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दिल्‍लीवाले नहीं दिमागवाले कहिए जनाब! लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अलग-अलग रखते हैं मुद्दे; जानिए क्‍या है इनकी प्रायोरिटी

Delhi Lok Sabha Election 2024 आमतौर पर अलग-अलग चुनावों में लोगों के मुद्दे एक ही रहते हैं लेकिन दिल्ली में यह मामला पूरी तरह से अलग है। यहां के लोग चुनाव के अनुसार मुद्दे तय करते हैं और उसी के अनुसार मतदान करते हैं। जानिए दिल्लीवासी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में किन मुद्दों पर करते हैं वोट और कैसे अलग होता है पैटर्न।

By Ranbijay Kumar Singh Edited By: Sachin Pandey Updated: Tue, 21 May 2024 07:40 PM (IST)
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Lok Sabha Election: दिल्ली के लोग विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अलग-अलग मुद्दों पर मतदान करते हैं।
रणविजय सिंह, नई दिल्ली। दिल्ली में हुए पिछले लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव पर गौर करें, तो पता चलता है कि यहां के मतदाता हर चुनावों की अहमियत के मुताबिक अलग-अलग मुद्दों पर वोट करते रहे हैं। लोकसभा चुनाव में दिल्लीवाले राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट करते आ रहे हैं।

यही वजह है कि लोकसभा व विधानसभा चुनावों में दिल्ली के मतदाता किसी एक दल की जगह अक्सर अलग-अलग पार्टियों के समर्थन में खड़े हुए। वर्ष 1993 में एक बार ही भाजपा को विस चुनाव में सफलता मिली हैं। इसके बाद हुए किसी विस चुनाव में भाजपा नहीं कांग्रेस और आप का पलड़ा भारी रहा, लेकिन लोस चुनाव में परिणाम इसके उलट रहे।

लोकसभा में भाजपा का दबदबा

वर्ष 1993 के बाद हुए सात लोकसभा चुनावों में दिल्ली में पांच बार भाजपा को बड़ी जीत मिली, वहीं कांग्रेस दो बार कामयाब रही। कांग्रेस ने भी राष्ट्रीय मुद्दों पर ही लोकसभा चुनाव में दिल्ली में कामयाबी हासिल की।

वर्ष 2013 के दिल्ली विस चुनाव में उभरी आप ने पिछले दो विस चुनावों में ऐतिहासिक जीत की है। आप की सुनामी में कांग्रेस विधानसभा में अपना वजूद नहीं बचा पाई। भाजपा की प्रतिष्ठा जैसे-तैसे बची। मुफ्त पानी, बिजली व मोहल्ला क्लीनिक के स्थानीय मुद्दे को दिल्ली की जनता ने हाथों हाथ लिया। जबकि पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में भाजपा सफल रही। आप पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में खाता भी नहीं खोल पाई।

ये रहे मुद्दे

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी, कालाधन, महिला सुरक्षा, कौशल विकास, स्मार्ट सीटी व अच्छे दिन की उम्मीद जैसे राष्ट्रीय मुद्दे थे। जिन पर दिल्ली ने वोट किया था। वर्ष 2019 के लोस चुनाव में राष्ट्रीय सुरक्षा, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने, नागरिकता संशोधन अधिनियम, गुड गवर्नेंस, मेक इन इंडिया, बढ़ती अर्थ व्यवस्था, महिलाओं से संबंधित मुद्दों को ध्यान में रखकर मतदान किया था।

इस मुद्दे पर शीला दीक्षित ने बनाई थी सरकार

वर्ष 1998 में प्याज की महंगाई के मुद्दे पर कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीत कर शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली में सरकार बनाई। लेकिन इसके अगले ही वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में दिल्ली में उसे हार का सामना करना पड़ा था। शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस ने दिल्ली में दो बार (वर्ष 2004 व 2009) लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की।

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कांग्रेस की इस कामयाबी में शीला दीक्षित द्वारा कराए गए विकास कार्यों के अलावा वर्ष 2004 में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी का फायदा भी मिला था। वर्ष 2009 के चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों व यूपी एसरकार के कामकाज को ध्यान में रखकर दिल्ली के लोगों ने मतदान किया था।

इसके अलावा यदि नगर निगम के स्थानीय निकाय की चुनाव की बात करें वर्ष 2008 से 2017 के बीच तीन स्थानीय निकाय के चुनाव में भाजपा को कामयाबी मिली थी। जबकि दो स्थानीय निकाय चुनावों के दौरान दिल्ली की सत्ता में कांग्रेस व एक चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी सत्ता में थी।

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