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Lok Sabha Election 2019 : खदानों में लटके ताले, रोजी-रोटी के पड़े लाले; BIG ISSUE

Lok Sabha Election 2019. लौह अयस्क खदानों के बंद होने से बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। राज्य सरकार से खदान संचालक भी नाराज चल रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Updated: Sat, 06 Apr 2019 09:18 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2019 : खदानों में लटके ताले, रोजी-रोटी के पड़े लाले; BIG ISSUE
चाईबासा, सुधीर पांडेय। Lok  Sabha Election 2019 सिंहभूम संसदीय क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में अर्से से लौह अयस्क खदानों की भूमिका अहम रही है। बड़ी आबादी की रोजी-रोटी इन खदानों पर निर्भर है। इधर, 13 अयस्क खदानों में ताले लटक गए हैं। लीज शर्तों के उल्लंघन के आरोप में राज्य सरकार ने खदानों के पट्टे रद कर दिए हैं। अब नए सिरे से नीलामी प्रक्रिया के बाद इनका आवंटन होगा। कब होगा? कोई तिथि घोषित नहीं हुई है। मजदूर और खदान संचालक तारीख निकलने की प्रतीक्षा कर रहा है। लौह अयस्क और मैगनीज खनन पट्टेधारियों को 60 दिनों के वैधानिक नोटिस पर सरकार ने समीक्षा के बाद तीन चरण में पट्टे रद किए थे। पहले चरण में पांच खदानों के पट्टे रद किए गए थे। दूसरे चरण में चार खदान बंद किए गए। तीसरे चरण में भी चार बंद किए गए। इस तरह कुल 13 खदानों पर ताले लटक गए।

बड़ी संख्या में मजदूर हो गए बेरोजगार

चाईबासा के दिलीप उरावं बताते हैं कि लौह अयस्क खदानों के बंद होने से बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। राज्य सरकार से खदान संचालक भी नाराज चल रहे हैं। बावजूद लोकसभा चुनाव में उतरने वाले किसी राजनीतिक दल ने इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाया है। इससे वोटरों में भीतर ही भीतर रोष है। हर जुबान पर चर्चा चल रही कि पार्टियां खामोश क्यों हैं? इस बार के चुनाव में यह मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के चुनावी समीकरण को भी प्रभावित कर सकता है। नोवामुंडी के हेमंत टुडू कहते हैं कि खदान बंद होने से बड़ी संख्या में यहां के मजदूर पलायन कर गए। इसका असर बाजार पर भी पड़ा है। कारोबारी रमेश कुमार भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं कि खदान के सिवाय यहां दूसरा कुछ भी नहीं, ऐसे में रोजगार तो प्रभावित हुआ ही है। 

इसलिए राज्य सरकार से नाराज हैं खदान संचालक

बंद खदान के एक संचालक नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि खनन उद्योग को लेकर झारखंड सरकार की मंशा शुरू से ही गड़बड़ रही है। शाह कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर पड़ोसी राज्य ओडिशा में सुप्रीम कोर्ट ने खदानों को बंद करने का आदेश दिया। उसी आदेश के आलोक में यहां भी खनन पर रोक लगा दी गई। ओडिशा सरकार ने लचीला रवैया अपनाते हुए कुछ शर्तों पर खदान चालू करने के आदेश दे दिए, लेकिन झारखंड सरकार ने जो शर्तें लगाई हैं, उसने खदान संचालकों की कमर तोड़ दी। सरकार ने करोड़ों रुपये जुर्माना लगाते हुए संचालकों को एकमुश्त राशि जमा करने का आदेश दिया। जो खदान चालू हालत में थी, उन्होंने तो जुर्माना चुकाते हुए काम जारी रखा, मगर जो बंद पड़ी थीं उनके लिए एकमुश्त राशि जमा करना संभव नहीं था। इसलिए लौह अयस्क का कारोबार समेटना पड़ा है।

वर्ष 2020 में खदानों की नीलामी नहीं होगी आसान

एक अन्य खदान संचालक कहते हैं कि राज्य सरकार 2020 में खदानों की नीलामी की तैयारी कर रही है, पर पश्चिम ङ्क्षसहभूम की खदानों की नीलामी पर संशय है, वजह सरकार के फैसले के विरोध में संचालकों ने न्यायालय में केस कर रखा है। जब तक वहां से सभी तरह के विवाद खत्म नहीं हो जाते। कोई फैसला नहीं हो जाता। तबतक राज्य सरकार खदानों की नीलाम नहीं कर सकती।

किस्त जमा नहीं करने पर बैंक खींच रहे ट्रक

खदान बंद होने के बाद आर्थिक संकट से जूझ रहे विनय कुमार कहते हैं, मैंने बैंक से लोन लेकर खदान में ट्रक लगाए थे। पांच ट्रक की लाखों रुपये की किस्त हर माह जमा करनी होती थी। खदान बंद होने से कमाई नहीं हो पाई। किस्त जमा नहीं करने के कारण बैंक ने ट्रक खींच लिए। परिवार चलाने के लिए कोलकाता में जाकर एक निजी कंपनी में नौकरी कर रहा हूं। मेरी तरह इस जिले में काफी संख्या में लोग हैं, जो बैंक का किस्त भुगतान नहीं कर पा रहे। उनके ट्रक सड़क किनारे सड़ रहे हैं।

चुनाव में इस मुद्दे पर खुली बहस जरूरी

कांग्रेस प्रत्याशी विधायक गीता कोड़ा कहती हैं कि निश्चित रूप से संसदीय क्षेत्र में खनन उद्योग संकट में है। कहा कि कई बार इस मुद्दे को उठाया, लेकिन किसी ने सुध नहीं ली। राज्य सरकार की अदूरदर्शी नीति के कारण हजारों लोग बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। यह अहम चुनावी मुद्दा है। चुनाव में इस पर जनता के बीच खुली बहस होनी चाहिए।

इन खदानों की लीज हुई है रद

  • कंपनी  आवंटित खदान क्षेत्रफल (हेक्टेयर में)
  • पदम कुमार जैन - ठाकुरानी - 84.68
  • चंद्र प्रकाश सारडा- इतरबालजोरी- 57.46
  • कमलजीत ङ्क्षसह आहलुवालिया - बराइबुरू - 129.499
  • कमलजीत ङ्क्षसह आहलुवालिया - बराइबुरू - 250.763
  • शाह ब्रदर्स - करमपदा - 233.99
  • खटाऊ लीलाधर ठक्कर - कुमिरता - 30.84
  • मिश्रीलाल जैन संस - करमपदा -     262.30
  • आर मैक्डील एंड कंपनी - करमपदा - 110.074
  • रेवती रमन प्र, आनंदवद्र्धन - नोवामुंडी, मेरालगढ़ा - 62.43
  • रेवती रमन प्र, आनंदवद्र्धन - इतरबालजोरी - 33.737
  • श्रीराम मिनरल्स कंपनी - खासजामदा - 265.88
  • जेनरल प्रोड्यूस कंपनी लि. - घाटकुरी (आरएफ) -163.900
  • जेनरल प्रोड्यूस कंपनी लि. - करमपदा (आरएफ)- 70.680
खदान से हटे स्थायी कर्मचारियों की पीड़ा

खदान में काम करते समय दो डंपर खरीद लिए थे। उत्पादन बंद होते ही एक डंपर की किस्त भरपाई नहीं करने से बैंक खींचकर ले गई। दूसरे डंपर को आधे दाम में बेच दिए। अब बस्ती के बिनोद ढाबा में रात्री गार्ड का काम करके 12 सदस्यीय परिवार चला रहा हूं। 

- लादुरा सुरेन, नोवामुंडी बस्ती।

 नौकरी खत्म होने के बाद सात सदस्यीय परिवार चलाना काफी मुश्किल हो गया है। जंगल से महुआ, साल बीज, चहांर, कुसुम, डोला चुनकर बाजार में बेचकर पैसे कमा लेते हैं। इसी पैसे से किसी तरह घर चल रहा है।

- मंगल सुरेन, सोसोपी बस्ती।

 खदान कंपनी से निकलने के बाद पूरी तरह से बेरोजगार हो चुका हूं। हाईवा चालक बेटे व जमशेदपुर में प्राइवेट जॉब कर रही बेटी पर आश्रित हूं। खाली समय में घर के समीप साग सब्जी उगा लेते हैं। इससे बचे समय में घर की बकरी चराता हूं। 

- जनार्दन हेम्ब्रम, बाईपी।

 जब खदान चालू थे तो समीप में होटल खोल रखे थे। महीने में खाना बेचकर 25 से 30 हजार रुपये कमा लेते थे। खदान बंद होते ही जेब में पैसे आने बंद हो गए। घर की जमा पूंजी भी पिछले पांच साल में खत्म हो गई। किसी तरह जीवन यापन कर रहा हूं।

- मिश्रो पोलेई, टांकुरा बस्ती।

एक्सपर्ट व्यू

इस मुद्दे को प्रभावी तरीके से उठाएं सियासी दल

खनन बंद होने से ना केवल कोल्हान की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है, बल्कि खदान के आसपास रहनेवालों का जीवन भी प्रभावित हुआ है। ग्रामीणों का जनजीवन जल, जंगल, जमीन पर आधारित होता है। खनन की वजह से जंगल कटे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब हुई है। लकड़ी-पत्ते बेचकर उनकी जो कमाई होती थी, वह बंद हो गई है। खनन बंद होने से क्षेत्र में होने वाला कारोबार भी प्रभावित हुआ है। राजनीतिक दलों को यह मुद्दा प्रभावी तरीके से उठाना चाहिए, जो अब देखने को नहीं मिला है।

- सुरेश सोंथालिया, पूर्व अध्यक्ष, सिंहभूम चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री

 बोले मजदूर

- खनन बंद होने के कारण क्षेत्र से बड़ी संख्या में मजदूर कर गए पलायन

- स्थानीय बाजार प्रभावित होने से छोटे कारोबारी भी चल रहे नाराज