Election: एक प्रत्याशी एक साथ कितने सीटों पर लड़ सकता है चुनाव? अटलजी ने भी तीन जगह से किया था नामांकन; जानें क्या हैं नियम
Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव 2024 सात चरणों में आयोजित किए जा रहे हैं। इस बीच जैसे ही 3 मई को राहुल गांधी ने रायबरेली से नामांकन दर्ज कराया वैसे ही नेताओं के एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने पर बहस छिड़ गई। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब कोई नेता एक से ज्यादा सीट पर एक साथ चुनाव लड़ा रहा हो।
चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। Lok Sabha Chunav 2024 and Candidates Nomination Rules: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में केरल के वायनाड के बाद 3 मई को रायबरेली सीट से भी नामांकन किया है। इसके बाद से सोशल मीडिया और गली-चौबारों में बड़े नेताओं के एक साथ दो सीटों पर चुनाव लड़ने के मसले पर बहस हो रही है। पड़ोस वाले एक चाचा बोले- हार के डर से दो जगह से राहुल चुनाव लड़ रहे है तो तपाक से ताऊ कहते हैं कि हार का डर नहीं हो, तब भी बड़े-बड़े सब नेता लड़ते हैं, ये कोई नई बात थोड़े ही है।
ये चर्चा सुनने में भले ही मजाकिया लगे, लेकिन ये बात सही है कि यह पहली बार नहीं है, जब कोई नेता एक से ज्यादा सीट पर एक साथ चुनाव लड़ा रहा हो। इससे पहले, साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी ने वाराणसी और गुजरात की वडोदरा सीट से चुनाव लड़ा था। जानिए कौन-कौन से बड़े नेता एक साथ दो-दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ चुके हैं, इसे लेकर क्या है चुनाव आयोग...
साल 2014 में नरेंद्र मोदी दो सीटों से लड़ा था चुनाव
साल 2014 की बात है। नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। उस वक्त उन्होंने वाराणसी और वडोदरा, दो संसदीय सीटों से चुनाव लड़ा था और दोनों सीटों से जीत हासिल की थी। बाद में नरेंद्र मोदी ने वडोदरा सीट छोड़ दी थी और बनारस सीट अपने पास रखी थी।
अटल बिहारी वाजपेयी ने तीन सीटों से लड़ा चुनाव
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने 1957 के आम चुनाव में तीन सीटों से चुनाव लड़ा था। वह जनसंघ के टिकट पर लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर सीट से चुनाव लड़े। लखनऊ, मथुरा में चुनाव हार गए थे, लेकिन बलरामपुर सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे।इंदिरा ने नहीं लिया जोखिम
आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गई थीं। 1980 के चुनावों में उन्होंने जोखिम लेना ठीक नहीं समझा। इंदिरा ने रायबरेली के अलावा मेडक (अब तेलंगाना में) से चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने इंदिरा की दो सीटों पर दावेदारी को उत्तर के साथ दक्षिण को भी साधने की रणनीति के तौर पर पेश किया था। इंदिरा दोनों जगह से जीतीं। हालांकि, बाद में उन्होंने मेडक सीट छोड़ दी।