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Lok Sabha Election 2024: कांग्रेस के 'चटटान पुरुष' के सामने सियासी विष पीकर अब चुनावी संकटमोचक बनने की चुनौती

Lok Sabha Election 2024 मौजूदा समय में जब कांग्रेस के बड़े नेताओं में हाथ छोड़ भाजपा में जाने की होड़ लगी है ऐसे में डीके शिवकुमार न सिर्फ एक भरोसेमंद चेहरे के रूप में उभरे हैं बल्कि कई मौकों पर पार्टी को संकट से भी उबारा है। डीके शिवकुमार के कंधों पर अब एक बार फिर बड़ा दारोमदार है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Tue, 02 Apr 2024 11:47 AM (IST)
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Lok Sabha Election: कर्नाटक में बीते दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा है।

संजय मिश्र, नई दिल्ली। देश की चुनावी राजनीति में व्यक्ति केंद्रित चुनाव के बारे में चाहे कितनी भी प्रतिकूल टिप्पणियां की जाए, मगर पक्ष-विपक्ष दोनों चुनाव में 'पर्सनालिटी कल्ट' की वास्तविकता को खारिज नहीं कर सकते। राष्ट्रीय राजनीति में प्रभुत्व की लड़ाई में क्षत्रपों की भी निर्णायक भूमिकाएं हैं होती हैं और कर्नाटक में डीके शिवकुमार एक ऐसे ही चेहरे हैं जिन पर कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं का यह दारोमदार है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के साथ कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री की दोहरी जिम्मेदारी संभाल रहे शिवकुमार को सूबे की राजनीति के नए 'चटटान पुरूष' के रूप में शुमार किया जा रहा है, जिसने मुश्किल हालातों में पार्टी को सड़क से राज्य सत्ता के शिखर तक पहुंचाया दिया है। अब कर्नाटक के इस चटटान पुरूष के लिए राष्ट्रीय राजनीति के मंच पर अपने सियासी पुरूषार्थ को साबित करते हुए कांग्रेस की उम्मीदों पर खरा उतरने की बहुत बड़ी चुनौती है।

बीते चुनावों में खराब प्रदर्शन

लिंगायत के बाद कर्नाटक के दूसरे सबसे बड़े प्रभावशाली वोक्कालिंगा समुदाय के नए 'मसीहा' के रूप में उभरे डीके शिवकुमार के लिए 2024 चुनाव अग्निपरीक्षा की तरह है, क्योंकि बीते दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है और 2019 में तो पार्टी को सूबे की 28 में से केवल एक सीट ही मिल पाई थी।

अप्रैल-मई 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में 135 सीटों के साथ बड़ी जीत दिलाने वाले डीके से पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व की लोकसभा चुनाव में अपेक्षाएं भी कुछ इसी तरह की हैं। लेकिन वास्तविकता यह भी है कि विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार के आरोपों की लहर के साथ संगठन के अंदरूनी कलह से बिखरी भाजपा संभल चुकी है और कांग्रेस के सामने संघर्ष अधिक चुनौतीपूर्ण है।

भाजपा की राह में बड़ा अवरोध

इसकी पहली झलक पार्टी के भीतर से ही दिखी जब सिद्धरमैया सरकार के आधा दर्जन मंत्रियों ने चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया। कर्नाटक से कम से कम दर्जन भर सीटें जिताने के अपने लक्ष्य में आई इस पहली बाधा से निपटने के लिए डीके ने इन प्रभावशाली मंत्रियों के निकटस्थ परिजनों को चुनावी मैदान में उतार मुकाबले को कांटेदार बनाने का दांव चला है।

यह कितना सफल होगा यह तो नतीजे बताएंगे मगर यह जरूर हुआ है कि क्लिन स्वीप की भाजपा की राह में डीके बड़ा अवरोध बनेंगे। कर्नाटक के 2023 चुनाव में जेडीएस नेता पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा परिवार की तीन दशक से वोक्कलिंगा समुदाय की लीडरशिप छीनने के साथ ही तात्कालिक तौर पर सूबे में जेडीएस के तीन दशक से रहे फैक्टर को खत्म कर दिया और देवेगौड़ा परिवार अस्तित्व बचाने के लिए अब भाजपा की शरण में है।

मुख्यमंत्री की रेस में पिछड़े

वैसे यह भी कम दिलचस्प नहीं कि 2020 में सोनिया और राहुल गांधी की पसंद के तौर पर कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए शिवकुमार के नेतृत्व में पार्टी ने चुनावी जीत हासिल की मगर ओबीसी के सूबे के सबसे बड़े चेहरे दिग्गज सिद्धरमैया के मुकाबले वे मुख्यमंत्री की रेस में पिछड़ गए। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व और पार्टी कार्यकर्ताओं के भरोसे की कसौटी पर वे अब भी सिद्धरमैया से आगे माने जाते हैं।

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कर्नाटक के सबसे अमीर राजनीतिज्ञों में शामिल शिवकुमार को उनके गृह क्षेत्र कनकपुरा में 'कनकपुरा का चटटान' के रूप में मजबूत-जुझारू नेता के रूप में जाना जाता है। पिछले छह-सात सालों के दौरान इडी, सीबीआई और इनकम टैक्स की एक के बाद एक लगातार धुंआधार कार्रवाईयों, गिरफ्तारी के मुश्किल दौर में भी वे अन्य कांग्रेस नेताओं की तरह न टूटे और न ही सियासी पाला बदला।

शीर्ष नेतृत्व के भरोसेमंद

शीर्ष नेतृत्व से उनकी निकटता की गहराई का संकेत यह भी है कि तिहाड़ जेल में उनकी हिरासत के दौरान सोनिया गांधी उनसे मिलनें गई और जमानत पर बाहर आए तो इस घटना का जिक्र कर भावुक हुए डीके ने कर्नाटक में जीत का तोहफा देने का वादा कर इसे हकीकत में तब्दील किया।

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साल 2014 में केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद बीते करीब एक दशक से विधायकों के पाला बदलने के कारण राज्यों की सत्ता से लेकर राज्यसभा सीट गंवाने के संकट से जूझ रही कांग्रेस के लिए शिवकुमार इस मोर्चे पर सबसे बड़े संकटमोचक के रूप में भी उभरे हैं। हिमाचल प्रदेश में बड़ा बहुमत होने के बाद भी भाजपा के आपरेशन कमल से कांग्रेस राज्यसभा की सीट हार गई मगर डीके ने इसी दौरान कर्नाटक में जेडीएस-भाजपा के ऐसे प्रयास को नाकाम कर दिया।

गुजरात में 2017 के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस विधायकों को सुरक्षित रिसॉर्ट में रखते हुए दिग्गज अहमद पटेल की एक वोट से जीत से लेकर झारखंड, महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख की सरकार बचाने के लिए विधायकों को सुरक्षित रखने में उनकी कामयाबी के अनेक उदाहरण हैं। जाहिर तौर पर शिखर नेतृत्व को उम्मीद कर रहा कि इस बार चुनौतियों के विष से उबरते हुए शिवकुमार लोकसभा चुनाव में भी एक प्रमुख संकटमोचक की भूमिका निभाएंगे।

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