तेलंगाना में ज्यादा सीटों की जुगत में भाजपा-कांग्रेस, KCR के सामने घर और आधार बचाए रखने की चुनौती
Lok Sabha Election 2024 पिछले संसदीय चुनाव में बीआरएस को नौ भाजपा को चार और कांग्रेस को तीन सीटें मिली थीं। हैदराबाद सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने चार दशक के अपने परंपरागत कब्जे को बरकरार रखा था लेकिन इस बार की हवा में पांच वर्ष पहले वाली रवानगी नहीं है। सत्ता समीकरण के साथ राजनीति का रुख भी बदला-बदला सा है।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। लोकसभा की 17 सीटों वाले तेलंगाना में तीन दलों के सपने मचल रहे हैं। भारत राष्ट्र समिति (BRS) को हटाकर पांच महीने पहले राज्य की सत्ता में आई कांग्रेस पांच वर्ष पुराने प्रदर्शन को पीछे छोड़कर विस्तार की जुगत में जुटी है तो दक्षिणी राज्यों से अतिरिक्त सीटें प्राप्त करने की कोशिश कर रही भाजपा को भी तेलंगाना से इस बार अच्छी बढ़त की उम्मीद है।
अलग राज्य बनने के 10 वर्ष बाद पहली बार दो राष्ट्रीय दलों से मुकाबले में फंसी बीआरएस के सामने पुराने प्रदर्शन को बनाए रखने की चुनौती है।
अबकी रुख बदला-बदला सा है
पिछले संसदीय चुनाव में बीआरएस को नौ, भाजपा को चार और कांग्रेस को तीन सीटें मिली थीं। हैदराबाद सीट पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिसे-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने चार दशक के अपने परंपरागत कब्जे को बरकरार रखा था, लेकिन इस बार की हवा में पांच वर्ष पहले वाली रवानगी नहीं है। सत्ता समीकरण के साथ राजनीति का रुख भी बदला-बदला सा है।
कांग्रेस राज्य की सत्ता में है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से राजनीति की शुरुआत करने वाले व कांग्रेस में आकर पहली बार मुख्यमंत्री बने रेवंत रेड्डी भाजपा की शैली में ही सीटें बढ़ाने के प्रयास में हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी बीआरएस एवं रेवंत रेड्डी के सामने बीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव (KCR) थे।
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बाजी पलटी और रेवंत के हाथ में सत्ता आई तो उन्होंने निशाने पर केसीआर को ही रखा। सत्ता से बेदखल होते ही पार्टी पर भी केसीआर की लगाम ढीली हो गई। संगठन बिखरने लगा। बीआरएस के तीन विधायक कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। हैदराबाद की मेयर विजयालक्ष्मी ने भी पिता केशव राव के साथ बीआरएस को झटका देते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया है।
BRS के कुछ विधायक बदल सकते हैं पाला
पत्रकारिता से कांग्रेस में आए केशव राव तेलंगाना आंदोलन में केसीआर के साथ खड़े हो गए थे। सत्ता की बाजी पलटी तो फिर लौट आए हैं। कहा जाता है कि तेलंगाना में जिसकी सत्ता होती है, उसका ही दबदबा होता है। अभी रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है तो इसका फायदा भी उसे ही मिल रहा है। आने वाले दिनों में बीआरएस के कुछ अन्य विधायक भी पाला बदल कर भाजपा या कांग्रेस में जा सकते हैं।
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भाजपा का दलबदलुओं पर दांवतेलंगाना विधानसभा चुनाव में आखिरी दौर में दम लगाकर आठ सीटें झटक लेने वाली भाजपा भी दल-बदल के खेल में पीछे नहीं है। बीआरएस के नेताओं को टिकट देकर अपनी नई जमीन तैयार कर रही है। प्रदेश की 17 में नौ सीटों पर भाजपा ने बीआरएस से आए नेताओं को प्रत्याशी बनाया है। लोकसभा चुनाव की तासीर विधानसभा से थोड़ी अलग होती है। विधानसभा चुनाव में जो वोटर दूसरे दलों को वोट करते हैं, वही संसदीय चुनाव में भाजपा के साथ खड़े दिखते हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में नौ सीटें जीतने वाली बीआरएस दोनों राष्ट्रीय दलों के सामने मुख्य मुकाबले में बने रहने के लिए संघर्ष कर रही है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला होगा और कोई आश्चर्य नहीं कि वोट प्रतिशत एवं सीटों के मामले में भाजपा सबसे आगे निकल जाए।
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दो तरफा संकट में केसीआर
कांग्रेस और भाजपा द्वारा बीआरएस में तोड़फोड़ से केसीआर के सामने दोतरफा चुनौती खड़ी हो गई है। पांच महीने पहले बीआरएस अजेय मानी जा रही थी। केसीआर को अपने ऊपर इतना भरोसा था कि उन्होंने विधानसभा चुनाव से ज्यादा राष्ट्रीय राजनीति पर फोकस कर रखा था। राज्य से बाहर अपने लिए नई भूमिका की तलाश में थे, पर विस चुनाव परिणाम ने समीकरण को बदल दिया। बीआरएस बुरी तरह परास्त हो गई। बुरे प्रदर्शन ने केसीआर को घुटनों पर ला दिया।
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