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तमिलनाडु में भाजपा का 'यूपी फॉर्मूला', जानिए कौन हैं मोदी के 'नवरत्न', क्यों खेला इन दलों पर सियासी दांव?

Lok Sabha Election 2024 तमिलनाडु की राजनीति में भाजपा ने यूपी वाला फॉर्मूला चला है। यहां भाजपा की नजर छोटे सियासी दलों पर है। उनके सहारे भाजपा सामाजिक समीकरण साधने में जुटी है। तमिलनाडु में इस बार नौ दल एनडीए का हिस्सा हैं। तमिलनाडु में भाजपा पीएमके टीएमसी (एम) और एएमएमके जैसे दलों के साथ तीसरी ताकत बनने के प्रयास में है।

By Ajay Kumar Edited By: Ajay Kumar Updated: Mon, 08 Apr 2024 06:00 AM (IST)
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Lok Sabha Chunav 2024: तमिलनाडु में भाजपा का 'यूपी फार्मूला'।
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। उत्तर भारत में अपने प्रभाव की पताका लगातार फहरा रही भाजपा की नजर अब दक्षिण भारत पर है। पार्टी के रणनीतकार जानते-मानते हैं कि इस अंचल में भी कमल खिलाकर ही वह राजग को 400 पार पहुंचाने के बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। कर्नाटक में जड़ें पहले ही जमा चुकी भाजपा की नजर अब खासतौर पर 39 लोकसभा सीटों वाले राज्य तमिलनाडु पर है।

क्या 'नवरत्न' आएंगे काम?

निस्संदेह द्रविड़ राजनीति की इस धरती पर भगवा खेमे के लिए राह पथरीली रही है, लेकिन अब जातीय समीकरणों का 'राम-सेतु' बांधकर चुनौतियां पार करने की तैयारी है। इसके लिए इस बार भाजपा ने 'यूपी फार्मूला' अपनाते हुए छोटे-छोटे स्थानीय दलों के साथ गठबंधन किया है, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'नवरत्न' नाम देते हुए तमिलनाडु में चमत्कार की आस लगाई है।

इन दलों का रहा वर्चस्व

तमिलनाडु की आबादी लगभग 7.2 करोड़ है, जिसमें अलग-अलग जातियों का प्रभुत्व यहां राजनीति की भी दशा-दिशा तय करता है। स्थानीय जातियों पर पकड़ का ही प्रभाव है कि यहां द्रविड मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) और आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) का वर्चस्व लंबे समय से है।

कितना है छोटे दलों का महत्व?

राजनीति की सफलता का लंबा इतिहास रखने के बावजूद यह दल अलग-अलग जातियों पर प्रभाव रखने वाले छोटे दलों का महत्त्व जानते हैं, इसीलिए 2019 के लोकसभा चुनाव में डीएमके, कांग्रेस, सीपीआई और सीपीआई (एम) ने पांच अन्य दलों के साथ सेक्युलर प्रोग्रेसिव अलायंस बनाया और राज्य की सभी 39 सीटों पर विजय प्राप्त की।

एआईएडीएमके ने भाजपा ने तोड़ा नाता

जमीन तलाश रही भाजपा एनडीए के रूप में एआईएडीएमके के नेतृत्व वाले सात दलों के गठबंधन में शामिल थी। तब इस गठबंधन के लिए परिणाम निराशाजनक थे, लेकिन भाजपा के रणनीतिकारों ने दलीय क्षमता को जरूर कुछ तौलने का प्रयास किया और 2024 के लिए रणनीति बदलते हुए एआईएडीएमके से नाता तोड़ दिया।

एनडीए खेमे में नौ साथी

अब इस बार यहां चुनाव मैदान में डीएमके के नेतृत्व वाले आईएनडीआईए में आठ दल, एआईएडीएमके की अगुआई वाले गठबंधन में चार दल तो भाजपा ने अगुआ की भूमिका निभाते हुए सात दल और एक निर्दलीय के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम का हाथ थामते हुए डीएमके और एआईएडीएमके के वर्चस्व को चुनौती दी है। इस तरह तीसरे मोर्चे के रूप में उभरे एनडीए के खेमे में नौ साथी हैं, जिन्हें पीएम मोदी ने नवरत्न का नाम दिया है।

पीएमके को भाजपा ने क्यों दीं 10 सीटें?

दरअसल, भाजपा के इस गठबंधन के पीछे जातीय समीकरण ही हैं। पार्टी के रणनीतिकार पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) को सबसे मजबूत साथी मान रहे हैं। खुद 19 सीटों पर लड़ रही भाजपा ने एआईएडीएमके के पाले से लाए गए इस दल को 10 सीटें दी हैं, क्योंकि इसका मजबूत प्रभाव वेन्नियार जाति पर है, जिसकी राज्य में आबादी लगभग 14-15 प्रतिशत है। उत्तरी तमिलनाडु में यह जाति वर्ग कई सीटों पर निर्णायक है। राज्य विधानसभा में भी पीएमके के पांच सदस्य हैं।

टीटीवी दिनकरन को मिली दो सीटें

इसी तरह तीन सीटों पर तमिल मनीला कांग्रेस (मूपनार) लड़ रही है। कांग्रेस में टूट के बाद बनी इस पार्टी के संस्थापक जीके मूपनार राज्य के प्रभावशाली ओबीसी नेता रहे हैं और अब पार्टी के कमान उनके बेटे जीके वासन के हाथों में है।

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भाजपा ने दो सीटें उस अम्मा मक्कल मुन्नेत्र कड़गम (एएमएमके) को दी हैं, जिसके नेता एआईएडीएमके की नेता रहीं शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनकरन हैं। राज्य में अच्छी राजनीतिक प्रतिष्ठा रखने के साथ ही दिनकरन थेवर समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसकी आबादी छह से सात प्रतिशत है और दक्षिण तमिलनाडु की करीब आधा दर्जन सीटों पर प्रभाव माना जाता है।

निर्दलीय चुनाव लड़ रहे ओ. पन्नीरसेल्वम

इसके अलावा भाजपा ने डीएमके नीत एसपीए में शामिल रही आइजेके सहित आईएमकेएमके, पीएनके और टीएमएमके को भी एक-एक सीट देकर उनके जातीय प्रभाव वाले मतदाताओं को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया है। इसी तरह एक सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम लड़ रहे हैं। वह एनडीए के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी होंगे।

तमिलनाडु में भाजपा का यूपी वाला दांव

उल्लेखनीय है कि भाजपा के साथ इस बार खड़े दलों का अति पिछड़ी और पिछड़ी जातियों पर अपना-अपना प्रभाव है और राज्य में ओबीसी की आबादी करीब 68 प्रतिशत है। ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश में भाजपा ने राष्ट्रीय लोकदल, अपना दल (एस), निषाद पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) जैसे दलों के सहारे जातीय समीकरणों को साधा है।

जुझारू नेतृत्व को कमान

संदेह नहीं कि पीएम मोदी के आकर्षण के साथ ही उत्तर प्रदेश में भाजपा की ताकत को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली व व्यक्तित्व भी बढ़ाता है, उसी तरह जातीय समीकरण साधने के साथ ही भाजपा ने तमिलनाडु में भी बेदाग छवि के आईपीएस अधिकारी रहे के. अन्नामलाई को प्रदेश की कमान सौंप रखी है। अन्नामलाई से हुए टकराव के बाद भाजपा ने एआईएडीएमके से गठबंधन तोड़ने में भी संकोच न कर संदेश दे दिया कि अन्नामलाई उसके लिए कितना महत्व रखते हैं।

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