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Lok Sabha Election 2024: कांग्रेस बिगाड़ेगी I.N.D.I गठबंधन का खेल? इन 190 सीटों ने बढ़ाई विपक्षी दलों की चिंता, चौंकाने वाले हैं आंकड़े

Lok Sabha Election 2024 इस साल देश में 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने हैं। सभी राजनीतिक दल जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। तो वहीं विपक्ष लोकसभा की इन 190 सीटों को जीतने के लिए मशक्कत में जुटा है। लेकिन इनके अपने ही गठबंधन में से एक कांग्रेस ने सभी को चिंता में डाल दिया है।

By Jagran News NetworkEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Mon, 11 Mar 2024 06:01 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: पिछले चुनाव में 190 सीटों पर कांग्रेस-भाजपा के बीच सीधी लड़ाई थी।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी दलों ने कमर कस ली है। देश की 2 प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां, बीजेपी और कांग्रेस ने भी चुनावी अभियान का बिगुल फूंक दिया है। दोनों दल आम चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं।

भाजपा को केंद्र की सत्ता से हटाने के लिए विपक्ष का मोर्चा कांग्रेस ने संभाल रखा है। लोकसभा की प्रत्येक सीट पर भाजपा के खिलाफ संयुक्त विपक्ष की ओर से किसी एक प्रत्याशी को उतारकर सत्ता पक्ष को कड़ी चुनौती देने का प्रयास है। किंतु पिछले दो चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस-भाजपा की सीधी लड़ाई में संतुलन नहीं रहता है। कांग्रेस पर भाजपा बहुत भारी पड़ती है।

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 436 प्रत्याशी उतारे थे और कांग्रेस के 421 प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें से 190 सीटें ऐसी थीं, जिनमें कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई थी। परिणाम हैरान करता है, क्योंकि इनमें भाजपा 175 एवं कांग्रेस 15 सीटें जीती थीं।

पांच वर्ष पहले के आम चुनाव के आंकड़ों का ट्रेंड भी लगभग ऐसा ही था। वर्ष 2014 में दोनों दलों के बीच 189 सीटों पर सीधी टक्कर हुई थी। भाजपा 166 जीती और कांग्रेस के हिस्से में सिर्फ 23 सीटें आई थीं। दोनों ही चुनावों में देश भर में भाजपा को जितनी भी सीटें मिली हैं, उनमें आधी से ज्यादा सीटें कांग्रेस को हराकर मिली हैं।

पिछले चुनाव में छह राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश तो ऐसे हैं, जिनमें लोकसभा की सभी की सभी सीटों पर यही दोनों दल आमने-सामने थे, लेकिन भाजपा की तैयारियों के आगे उन सभी सीटों पर कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा था। ऐसे राज्यों में गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, चंडीगढ़, अरुणाचल एवं त्रिपुरा हैं, जिनकी सारी सीटें भाजपा की झोली में आ गईं। इन राज्यों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका।

50 प्रतिशत वोट मतलब जीत की गारंटी

भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एक संयुक्त प्रत्याशी देने के प्रयास में जुटे कांग्रेस के रणनीतिकारों को पिछले लोकसभा चुनाव का परिणाम परेशान कर सकता है। 2019 के चुनाव में भाजपा ने देश भर में कुल 436 प्रत्याशी उतारे थे। इनमें से 224 प्रत्याशी 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट लाकर जीते।

इसका मतलब हुआ कि अगर भाजपा के खिलाफ खड़े सभी पार्टियों के प्रत्याशियों, निर्दलियों और नोटा के वोट को भी जोड़ दिया जाए तो भी भाजपा 224 सीटें जीतती, जो सरकार बनाने के लिए बहुमत के जरूरी आंकड़े से सिर्फ 48 कम होती।

2014 के चुनाव में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट लाकर भाजपा ने 136 सीटें जीती थीं। दोनों चुनावों के नतीजों का विश्लेषण करें तो 2019 में भाजपा के पक्ष में ज्यादा प्रचंड लहर दिखती है, क्योंकि आधा से ज्यादा वोट लाकर जीतने वाली सीटों की संख्या में 88 सीटों की वृद्धि हो गई।

वोट प्रतिशत बढ़ाने की कवायद

हालांकि दोनों चुनावों में अकेले भाजपा को मिले कुल वोटों का फर्क आठ प्रतिशत का रहा, लेकिन सीटों की संख्या में ज्यादा वृद्धि नहीं देखी गई। 2014 में 282 सीटें मिली थीं, जो 2019 में 303 हो गई। यानी 21 सीटें बढ़ीं। वोट प्रतिशत दोनों तरफ बढ़े।

2014 में भाजपा से अलग प्रत्याशियों में कुल 64 ने 50 प्रतिशत से ज्यादा मत पाए थे, जो 2019 में बढ़कर 117 हो गई। हालांकि इनमें भाजपा के सहयोगी दल भी शामिल हैं। बिहार में भाजपा को दो सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। गुजरात में 2014 और 2019 दोनों ही चुनावों में भाजपा के सभी 26 प्रत्याशी 50 प्रतिशत से अधिक वोट से जीते थे।

उत्तर प्रदेश में ऐसी सीटों की संख्या सिर्फ 17 है। पिछले आम चुनाव में भाजपा को 303 सीटें और कुल पोल वोट का 37 प्रतिशत प्राप्त हुआ था। इस बार भाजपा अतिरिक्त दस प्रतिशत वोट जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है। संगठन को प्रत्येक बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का लक्ष्य मिला है। सफलता मिली तो 50 प्रतिशत से अधिक वोट लाकर जीतने वाली सीटों की संख्या फिर बढ़ सकती है।

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