Lok Sabha Election 2024 वरिष्ठ कांग्रेस नेता और कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने विभिन्न मुद्दों पर जागरण से बात की। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस 2004 के इतिहास को दोहराने को तैयार है। इंडी गठबंधन वामदलों के साथ सामंजस्य समेत विभिन्न बिंदुओं पर उन्होंने खुलकर अपनी बात रखी। पढ़ें जयराम रमेश के साथ हुई बातचीत के खास अंश...
चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग मुहाने पर है तब सियासी विमर्श की गरमागरमी का पारा उफान चढ़ने लगा है। विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए की अगुवाई कर रही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पार्टी के संचार महासचिव जयराम रमेश का मानना है कि पहले चरण की वोटिंग के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी घबराहट में चुनाव को हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की पिच पर ले जाना चाहते हैं, मगर जनता का विवेक उनके इस दांव पर भारी पड़ेगा।
उनका यह भी दावा है कि अब 400 पार के नारे की आवाज भी धीमी पड़ने लगी है और कांग्रेस-विपक्षी गठबंधन 2004 के इतिहास को दोहराने के लिए तैयार है। चुनावी बहस की गर्मी से जुड़े मुद्दों पर दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र ने कांग्रेस की संचार रणनीति की कमान संभाल रहे जयराम रमेश से खास बातचीत की। पेश है इसके अंश:
पहले चरण की वोटिंग के बाद अब दूसरे चरण के मतदान में कुछ घंटे रह गए हैं, ऐसे में यहां से कांग्रेस खुद को कहां खड़ी पा रही है?
जवाब: हमारा मानना है कि कांग्रेस-इंडी गठबंधन पहले चरण में बहुत मजबूत स्थिति में है और यही ट्रेंड आगे भी रहेगा। तमिलनाडु में जहां भाजपा का खाता नहीं खुलेगा तो राजस्थान, उत्तर प्रदेश, असम जैसे राज्यों में जहां 2019 में हमारा सफाया हुआ था वहां हम अच्छी सीटें जीतेंगे।
19 अप्रैल की पहली वोटिंग के बाद प्रधानमंत्री के प्रचार और भाषा सबके बदले रंग में दिख रही घबराहट व परेशानी इसका संकेत है। कांग्रेस का न्याय पत्र तीन अप्रैल को जारी हुआ और एक-दो छोटी आलोचनाओं के अतिरिक्त कोई खास बात नहीं हुई पर पहले चरण की वोटिंग के बाद पीएम ध्रुवीकरण के अपने पुराने रास्ते पर आ गए हैं।जान बूझकर तथ्यों से परे जाकर जहरीली भाषा में कांग्रेस और उसके नेतृत्व पर आक्रमण कर रहे हैं पर हमें विश्वास है कि दूसरे चरण में केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान में भी कांग्रेस बहुत बेहतर करेगी।
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चुनाव की दिशा को लेकर आप आश्वस्त हैं तो फिर खुलकर सीटों का एक लक्ष्य बताने से कांग्रेस क्यों हिचक रही, क्या यह आत्मविश्वास की कमी नहीं?
जवाब: भाजपा की तरह केवल नारे गढ़ने में हम विश्वास नहीं रखते बल्कि मजबूती से लक्ष्य पर फोकस रखते हैं और आईएनडीआईए का पहला लक्ष्य 272 के आंकड़े को पार करना है। 2004 में भी हमने कोई लक्ष्य तय नहीं किया था। भाजपा के 400 पार के नारे की पोल विवेक देबोराय, अनंत हेगड़े, ज्योति मिर्धा जैसे सरकार के लोग ही खोल चुके हैं।
बाबा साहब का संविधान बदलने के लिए उसे ये सीटें चाहिए लेकिन पहले चरण की वोटिंग के बाद चार सौ पार का प्रधानमंत्री ढिंढ़ोरा नहीं पीट रहे और इसको लेकर उनकी आवाज की गति अब धीमी हो गई है। संविधान का स्तंभ सामाजिक न्याय है और इसका आधार आरक्षण है। जनगणना में तीन साल का विलंब इसलिए किया गया है कि संख्या सामने आई तो एससी-एसटी-ओबीसी आरक्षण बढ़ाने का दबाव होगा। इससे बचने के लिए 400 पार का नारा दिया गया है।
क्या यह सही नहीं कि कांग्रेस-विपक्ष चार सौ पार के नारे के मनोवैज्ञानिक दबाव में आ गया और उसकी तैयारी अपेक्षित नहीं रही है?
जवाब: मनोवैज्ञानिक दबाव की राय से सहमत नहीं हूं पर यह स्वीकार करता हूं कि दिसंबर में राजस्थान, छत्तीसगढ व मध्य प्रदेश में अप्रत्याशित हार से हमारे मनोबल को धक्का लगा क्योंकि छत्तीसगढ व मध्य प्रदेश में जीत का पक्का भरोसा था। मगर राहुल गांधी की मणिपुर से मुंबई तक की भारत जोड़ो न्याय यात्रा और कांग्रेस की पांच गारंटियों के जरिए हम इससे उबर गए।
इसलिए मैं 2004 का जिक्र करूंगा जब छत्तीसगढ़, राजस्थान व मध्य प्रदेश में हमारी बड़ी हार हुई। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे भीष्म पितामह माने जाने वाले व्यक्ति प्रधानमंत्री थे, मगर सारे अनुमानों को झुठला कांग्रेस न केवल सबसे बड़ी बनी बल्कि यूपीए की सरकार बनी। इस चुनाव में भी जमीनी स्तर पर एक अंडर करंट है और कांग्रेस को लोगों का मूक समर्थन मिल रहा है।
कांग्रेस के चुनाव अभियान की बुनियाद उसका घोषणापत्र है, पीएम ने इसी पर हमला कर क्या आपकी चुनौतियां नहीं बढ़ा दी है?
हमारे घोषणापत्र पर पहला आक्रमण मुस्लिम लीग से जोड़ने का था। सच्चाई यह है कि कांग्रेस 50 साल तक मुस्लिम लीग से लड़ती रही। पर 1940-42 में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन सरकार में शामिल हुए और हिन्दू महासभा का नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर में मुस्लिम लीग से गठबंधन था।
भारत छोड़ो आंदोलन में आरएसएस-जनसंघ ने हिस्सा लेना तो दूर, इसका विरोध किया। लालकृष्ण आडवाणी और जसवंत सिंह भाजपा के दो बड़े नेताओं ने पाकिस्तान जाकर मोहम्मद अली जिन्ना को महान नेता घोषित किया। ऐसे में सांच को आंच नहीं और देश की जनता के विवेक पर हमें पूरा भरोसा है।मंगलसूत्र और सोना लेने के आरोपों का प्रियंका गांधी वाड्रा ने जवाब दे दिया है। विडंबना है कि जो व्यक्ति अपने परिवार में मंगलसूत्र का सम्मान नहीं करता वो इसके बारे में प्रवचन दे रहा है। सच यह है कि बीते 10 साल में गरीब, निम्न व मध्यम वर्ग को अपने सोने-जेवर गिरवी रख कर्ज लेना पड़ा रहा क्योंकि कोई आमदनी नहीं है और 70 साल में ऐसा नहीं हुआ।
पहली बार देश यह भी देख रहा कि प्रधानमंत्री 'मुसलमान' मंत्र जप चुनाव को हिन्दू-मुस्लिम बनाना चाहते हैं। ध्रुवीकरण की लगाई जा रही आग को बुझाया नहीं जाएगा, बल्कि इसे तेज किया जाएगा क्योंकि खुद पीएम मोदी ने इसकी शुरुआत की है। दो दिनों तक हम चुप थे क्योंकि अपने मुद्दों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। पर अब पीएम जब दूसरी पिच पर खेल रहे हैं तो हम जवाब देंगे लेकिन बेरोजारी, महंगाई, असमानता, न्याय जैसे सवालों को उठाना नहीं छोड़ेंगे।
कांग्रेस ने वादे-गारंटियों में चुनाव को निर्णायक मोड़ देने की क्षमता किन मुद्दों में है?
जवाब: महालक्ष्मी योजना के तहत एक लाख रुपये गरीब महिलाओं को देने और अप्रेंटिसशिप का कानूनी अधिकार देकर सभी डिग्री-डिप्लोमा धारक युवाओं को एक वर्ष में एक लाख रुपये की गारंटी का वादा क्रांतिकारी है। युवाओं के लिए केंद्र सरकार में खाली पड़े 30 लाख पदों को भरने, किसानों, एमएसपी की गारंटी और कर्ज माफी से लेकर हिस्सेदारी न्याय की हमारी घोषणाओं ने भाजपा की नींद उड़ा दी है।
इंडी गठबंधन पर कांग्रेस सकारात्मक है मगर बंगाल से लेकर केरल तक आपसी सामंजस्य की जगह कटुता दिख रही, मुख्यमंत्री विजयन समेत वामपंथी नेता राहुल गांधी पर निजी हमले कर रहे फिर कैसे देंगे एकता का संदेश?
जवाब: जब इंडी गठबंधन बना तब से बिल्कुल साफ था कि केरल में हमारा मुकाबला भाजपा से नहीं वामपंथी दलों से है। ऐसे में राहुल गांधी का पिनरई विजयन पर हमला वास्तविक है। हम वहां इसलिए चुप नहीं रह सकते कि वे राष्ट्रीय स्तर पर हमारे सहयोगी हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन चाहते थे मगर ममता बनर्जी दो सीटों से ज्यादा देने पर मानीं। पर इसमें संदेह नहीं कि जब विपक्षी दलों को सरकार बनाने का मौका मिलेगा तो इसमें ममता भी शामिल रहेंगी।
संविधान खतरे में होने की आशंकाओं को खारिज करते हुए पीएम ने कांग्रेस पर डर पैदा करने का आरोप लगाया है, इस पर क्या कहेंगे?
जवाब: जहां तक चुनाव आयोग की बात है तो वीवीपैट पर 10 महीने से अब तक हमें मिलने का वक्त नहीं दिया गया। कई मामलों में आयोग का रूख कसौटी पर है। चुनाव आयोग ही नहीं कैग, सीवीसी सभी संवैधानिक संस्थाओं को प्रधानमंत्री कार्यालय का अटैच आफिस बना दिया गया है। इसीलिए हम कह रहे कि संविधान खतरे में है और ऐसे में आरक्षण भी खतरे में है।संसद में जिस तरह जबरन बिल पारित कराया जाता है और विपक्ष के 145 सांसदों को गृहमंत्री के बयान की मांग की आवाज दबाने के लिए उन्हें निलंबित किया जाता है वह सबके सामने है। संविधान बदलने की बात पीएम खुद नहीं करेंगे अपितु अपनी कठपुतिलयों से कहलाएंगे। ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि जब हमारा संविधान आया था तब आरएसएस ने इसका कड़ा विरोध किया था और ऐसे में उनके वैचारिक मनोभाव को पढ़ा जा सकता है।
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