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Lok Sabha Election 2024: क्या अपना करिश्मा दोहरा पाएंगे रेवंत रेड्डी? जानें- क्यों कहा जा रहा दक्षिण में कांग्रेस की उम्मीदों का नया चेहरा

Lok Sabha Election 2024 तेलंगाना की सियासत में चुनावी रंग चढ़ने लगा है। यहां की 17 लोकसभा सीटों पर सभी दलों की निगाहें हैं। मौजूदा समय में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। रेवंत रेड्डी यहां के मुख्यमंत्री हैं। करीब चार महीने पहले राज्य की सत्ता में आने वाले रेवंत रेड्डी के सामने अपने प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Sun, 31 Mar 2024 04:00 AM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी। (फाइल फोटो)
संजय मिश्र, नई दिल्ली। ऐसे दौर में जब राजनीति की धारा का एक खास दिशा में तेज प्रवाह बड़े-बड़े सियासी धुरंधरों को जमींदोंज कर रहा हो तब इसका मुकाबला करते हुए धारा पलटने वाली चुनावी जीत हासिल करना किसी करिश्मे से कम नहीं। राजनीति में उभरते इस नए करिश्मे का नाम है अनुमुला रेवंत रेडडी जो देश के सबसे नवोदित राज्य तेलंगाना के नए मुख्यमंत्री हैं, जिनकी अगुवाई में कांग्रेस ने बीते नवंबर-दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी।

रेवंत के सामने 2024 बड़ा मौका

मुश्किल दौर में भी उत्साह और महत्वाकांक्षाओं के रथ पर सवार रेवंत रेडडी की बड़े लक्ष्य हासिल करने की यह दृढ़ इच्छाशक्ति ही है कि साधारण किसान परिवार की पृष्ठभूमि में पले-बढ़े और छात्र राजनीति से शुरूआत कर आज सूबे की सत्ता का शिखर छू लिया है। इस शिखर को एक पड़ाव मानते हुए रेवंत अगली कड़ी में अपनी शख्सियत की एक लकीर राष्ट्रीय राजनीति के कैनवास पर उकेरने को तत्पर नजर आ रहे हैं और 2024 उनके लिए एक बड़ा मौका है।

तेलंगाना की राजनीति के नए शिल्पकार के रूप में उभरे 56 वर्षीय रेवंत रेडडी लोकसभा चुनाव में अपने सूबे की 17 लोकसभा सीटों पर भी कुछ ऐसा ही करने की उम्मीदों से लवरेज हैं। दक्षिणी राज्यों के वर्तमान में सबसे युवा सीएम के तौर पर 100 दिनों के अपने शुरूआती फैसलों की सकारात्मक गूंज को इसका वाहक बनाने में जुटे हैं।

विस चुनाव में तीसरे से शिखर तक पहुंचाया

विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले तक किसी को विश्वास नहीं था कि अजेय दिख रहे ताकतवर चंद्रशेखर राव को भी हराया जा सकता है। लेकिन रेवंत की दमदार क्षमता का ही नतीजा रहा कि पिछले हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा के दूसरे नंबर पर आने के बाद तीसरे नंबर की पार्टी के रूप में देखी जा रही कांग्रेस को शिखर पर पहुंचा दिया।

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अब चार महीने के उनके सीएम कार्यकाल में ही केसीआर की पार्टी भारत राष्ट्र समिति बिखरती दिख रही है और उसके नेता-कार्यकर्ताओं के कांग्रेस में शामिल होने की लाइन लगी है। तेलंगाना में कांग्रेस की जीत अभूतपूर्व है, क्योंकि कुछ दशकों में पहला मौका है जब किसी सूबे में लगभग तीसरे स्थान से पार्टी ने सत्ता के मुकाम की छलांग लगाई हो। कांग्रेस के कुछ प्रमुख चुनावी वादों की गारंटी को लागू करने से लेकर सीएम की शपथ लेते ही मुख्यमंत्री कार्यालय और निवास के बंद दरवाजे जनता के लिए खोलने के फैसलों ने रेवंत की छवि को और मजबूती दी है।

ऐसा रहा रेवंत का राजनीतिक जीवन

लोकसभा में कांग्रेस के मिशन दक्षिण के लक्ष्य में केरल के बाद सबसे बड़ी उम्मीद तेलंगाना ही है। रेवंत कभी भाजपा में नहीं रहे मगर उनकी सियासत का आगाज छात्र राजनीति में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से हुई। मुख्यधारा की राजनीति में उनकी फायर ब्रांड छवि पहली बार 2006 में महबूबनगर के जिला परिषद टेरिटोरियल काउंसिल में और विधान परिषद चुनाव में निर्दलीय ही कांग्रेस उम्मीदवार को हराने के बाद सामने आई। कांग्रेस के तत्कालीन सीएम वाईएसआर राजशेखर रेडड्डी को चौंकाया तो उन्हें कांग्रेस में आने का न्यौता दिया मगर रेवंत ने चंद्रबाबू नायडू का दामन थामा। तेलंगाना गठन के बाद 2014 में वे प्रदेश टीडीपी के अध्यक्ष बने। मगर 2017 में कांग्रेस का दामन थाम लिया।

विधानसभा हारे मगर चार महीने बाद लोकसभा चुनाव जीते

2018 के विधानसभा चुनाव में केसीआर की लहर में हार गए मगर चार महीने बाद 2019 में मल्कागिरी से जीत वे लोकसभा में पहुंच गए, जहां कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से सीधे रूबरू होने का मौका मिला। राहुल ने उनकी क्षमताओं का आकलन कर तमाम दिग्गजों के विरोध को दरकिनार करते हुए 2021 की शुरूआत में रेवंत को तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सौंपते हुए चुनावी चेहरा बना दिया। 2023 के आखिर में तेलंगाना में करिश्माई जीत का तोहफा देकर उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व के भरोसे को और मजबूत किया और इसीलिए 2024 में रेवंत कांग्रेस के लिए उम्मीदों का एक चेहरा हैं।

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