'जितनी तैयारी, दल उतना भारी', लोकसभा चुनाव के लिए महीनों पहले शुरू होती है पार्टियों की व्यूह रचना; ऐसे बनती है रणनीति
Lok Sabha Election 2024 लोकसभा के लिए सात चरण में चुनाव होंने हैं। पक्ष-विपक्ष दोनों की ओर से मैदान में पहले चरण से ही बढ़त बनाने की जोर-आजमाइश शुरू हो चुकी है। अगले लगभग 50 दिनों में समय के साथ कई नए मुद्दे भी उभरेंगे और चुनाव का रंग रूप भी बदलता दिखेगा पर एक पहलू यह भी है कि राजनीतिक दल लगभग आधी लड़ाई शुरू होने से पहले...
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के मतदान की घड़ी नजदीक आ गई है। पक्ष-विपक्ष दोनों की ओर से मैदान में पहले चरण से ही बढ़त बनाने की जोर-आजमाइश शुरू हो चुकी है। अगले लगभग 50 दिनों में समय के साथ कई नए मुद्दे भी उभरेंगे और चुनाव का रंग रूप भी बदलता दिखेगा, पर एक पहलू यह भी है कि राजनीतिक दल लगभग आधी लड़ाई शुरू होने से पहले ही लड़ लेते हैं-पर्दे के पीछे।
चुनाव की औपचारिक घोषणा से लगभग दो-ढाई महीने पहले हर दल अपनी व्यूहरचना तैयार करने में जुट जाता है, जोकि मैदानी जंग का मुख्य आधार होता है। इसमें सीटवार सर्वे और उम्मीदवार तय करने से लेकर दूसरे खेमे के मजबूत पहलवान तोड़ने से लेकर वोटर को प्रभावित करने के लिए सही मुद्दों की पहचान (घोषणा-पत्र) तक कई विषय तय किए जाते हैं। वस्तुतः दो-ढाई महीने का वह काल होता है, जब राजनीतिक दल अखाड़े में उतरने से पहले अपनी कसरत करते हैं।
जिसकी जितनी कसरत, वह उतना फिट। उसके बाद जरूरत होती है यह सुनिश्चित करने की कि अखाड़े में पैर न फिसले, जिसे राजनीति में जुबान न फिसलना कहना ज्यादा उचित होगा। प्रसिद्ध कहावत है-युद्ध मेज पर जीते जाते हैं, यानी किसी भी लड़ाई के लिए रणनीति सबसे अहम होती है। चुनावी जंग इससे बहुत अलग नहीं है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राजग के 400 पार के नारे के साथ राजनीतिक विमर्श ऐसे मोड़ पर है, जहां चर्चा जीत और हार की नहीं, बल्कि इस बात की हो रही है कि सचमुच पार या उससे पीछे। यानी चित मैं जीता पट तुम हारे..।
यह भाजपा की रणनीति का अहम हिस्सा है, जिसने जंग का माहौल तैयार किया। जवाब में आम आदमी पार्टी (आप) संग कांग्रेस व विपक्षी दलों ने संविधान को खतरे में बताकर मतदाताओं के बीच बहस छेड़ने की कोशिश की है, लेकिन 400 पार के नारे को टक्कर देने लायक कोई ऐसा नारा तैयार नहीं किया जा सका है, जो जुबान पर चढ़ सके।
पार्टियों कराती हैं सीटवार सर्वे
सीटवार सर्वे हर दल में हुआ करता है, जिसकी रिपोर्ट उम्मीदवार तय करने में अहम होती है। कांग्रेस कुछ सीटों पर कई कई बार सर्वे करवाती है। भाजपा एक मायने में जरूर थोड़ी आगे है कि यहां नमो एप के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी एक समानांतर सर्वे कर रहे होते हैं, जिसमें किसी एजेंसी के जरिए नहीं, बल्कि सीधे जनता से फीडबैक लिए जाते हैं और पसंदीदा उम्मीदवारों के नाम भी पूछे जाते हैं।
कई सीटों पर उम्मीदवार घोषित करने के बाद भी स्नैप सर्वे करवा कर स्थिति को भांपने की कोशिश होती है और उसी अनुसार रणनीति बदली जाती है, पर बढ़त बनाने का असली खेल तो दूसरे खेमे के मजबूत पहलवान तोड़ने, उन्हें साथ जोड़ने या फिर अखाड़े से ही बाहर करने का होता है। यह बहुत आसान नहीं होता है, क्योकि पहलवान तभी पाला बदलते हैं, जब उन्हें अनुकूल माहौल भी दिखे।बंगाल-तमिलनाडु में भाजपा को मिला ये अवसर लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए मैदान में उतरी भाजपा इस बार तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना और बंगाल से बड़ी आस लगाए बैठी है। इसके लिए कार्यसूची आज नहीं, पांच-छह माह पहले तैयार हो गई थी और उसी अनुसार काम भी शुरू हो गया था। बंगाल में संदेशखाली ने जनाधार बढ़ाने का एक बड़ा अवसर दिया तो तमिलनाडु में कच्छतिवु और अन्नाद्रमुक की कमजोरी ने।
हरियाणा में बीरेंद्र व बिहार में पप्पू को कांग्रेस ने जोड़ा
हाल के दिनों में कांग्रेस ने हरियाणा में चौधरी बीरेंद्र सिंह की फिर से पार्टी में वापसी करवाकर एक माहौल तैयार करने की कोशिश की तो बिहार में पप्पू यादव के जरिये एक मजबूत उम्मीदवार जोड़ लिया। हालांकि, इस पूरी कवायद पर पानी फिर गया, जब कांग्रेस अपने दोस्त राजद को नहीं मना पाया। कांग्रेस बार-बार चुनाव लड़ने के लिए फंड की कमी का रोना रो रही है। ऐसे में एक रणनीति यह भी मेज पर ही तैयार हुई है कि राज्यों में कुछ ऐसे उम्मीदवार उतरें जो खुद को भी फंड कर सकें और आसपास की सीटों पर कुछ दूसरे साथी उम्मीदवारों को भी मदद पहुंचा सकें। राजद और सपा जैसे क्षेत्रीय दलों की मेज रणनीति बता रही है कि वह गठबंधन होने के बावजूद कांग्रेस को मजबूत होने देना नहीं चाहती हैं। उनकी प्राथमिकता में आगे राज्य हैं।कर्नाटक में राजा को मनाया
भाजपा के लिए कर्नाटक बहुत अहम है। वहां भाजपा ने मैसूर क्षेत्र में ओबीसी को एकजुट करने के लिए मैसूर से राजा यदुवीर को पार्टी से चुनाव लड़ने के लिए मना लिया। रोचक तथ्य यह है कि उन्हें मनाने के लिए पार्टी को उनके धर्मगुरु तक जाना पड़ा। धर्मगुरु ने राजा की माता को तैयार किया और माता ने पुत्र को।महाराष्ट्र में अशोक चव्हाण को लाए
महाराष्ट्र में कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण का भाजपा में प्रवेश भी बड़ी रणनीति का हिस्सा था। बताया जाता है कि महाराष्ट्र में शिवसेना के टूटे धड़े के नेता एकनाथ शिंदे और राकांपा के टूटे धड़े के नेता अजित पवार के बावजूद कुछ कमी रह रही थी। ये दोनों नेता अपनी-अपनी पुरानी पार्टी के 50 प्रतिशत से ज्यादा वोटरों को पाले में लाने में असमर्थ दिख रहे थे। यह भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: दुमका के दंगल में इस बार गुरुजी नहीं; सगुनिया जीप भी कर रही इंतजार, 1980 के बाद पहली बार हुआ है ऐसायह कमी चव्हाण के आने से पूरा होने का आकलन लगाया गया। हालांकि, पवार और चह्वाण के कारण भाजपा को भ्रष्टाचार के मुद्दों पर असहजता का सामना करना पड़ता है, लेकिन जमीनी चुनावी रणनीति पर यह पासा सटीक बैठता है, जिसे चुनाव से पहले पर्दे के पीछे ही दुरुस्त कर दिया गया।उत्तर प्रदेश में मनोज पांडेय को लिया साथ
भाजपा ने उत्तर प्रदेश में मनोज पांडेय जैसे सपा नेता को पार्टी में शामिल कराकर अमेठी के बाद रायबरेली में भी जीतना कांग्रेस के लिए कठिन कर दिया है। बताया जाता है कि इस बार भाजपा ने उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लिए अलग-अलग कमेटी बना दी थीं।यह भी पढ़ें- आप के साथ गठबंधन, दिल्ली के विकास और उम्मीदवारों के एलान पर क्या बोले अरविंदर सिंह लवली; पढ़िए खास बातची पूरी चर्चा के बाद सहमति के आधार पर हजारों की संख्या में दूसरे दलों के लोग जुड़े हैं। बड़ी संख्या में बाहरी का प्रवेश अपने कार्यकर्ताओं के जोश के लिए सही नहीं होता है, लेकिन बैठकों के दौर के जरिये भाजपा ने यह भी लगभग सुनिश्चित कर लिया कि इसका नुकसान न हो।असली लड़ाई मैदान में ही होनी है, लेकिन पर्दे के पीछे का काम समानांतर चलता रहेगा। रणनीतिकार नए-नए विमर्श गढ़ेंगे, इंटरनेट मीडिया से लेकर जुबानी जंग के जरिए मतदाताओं को अपने पाले में खींचने की कोशिश करेंगे। यह भी पढ़ें - भारतीय सिनेमा और सियासत का सच, जब खुलीं परतें तो कुछ ने बटोरीं तालियां तो कुछ के हिस्से आई नफरत