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Exclusive Interview: EVM में गड़बड़ी की गुंजाइश होती तो कांग्रेस कभी सत्ता से बाहर नहीं होती, पूर्व चुनाव आयुक्त SY कुरैशी ने खुलकर की बात

SY Quraishi Exclusive Interview देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एसवाई कुरैशी ने दैनिक जागरण से विशेष साक्षात्कार में कई् मुद्दों पर अपनी बात रखी। उन्होंने चुनाव आयोग की निष्पक्षता ईवीएम में गड़बड़ी के आरोपों पर खुलकर बात की। चुनाव में एआई और डीपफेक के खिलाफ कदम उठाने की सलाह दी। वहीं वन नेशन- वन इलेक्शन मुद्दे पर अपनी राय जाहिर की।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Sat, 30 Mar 2024 05:43 PM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी। (फाइल फोटो)

लोकतंत्र के महापर्व को लेकर देश एक बार फिर तैयार है। चुनाव में धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल बंद हो, मत प्रतिशत बढ़े, पढ़े-लिखे लोग मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें सहित चुनाव सुधार से संबंधित कई विषयों को लेकर चुनाव आयोग लगातार प्रयासरत है, इसके बाद भी जो सफलता मिलनी चाहिए वह नहीं मिल रही है। खासकर पढ़े-लिखे लोग मतदान करने के लिए बढ़-चढ़कर आगे नहीं आ रहे हैं। इसके पीछे कई कारण हैं। उनमें से एक राजनीति में दिन प्रतिदिन आ रही गिरावट मुख्य है।

एक-दूसरे को गालियां देने वाले नेता मौका मिलते ही साथ बैठकर सरकार बना लेते हैं। इससे मतदाता अपने आपको ठगा महसूस करते हैं। उनकी भावना को चोट पहुंचती है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। इससे आने वाले समय में अफवाहों का बाजार अधिक गर्म होगा। किसी के बारे में कोई हेट स्पीच तैयार कराकर वायरल कर देगा।

डीप फेक का खतरा मंडरा रहा है। ऐसी स्थिति में लोकतांत्रिक व्यवस्था कैसे मजबूत होगी, मतदाताओं का नेताओं के ऊपर विश्वास कैसे बढ़ेगा, मौकापरस्त नेताओं के ऊपर कैसे लगाम लगेगी सहित कई सवालों को लेकर दैनिक जागरण गुरुग्राम के मुख्य संवाददाता आदित्य राज ने देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एसवाई कुरैशी से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश...

सवाल: आप लंबे समय तक न केवल चुनाव आयोग में रहे बल्कि मुख्य चुनाव आयुक्त की जिम्मेदारी भी संभाली। अन्य लोकसभा चुनावों से इस बार का चुनाव कितना अलग मान रहे हैं?

जवाब: जिस प्रक्रिया से चुनाव आयोग को पहले गुजरा था, उसी प्रक्रिया से इस बार भी गुजरना होगा। अंतर सिर्फ मतदाताओं की संख्या का होता है। मतदाताओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। दिक्तत यह है कि जिस रफ्तार से मतदाताओं की संख्या बढ़ रही है, उस रफ्तार से मत प्रतिशत नहीं बढ़ रहा है। इसके लिए कई स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन जो सफलता मिलनी चाहिए, नहीं मिल रही है। इसके पीछे मुख्य कारण है राजनीतिक दलों के प्रति मतदाताओं में बढ़ रही निराशा। नेताओं के ऊपर विश्वास कम होता जा रहा है। यह लोकतंत्र की मजबूती के लिए सुखद संकेत है। नेताओं को जनता से किए वादे निभाने होंगे, तभी जनता का भरोसा उनके ऊपर बढ़ेगा। भरोसा बढ़ने से ही लोकतंत्र मजबूत होगा।

सवाल: विपक्ष को लगता है कि पूरा तंत्र केंद्र सरकार का साथ दे रहा है, ऐसे में चुनाव आयोग के लिए अपनी निष्पक्षता को बरकरार रखना कितना चुनौतीपूर्ण है?

जवाब: ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। जब जो विपक्ष में होता है उसे लगता है कि सत्ता पक्ष के इशारे पर सबकुछ हो रहा है। जहां तक चुनाव आयोग की निष्पक्षता का सवाल है तो इसे बनाए रखना बहुत बड़ी चुनौती है। जिसकी गलती हो उसे आवश्यक दंड मिलना चाहिए। चाहे प्रधानमंत्री ही क्यों न हों।

पिछले चुनाव के दौरान सत्ता पक्ष के एक बड़े नेता द्वारा चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत सामने आई थी। उन्हें नोटिस देने में आयोग ने देरी की। इससे विपक्ष में गलत संदेश गया। ऐसा नहीं होना चाहिए। चुनाव आयोग स्वतंत्र है। उसे स्वतंत्र होकर निर्णय लेना चाहिए। वर्ष 2011 में तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री ने आचार संहिता का उल्लंघन किया था तो मैंने सख्त कार्रवाई की थी। मैंने उनसे कहा था कि आप दोषी हैं। आप आगे से ऐसा नहीं करेंगे। उन्होंने माफी मांगी थी।

सवाल: ईवीएम के ऊपर विपक्ष का भरोसा कमजोर हुआ है। क्या ईवीएम में गड़बड़ी की गुंजाइश है, अगर गुंजाइश है तो कैसे? गड़बड़ी की गुंजाइश किसी भी स्तर पर न हो, इसके लिए क्या प्रयास करने की आवश्यकता है?

जवाब: मैं सवाल करता हूं कि ईवीएम किस पार्टी के शासनकाल में बनी। कांग्रेस के शासन में ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ। यदि गड़बड़ी की गुंजाइश होती तो फिर कांग्रेस सत्ता से बाहर कैसे हो गई। आज तक कांग्रेस ही सत्ता में बनी रहती। यदि गड़बड़ी की गुंजाइश होती तो क्या भाजपा बंगाल, पंजाब एवं कर्नाटक में चुनाव हारती। सच्चाई यह है कि जो हार जाते हैं वे ईवीएम में गड़बड़ी किए जाने का आरोप लगाते हैं।

मैं दावे के साथ कहता हूं कि ईवीएम में गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं है, नहीं है, नहीं है। मान भी लें तो दो-चार ईवीएम में गड़बड़ी कर सकते हैं, हजारों में नहीं। यह बात जो आरोप लगाते हैं उन्हें भी पता है। हार को स्वीकार करने का साहस होना चाहिए। जिनके पास साहस नहीं होता वे ईवीएम में गड़बड़ी किए जाने की बात शुरू कर देते हैं।

सवाल: कई चुनावों से चुनाव आयोग धनबल और बाहुबल को रोकने का प्रयास कर रहा है लेकिन अपेक्षाकृत सफलता नहीं मिल रही है। ऐसे में चुनावों में कैसे सुधार आएगा?

जवाब: पहले के मुकाबले धनबल और बाहुबल के ऊपर काफी हद तक रोक लगी है। सौ फीसद सफलता तब मिलेगी जब मतदाता जागरूक होंगे। मतदाता धनबल व बाहुबल का इस्तेमाल करने वालों का जमानत जब्त करा दे, आगे से पार्टियां रास्ते पर आ जाएंगी।

चुनाव आयोग द्वारा कई प्रविधान किए गए हैं जिससे मतदाता को पता चल सके कि उसका उम्मीदवार कैसा है। यदि किसी के ऊपर आपराधिक मामले दर्ज हैं तो उसे अपने शपथ पत्र में इसका उल्लेख करना होता है। उल्लेख होने के बाद भी जनता उसे क्यों नहीं हरा देती। काफी लोग जाति या धर्म के दायरे में आकर मतदान करते हैं। इस वजह से धनबल व बाहुबल का इस्तेमाल पूरी तरह खत्म नहीं हो रहा है।

सवाल: युवा ऑनलाइन वोटिंग पर जोर दे रहे हैं। इस दिशा में चुनाव आयोग क्यों नहीं विचार कर रहा है। माना जाता है कि ऑनलाइन वोटिंग से मत प्रतिशत में काफी बढ़ोतरी हो जाएगी। बाहर रहने वाले लोग मतदान कर सकेंगे।

जवाब: ऑनलाइन वोटिंग में गड़बड़ी की गुंजाइश काफी बढ़ जाएगी। बैंक भी लूट जाए तो अधिक फर्क नहीं, चुनाव को लूटने नहीं दिया जा सकता। जिस देश में ईवीएम के ऊपर प्रश्नचिन्ह उठाए जा रहे हैं, वहां ऑनलाइन वोटिंग कैसे सही होगी। जो चाहेगा वह अपने पक्ष में ऑनलाइन वोटिंग करा लेगा। बैलेट पेपर वाले युग से भी खराब स्थिति बन जाएगी। जब तक सभी लोग एक जिम्मेदार नागरिक की जिम्मेदारी नहीं समझेंगे, तब तक ऑनलाइन वोटिंग जैसी व्यवस्था के ऊपर विचार करना भी उचित नहीं।

आपको अपने राष्ट्र के प्रति यदि प्रेम होगा तो आप अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करेंगे। जिस व्यवस्था का आप उपयोग कर रहे हैं, उसी की मजबूती में सहायक बनने के लिए शर्तें क्यों? मतदान के दिन लाइन में लगकर मतदान करने में क्या हर्ज है। क्या हम कुछ मिनट अपने राष्ट्र की मजबूती के लिए नहीं निकाल सकते?

सवाल: राजनीति में दिन प्रतिदिन गिरावट आती जा रही है। पहले आरोप-प्रत्यारोप में भी एक संस्कार दिखता था। अब नेता एक-दूसरे को गालियां तक देने लगे हैं। इसके लिए सिर्फ नेता ही जिम्मेदार हैं या फिर जनता भी?

जवाब: राजनीति में आदर्शवाद की स्थिति धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। इसके लिए जनता जिम्मेदार नहीं भी है और है भी। है इसलिए क्योंकि गलत लोगों को चुनाव नहीं हराती। जो नेता भाषा की मर्यादा का ध्यान नहीं रखते। आरोप-प्रत्यारोप के दौरान एक-दूसरे को गालियां देते हैं, वे लोकतंत्र के दुश्मन हैं। राजनीतिक पार्टियों ने यदि इसके ऊपर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया तो वह दिन दूर नहीं जब लोग नेता शब्द से नफरत करना शुरू कर देंगे।

वन नेशन, वन इलेक्शन के बारे में आपकी क्या राय है? क्या ऐसा करना उचित है, यदि उचित है तो फिर इसके लिए क्या-क्या प्रयास करने की आवश्यकता है?

जवाब: यदि नेता और जनता सहमत हों फिर वन नेशन, वन इलेक्शन में कोई दिक्तत नहीं। फिलहाल मेरा इस विषय को लेकर समर्थन नहीं है। सरकार इसके ऊपर विचार कर रही है। इसके ऊपर डिबेट होना चाहिए। तर्क दिया जाता है कि बार-बार चुनाव से काफी खर्च होता है। खर्च कम करने के लिए दो विषयों के ऊपर तत्काल ध्यान दे दिया जाए। जब उम्मीदवारों के खर्च करने की सीमा है तो पार्टियों के लिए क्यों नहीं।

पार्टियां किसी भी उम्मीदवार के ऊपर कितना भी खर्च करे, उसकी कोई सीमा ही नहीं है। दूसरा मल्टी फेज में चुनाव बंद होने चाहिए। यह व्यवस्था तब की गई थी जब देश में बूथ कैप्चरिंग की जाती थी। चुनाव के दौरान देश के काफी इलाकों में हिंसा होती थी। अब इस तरह की स्थिति न के बराबर है। अब सिंगल फेज में चुनाव होना चाहिए। एक बार में ही जितनी फोर्स की आवश्यकता हो, लगाकर चुनाव कराया जाए। समय की भी बचत होगी और खर्च भी कम हो जाएगा।

सवाल: जो पार्टियां एक-दूसरे के विरोध में लड़ती हैं, वही कई बार चुनाव संपन्न होने के बाद गठबंधन कर सरकार बना लेती हैं। क्या यह मतदाताओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं है। इस पर कैसे रोक लगेगी?

जवाब: बिल्कुल जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। इसके लिए कानून बनना चाहिए। जब तक कानून नहीं बनेगा, तब तक ऐसा चलता रहेगा। चुनाव से पहले गठबंधन होना चाहिए न कि चुनाव के बाद। चुनाव के बाद गठबंधन लोकतंत्र के साथ मजाक है। जनता को धोखा देना है।

कुछ सालों से देश में ऐसा ही चल रहा है। चुनाव के बाद गठबंधन करने वाली पार्टियों को जनता एक बार भी यदि धूल चटा देगी, फिर हमेशा के लिए स्थिति बेहतर हो जाएगी। मेरा मानना है कि लोकतंत्र में मतदाता सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है। वह जैसे चाहे वैसे व्यवस्था को घुमा सकता है। यह तब संभव है जब जाति, धर्म, क्षेत्र के दायरे से बाहर निकलकर मतदाता मतदान करेंगे।

सवाल: लोकसभा चुनाव पर डीप फेक का भी खतरा मंडरा रहा है। कोई किसी भी बड़े नेता का रूप धरकर उसकी आवाज में वोटरों को प्रभावित कर सकता है। चुनाव आयोग इससे निपटने में कहां तक सक्षम है?

जवाब: मैं चुनाव से अपने आपको बाहर कर रहा हूं, आप मेरे चालक को वोट दे दो या मेरे जानकार को वोट दे दो। इस तरह के संदेश प्रचारित होने की आशंका है। जब तक सच्चाई सामने आएगी तब तक उस नेता का काफी डैमेज हो चुका होगा। फिलहाल इसके ऊपर रोक लगाने का कोई तकनीक विकसित नहीं। सरकार तत्काल प्रभाव से इसके ऊपर ध्यान दे। दिक्कत यह है कि मैसेज प्रसारित करने वालों का पता लगाना मुश्किल है। तकनीक इतनी विकसित हो चुकी है कि किसी की आवाज निकालकर मैसेज प्रसारित किया जा सकता है।

सवाल: चुनाव में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है और इसका दुरुपयोग भी हो रहा है। इस बात की आशंका है कि इस चुनाव में निर्वाचन आयोग के पास इतनी फर्जी शिकायतें आ जाएंगी कि उन्हें संभालना मुश्किल होगा?

जवाब: बहुत ही खतरनाक स्थिति है। हेट स्पीच बढ़ जाएगी। अफवाहें अधिक होंगी। इससे देश में आग लग सकती है। फेक न्यूज प्रसारित करने का प्रयास विदेशी ताकतें भी कर सकती हैं। एआई के माध्यम से किसी के बारे में कुछ भी गलत संदेश तैयार किया जा सकता है। इंटरनेट व मोबाइल की पहुंच देश के अधिकतर लोगों तक है। एक मिनट के भीतर किसी के बारे में अच्छा या गलत संदेश फैलाया जा सकता है। टेक्नोक्रेट को इसका समाधान निकालना होगा। पूरी दुनिया में यह समस्या है। टेक्नोलॉजी पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। समस्या का समाधान ढूंढना बहुत बड़ी चुनौती है।

सवाल: लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए आप लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

जवाब: मैं लोगों से यही अपील करूंगा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। ऐसे में लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने की जिम्मेदारी बहुत अधिक है। सभी लोग मतदान करें। मतदान से बड़ा दूसरा कोई कार्य लोकतांत्रिक व्यवस्था में नहीं है। चुनाव के दिन सबसे पहले मतदान करना चाहिए, इसके बाद ही दूसरा कोई कार्य। साथ ही जो सबसे बेहतर उम्मीदवार हो, उसके पक्ष में ही मतदान करें।

पार्टियां देखकर मतदान नहीं, बेहतर उम्मीदवार को देखकर जब मतदान करेंगे फिर आपको अधिक अफसोस नहीं होगा। राजनीतिक दलों से अपील है कि आदर्श स्थापित करें ताकि जनता का आपके ऊपर भरोसा बढ़े। जनता का नेता के ऊपर भरोसा ही लोकतंत्र को सशक्त बनाएगा। मत प्रतिशत बढ़ाने को लेकर प्रयास इसलिए किए जा रहे हैं क्योंकि नेताओं के प्रति भरोसा कम हुआ है।

चुनाव आयोग से कहना चाहूंगा कि चाहे सामने कोई हो, यदि उसके विरुद्ध शिकायत आई है तो उसे नोटिस दें। गलत होगा तो कार्रवाई करें नहीं तो कोई बात नहीं। सत्ता व विपक्ष को अलग-अलग चश्मे से कतई न देखें। लोकतंत्र के महापर्व को सफल बनाने की जिम्मेदारी केवल चुनाव आयोग की नहीं है, सामूहिक है। सभी मिलकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने का संकल्प लें।