सपा व बसपा जैसी बड़ी पार्टियां और उत्तराखंड क्रांति दल जैसा क्षेत्रीय दल भी उतरे लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही हुआ। इस बार भी जो चुनावी परिदृश्य है, उसमें भी यही दोनों पार्टियां सभी सीटों पर आमने-सामने खड़ी दो-दो हाथ करती नजर आ रही हैं।
हरिद्वार सीट एकमात्र अपवादउत्तराखंड निर्माण के बाद वर्ष 2004 में पहले लोकसभा चुनाव हुए। इसमें तीन सीटें भाजपा, एक कांग्रेस और एक बसपा की झोली में गई। हरिद्वार सीट पर मुख्य मुकाबला सपा और बसपा के बीच हुआ, जिसमें सपा ने बसपा को शिकस्त दी। भाजपा तब यहां तीसरे स्थान पर रही। अलग उत्तराखंड में यह एकमात्र अपवाद है जब कोई लोकसभा सीट भाजपा या कांग्रेस के अलावा किसी अन्य दल ने जीती। यहां तक कि सपा के लिए तो यह उत्तराखंड बनने के बाद लोकसभा व विधानसभा चुनावों में अब तक की एकमात्र जीत है। हालांकि, बसपा भी कभी कोई लोकसभा सीट हासिल करने में सफल नहीं हुई, लेकिन सूबे की सियासत में वह तीसरी बड़ी ताकत के रूप में जगह बनाने में कामयाब रही।
जब हुआ भाजपा का सूपड़ा साफवर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड के लिए नतीजे खासे चौंकाने वाले रहे। दरअसल, उस वक्त प्रदेश में सरकार भाजपा की थी और इसकी कमान संभाल रहे थे पूर्व केंद्रीय मंत्री और अपनी छवि के लिए अलग पहचान रखने वाले मेजर जरनल (सेनि) भुवन चंद्र खंडूड़ी। भाजपा को पूरी उम्मीद थी कि खंडूड़ी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन जोरदार रहेगा, लेकिन हुआ इसके ठीक उलट। भाजपा पांचों सीटों पर पराजित हुई। यहां तक कि जो पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट खंडूड़ी की परंपरागत सीट रही, उस पर भी भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। कांग्रेस ने पांचों सीटें जीत भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया। इस शिकस्त का असर यह हुआ कि भाजपा में अंतर्कलह काफी गहरा गया और गुटबाजी के चरम पर पहुंचने के बाद खंडूड़ी को कुछ ही समय बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी।
नमो लहर में भाजपा का पलटवारवर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक पूरे देश पर तारी था। उत्तराखंड में तो वैसे भी भाजपा का खासा जनाधार रहा है, लिहाजा नमो लहर ने यहां भी कांग्रेस को उखाड़ फेंका। इस चुनाव में भाजपा पांचों सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही। एक तरह से भाजपा ने वर्ष 2009 में कांग्रेस के हाथों हुई करारी हार का बदला ले लिया। महत्वपूर्ण बात यह रही कि भाजपा ने इस चुनाव में अपने तीन दिग्गजों, जो पूर्व में मुख्यमंत्री भी रहे, को मैदान में उतारा। खंडूड़ी, कोश्यारी, निशंक की यह त्रिमूर्ति खासे बड़े अंतर से अपनी-अपनी सीटें जीतने में सफल रही। टिहरी सीट पर राज परिवार का कब्जा बरकरार रहा और यहां से महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह सांसद बनी। एकमात्र सुरक्षित सीट, अल्मोड़ा से अजय टम्टा जीतकर बाद में मोदी सरकार में राज्य मंत्री बने।
सपा-बसपा का गठबंधन का दांवइस बार भी सियासी परिदृश्य पिछले चुनावों की ही तरह नजर आ रहा है। मुख्य मुकाबला सभी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहने की संभावना है। सपा और बसपा गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं। सपा केवल एक सीट पौड़ी गढ़वाल और बसपा बाकी चार सीटों पर मैदान में उतरेगी। इससे हरिद्वार और नैनीताल, दो सीटों पर सपा-बसपा का गठबंधन मुकाबले का तीसरा हिस्सा बनने की पुरजोर कोशिश करेगा लेकिन वह मकसद में कितना सफल रहता है, अभी कहा नहीं जा सकता।
पिछले तीन चुनावों में मत प्रतिशत टिहरी सीट
2004 भाजपा-20
कांग्रेस-19बसपा-01 से भी कम
2009कांग्रेस-22
भाजपा-18बसपा-062014भाजपा-33कांग्रेस-18आप-01पौड़ी गढ़वाल सीट2004भाजपा-23कांग्रेस-19बसपा-01 से भी कम2009कांग्रेस-21भाजपा-20बसपा-032014भाजपा-32कांग्रेस-17बसपा-01 से भी कमहरिद्वार सीट2004सपा-17बसपा-13भाजपा-122009कांग्रेस-25भाजपा-15बसपा-142014भाजपा-36कांग्रेस-25बसपा-06अल्मोड़ा सीट2004भाजपा-22कांग्रेस-21उक्रांद-022009कांग्रेस-18भाजपा-17.5बसपा-042014भाजपा-27कांग्रेस-20बसपा-02नैनीताल सीट2004कांग्रेस-45भाजपा-37बसपा-082009कांग्रेस-43भाजपा-30बसपा-182014भाजपा-39कांग्रेस-21बसपा-03यह भी पढ़ें: Loksabha Election 2019: भाजपा और कांग्रेस में हर दिन बढ़ रही सियासी बेचैनीयह भी पढ़ें: मनीष का कोई भी फैसला उसका अपना: भाजपा सांसद खंडूड़ीयह भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव: कुनबा बढ़ाने की रणनीति को अपनों से झटका